शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

हिंदी है हम वतन हैं हिंदोस्तां हमारा।

हिंदी है हम वतन हैं हिंदोस्तां हमारा।
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा, हिंदी हैं हम वतन हैं हिंदोस्तां हमारा। यह गीत हमारी भाषाई पहचान को वैश्विक स्तर पर रखने का काम करता है। विगत सप्ताह दो प्रमुख भाषाई और दर्शनशास्त्रीय पर्व मनाए गए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस और युवा दिवस। इसके साथ ही कई संस्थानों में युवाओं के साथ हिंदी के तालमेल को बिठाने की जग्दोजहद प्रारंभ कर दिया गया। आज हम कुछ तथ्यों पर विचार करेंगें जो यह बताएगें कि कैसे युवा वर्ग हिंदी को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने के लिए प्रयास रत हैं। वास्तविकता यह है कि हम हिंदी को याद करने के लिए राजभाषा पखवाडे तक सीमित रखने के प्रयास में खुद को भावनाशून्य बना लेते हैं। किंतु विश्व हिंदी दिवस का प्रारंभ और इसके प्रचार प्रसार में युवा वर्ग का एक महत्वपूर्ण योगदान है। साथ ही साथ वैश्विक स्तर पर हिंदी की पहचान मजबूत करने के लिए युवाओं का योगदान दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वैसे तो अधिक्तर युवा अपने महाविद्यालयीन काल से ही अंग्रेजियत और प्रौद्योगिकी की ओर रुख कर देता है। किंतु उसके अंतस में हिंदी का कीड़ा कुलबुलाता रहता है। हिंदी उसकी जुबान से अलग नहीं होती। हिंदी उसकी सांसों में गतिमान बनी रहती है। मेरे पहचान के अधिक्तर इंजीनियर्स, डाक्टर, टीचर्स,और अन्य व्यवसायी मित्र हिंदी के प्रति शुभ संकेत देते हैं। वो हिंदी को बोलना सुनना और संवाद करना पसंद करते हैं। हिंदी राजभाषा के रूप में स्थापित हो या ना हो किंतु समाज में हिंदी का अपना प्रजातंत्र हैं।
जब हिंदी के वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो हमें हिंदी के प्रचार प्रसार के विभिन्न कारकों को नहीं भूलना नहीं चाहिए। हिंदी को बोलने के साथ साथ हिंदी को वैश्विक भाषा साहित्य में स्थापित करने का काम भी युवा कर रहे हैं। वर्तमान में भारत के बाहर भी हिंदी के युवा लेखकों की पुस्तकों को ७० प्रतिशत तक इंटरनेशनल प्रकाशक प्रकाशित करने के लिए स्वागत करते हैं। विश्व पुस्तक मेले में युवा लेखकों की पुस्तकों का प्रतिशत साठ से अधिक ही रहा। अधिक्तर बिक्री वाली पुस्तकों में भी युवा लेखकों की पुस्तको को पढ़ने और खरीदने का श्रेय युवकों और युवतियों और महिला ग्रहणियों को जाता है। यह मामला तो प्रगति मैदान का है। भारत में जितनी भी नेटवर्किंग साइटस हैं उसके भारतीय खाताधारकों की ८० प्रतिशत संख्या हिंदी को हिंदी में लिखने में खुश होते हैं। उनका रोमन हिंदी में लिखना और अंग्रेजी के प्रति रवैये की उदासीनता की वजह से इस परिणाम तक हम पहुंच चुके हैं। वर्तमान में युवाओं के प्रेरणा श्रोत ऐतिहासिक और समाजिक पात्रों के साथ साथ आस पास के सफल युवा होते हैं। वर्तमान युवा नौकरी की बजाय उद्यमी बनना ज्यादा पसंद करते हैं और सर्विस सेक्टर में अपनी पहचान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करते हैं। विश्व स्तर पर जितने भी हिंदी भाषा अप्रवासी युवा वर्ग हैं वो सब अपने आप को हिंदी के परिवेश में ढालने की चेष्टा करते हैं। औसतन युवा लेखक, संपादक और युवा उद्यमी भारत में अपनी पहचान को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। वो विदेश में हिंदी की पहचान को दिन दो गुना रात चौगुना वृद्धि करने में अपने स्तर पर प्रयास करते रहते हैं।
अगर हम हिंदी से संबंधित इंटरनेट में ई मैग्जीन्स और हिंदी के पोर्टल्स की बात करें,  या हिंदी में ब््लॉग्स की बात करें तो युवा वर्ग हिंदी के क्षेत्र को यहां पर भी विस्तार दे रहें हैं। फेसबुक, ब्लाग, ट्वीटर, स्टॊरीमिरर, प्रतिलिप, वेबदुनिया हिंदी आदि नाना प्रकार की हिंदी वेबसाइट हैं जो हिंदी को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए मददगार हैं। पिछले सप्ताह से अगर हम विश्व हिंदी दिवस, विश्व पुस्तक मेले, विश्व अप्रवासी दिवस, और स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन को मना रहे हैं तो हमें युवाओं की भाषा: हिंदी के लिए, युवाओं के हिंदोस्तां में रहने की वजह से : हिंदी नागरिक होने के लिए, इटरनेट के माध्यम से युवाओं के हिंदी प्रयासों के लिए युवाशक्ति युगे युगे को स्वीकार करना होगा। युवा शक्ति से राजनीति में वोटनीति है। योजना नीति है। और संवैधानिक नीति है। संसद से लेकर पगडंडी तक, कारखानों से लेकर खेतों तक युवा मौजूद हैं और मानवसेवा के मिशन लगे हुए हैं। संघर्ष,समर्पण,और सफलता अलग अलग स्तर पर युवा शक्ति विकास को पागल होने से रोक रही है। कुछ समूहों के बरगलाए युवाओं को अगर सही दिशा दी जाए तो वो भी हिंदोस्तां के सर को गौरव से ऊंचा करेंगें।
हम बार बार कहते हैं कि युवा वर्ग अपने उद्देश्यों से भटक रहे हैं। वो अलगाव, भ्रष्ट राजनीति, और आतंकवाद के पैतरे बन रहें हैं, वो समाज में वैमनस्यता फैलाने के लिए एक औजार के रूप में गुटों के द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हैं आदि आदि बहुत सी बाते बुजुर्गों के द्वारा सुनते हैं किंतु कभी युवाओं को अपने पास बिठाकर उनके साथ बुजुर्गों को जवान होते या जवान महसूस करते या उनके साथ युवा हृदय होते बहुत कम बुजुर्गों को देखा होगा। समाज को यह स्वीकार करना होगा कि पीढी के वैचारिक अंतर को संवाद ही दूर करता है और वर्तमान में युवावर्ग इस अंतर को दूर करने के लिए स्वमेव प्रयासरत होगा है। उस समय पर भी वो हिंदी का ही सहारा लेता है। विदेश में जाकर शिक्षा लेने वाले युवाओं में अधिक्तर युवा वर्ग वैश्विक परिदृश्य में हिंदी को फैलोशिप स्कालर्स के रूप में अनुवादक, अध्ययन और अध्यापन को चयन किये और सफलतापूर्व देश के साथ साथ विदेशों में हिंदी को प्रचारित प्रसारित कर रहे हैं। इसी की तरह विदेशों से भी बहुत से युवा अन्य देशों से हिंदी को पढ़ने सीखने बोलने और हिंदी के क्षेत्र में कार्य करने के लिए भारत आते हैं। इस बार के युवाओं की योग्यता, उनकी काबिलियत, काबिलियत का भाषाई संवर्धन में योगदान, और योगदान से वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्थिति को जानना तो हम सबका अधिकार है। इसी बहाने अगर और युवा इस कर्मक्षेत्र में आगे आकर झंडावरदारी करते हैं तो सही अर्थों में  युवाओं का दिवस हर दिवस होगा और हम हर दिवस हिंदी दिवस के रूप में मनाएगें।
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

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