शनिवार, 21 अप्रैल 2018

जीवितं जीवेति धरा, यत्र-तत्र युगे युगे।

जीवितं जीवेति धरा, यत्र-तत्र युगे युगे।
प्रकृति, जो है हमारी पालनहार, जो है हमारे पुरखों की सर्वेसर्वा,हमारी प्राकृतिक और नैसर्गिक पालक, मानव प्रजाति ही बस नहीं बल्कि करोड़ों जीवजन्तु अपने अपने तरीके से इस जीवन को जीने के लिए भली भूत हो रहे हैं। हमारी करतूतों के कारण हमें इस दिन को देखना पड़ रहा है। हम अब अपने पालनहार के बारे में, अपने अस्तित्व के खतरे के बारे में बात करने के लिए विवश हैं। हम ही क्या पूरा विश्व इस धरा की तपन को महसूस कर रहा है। धरती लगातार प्यास से व्याकुल हो रही है। सूरज का तापमान धरती के लिए खतरनाक हो रहा है। धरतीवासी अपनी आकाशगंगा में पृथ्वी जैसे ग्रह का कोई विकल्प खोजने में फिलहाल असमर्थ हैं। धरती ने अपने आपको विज्ञान के परे परिवर्तित कर लिया है।यह परिवर्तन के लिए हम सब मानव ही गुनहगार हैं। और इस गुनाह के पश्चाताप के लिए ही हम एक्जुट होकर अपनी धरती और इसके ऊपर पड़ने वाले कारको पर विचार करने के साथ बचाव के लिए प्रयास कर रहे हैं। हर देश के रहवासी इस मुहिम में अपने आप को आहुत करने के लिए आतुर नजर आ रहे हैं। कोई कुछ नहीं कर पा रहा तो अपने आस पास पौधा लगा रहा है। अपने आसपास से प्लास्टिक और सिथेटिक रसायनिक पालीथीन प्रोडक्ट को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। हमें वैश्विक प्रयासों में व्यक्तिगत प्रयासों की मुहिम को जोड़ना ही होगा। हर व्यक्ति जो जहां है उसे अपने स्तर पर इस प्रकृति और धरती के लिए कुछ ना कुछ संरक्षण हेतु करना होगा। हम खुद सोचें कि इस मुहिम में यदि हम मिलियन भर लोग अगर अपने अपने स्तर पर स्वतंत्र रूप से प्रयास करें तो प्रकृति संरक्षण में कितनी बढ़ोत्तरी होगी।
हर सार विश्व धरा दिवस पर्यावरण आंदोलन जो सन सत्तर के दशक में प्रारंभ किया गया उसकी याद में नित नये प्रयोग किये जाते हैं।हर व्यक्ति समझ रहा है कि हमारा जीवन और इसका अस्तित्व खतरे में है। जानते सभी हैं किंतु क्या करना है यह जानकर भी कोई कुछ करना नहीं चाहता है। वर्तमान परिस्थितियों के लिए धरती को बचाने के लिए जरूरी है कि हम इसमें पाए जाने वाली जीवजन्तुओं और पेड़ पौधों की प्रजातियों को सुरक्षित करें,दैनिक जीवन से मानवनिर्मित रसायनिक खपत को कम करें,प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता को समझते हुए उनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी लेंऔर उसको पूरा करें, अपने आसपास हरियाली विकसित करें, हमारे आसपास की भूमि को सूखने से बचाएं,व्यर्थ में बह रहे पानी को धरती तक सीधे पहुंचाकर धरती की प्यास को बुझाएं, आसपास के जल स्रोंतों को दोबारा जीवित करें,अपने आसपास के पुराने पुरखों के कुओं और बावड़ियों का रखरखाव करके जल की एक एक बूंद संजोएं, अपने आसपास खेतों की पानीदारी, और हरियाली को दिन दोगुनी और रात चौगुनी बढ़ाने की कोशिश करें, वर्तमान समय के अनुसार घर के निकलने वाली गीले विघटित होने वाले कचडे को आसपास की जमीन में ही नष्टकरें ताकि उसका विघटन जैविक रूप से हो और धरती को उर्वरकता को बढ़ावा भी मिले, आस पास जल सोखने वाले गड्ढे बनाने की आवश्यकता है जिससे आपके आसपास जल के स्रोत पानीदार बने रहे, काक्रीट की दीवालों से बाहर आकर दिमाग में जमें कांक्रीट को हटाना होगा। शहरीकरण का जो प्लासटर हमारे दिमाग में पैवस्त हो चुका है वह प्रयासों की ड्रिल मशीन से और कटर से टॊड़ कर हटाने की जरूरत है। हमारी मानवीय प्रकृति अगर प्राकृतिक धरा की प्रकॄति को समझ कर एक दूसरे के साथ मिल जुल कर काम करे तो दोहन जैसा कार्य बहुत जल्दी खत्म हो जाएगा। ये धरा हमें देती है सब कुछ अगर हम भी इसे इसके जरूरत की कुछ सामग्री इस संरक्षण यज्ञ में आहुत कर सकें तो कितना अर्थदायी कदम हम सबका होगा। प्रकॄति के नजदीक हम अनायास ही पहुंच जाएंगें। हम खुद बखुद कई बीमारियों, कई अवरोधकों को खत्म कर देंगें, हम खुद बखुद पोषित होजाएंगें अगर हम पोषक को पोषण देने का कार्य प्रारंभ करेंगें।
हमारे दैनिक जीवन में जितना कचड़ा इस्तेमाल हो रहा है, जितना सामान सुविधाभोगी वस्तुओं को एक बार में उपयोग करके भूल जाते हैं उन सबको बार बार उपयोग करने की आदत डालना चाहिए, कैमिकल खाद्य प्रदार्थों की बजाय प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करना चाहिए, प्लास्टिक, पालीथीन, पाली काटन जैसे सामान को कई बार रिसाइकिल करके इसतेमाल करने की कोशिश करना चाहिए। प्रदूषण के हर उस कारक को खत्म करने की बजाय कम करने की पहले कोशिश करना चाहिए। कम करने की कोशिश में प्रदूषक खत्म तो हो ही जाएगा। हम सब मै नहीं वह करे की परंपरा में अपने घर से किसी प्रयास का प्रारंभ नहीं करते, हमे यही शुरुआत करनी है, हमें अपने आसपास जल प्रबंधन, कचड़ा प्रबंधन, प्रदूषण प्रबंधन, और वस्तुओं को बार बार उपयोग करने की परंपरा को उपयोग करना है और आने वाले पीड़ी के हमसे ज्यादा समझदार बच्चों को भी यही मूल मंत्र सिखाना होगा। हम कुछ अच्छी बात और अच्छे काम के सूत्र सिखाएगें तो आने वाली पीढ़ी के बच्चे इसे अपने जीवन में अपनाएगें, समय की जरूरत है कि प्रकॄति/ धरा के बारे में चिंता, चिंतन, मनन, अध्ययन, अवलोकन, और प्रयास हर दिन हर पल हर घडी होना चाहिए।  हम आने वाली पीढियों को समय सापेक्ष प्रकृति से जुड़ने के हर मौकों में शामिल करना चाहिए। हमें उनको इस काम के लिए तैयार करना चाहिए के वो जल संरक्षण करें, वो अपने आसपास की हरियाली को नष्ट होने से बचाएं और  अधिक से अधिक  पौधों को रोप कर उनकी सुरक्षा करके वन महोत्सव जीवन भर मनाएं, हमें यह याद रखना होगा कि यदि जल है तो कल है, ठीक उसी तरह  यदि हरियाली होगी, जल की खुशहाली होगी, जीवन में दीवाली होगी, महकेंगें बाग बगीचे, लहराएगी लताएं और डालियां, प्रसन्न होकर धरती वर देगी हमारी मनुष्य प्रजाति को कि यह प्रजाति कई जनम उसके आंचल में फले फूंले, आने वाली पीढियां इसी धरा के गुणगान करके आने वाली पीढियों को धरा  पर्यावरण को सुरक्षित रखने का संदेश आजीवन देती रहें। अंतत जीवितं जीवेति धरा, यत्र तत्र युगे युगे। जीवित धरा जीवित रहे, हमारे आसपास से युग युग तक प्राण्युक्त बनी रहे।
अनिल अयान,

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