शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

उनके लिए रिबेट, हमारे लिए डिबेट

उनके लिए रिबेट, हमारे लिए डिबेट
बजट आया, किसी ने विकास कहा, किसी ने आश कहा, किसी ने विनाश कहा, किसी ने पकोड़ा कहा, किसी ने रोड़ा कहा, किसी ने कहा गरीबों के लिए सब्सिडी है, किसी ने कहा अमीरो के लिए टैक्स में रिबेट है, किसी ने कहा पेट्रोल मोदी की उम्र से आडवानी की  उम्र तक पहुंच गया, किसी ने कहा कि सेस की ऐश हो गई, किसी ने कहा, यह उद्योगपतियों का बजट रहा, किसी ने कहा कि टैक्स के ऊपर टैक्स लगाने की परंपरा की शुरुआत हो गई। मध्यम वर्ग के लिए क्या आया सिर्फ डिबेट, नौकरी पेशे वालों के हाथों में क्या आया, चातक के लिए स्वाति की बूंदे, सरकार के लिए तो जनता अब प्रयोग की सामग्री बन गई है। टीवी चैनलों में मध्यम वर्ग को बजट ने क्या दिया यह चर्चा का विषय बना कर बहसें जारी रखी गई। बहसों से परिणाम उसी तरह निकला जैसे योजनाओं का परिणाम निकलता है।
योजनाएं सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं, परन्तु जमीनी स्तर पर काम करने के लिए कर्मचारियों के छक्के छूट जाते हैं। पिछले दो सालों में प्रधान मंत्री जी की दो योजनाएं सभी लोगों के लिए जारी की गई। सभी के खातों से इसका प्रीमियम अप्रैल के महीने में काट लिया गया। अब इस बार आ गया अभ्युदय योजना, और मोदी केयर योजना का प्रचार प्रसार करना, बजट कुछ खास ना हो तो उसके ऊपर योजनाओं की नक्कासी कर दी जाती है। घोषणाएं तो ऐसे की जाती है जैसे साल भर में देश की अर्थव्यवस्था लाइन में आजाएगी। मध्य प्रदेश में तो सेस की मार उत्पादों की नाक में नकेल डाल दी है। आयुष्मान के नाम पर गरीबों के भले करने की बात कहा तक अपनी हकीकत की जमीन पर उतर सकती है यह देखना और भोगना है। यह जुमला सन चौदह के चुनावी घोषणा पत्र में था और चार साल लग गए। ओबामाकेयर की नकल मार कर मोदी जी ने इस ब्रांड को मार्केट में उतार दिया। जनता से प्रीमियम लेकर इंस्योरेंश सेक्टर में लगा दिया जाएगा। ढाई करोड़ लोगों के स्वास्थय की चिंता अब सरकार करेगी।
ओबामा ने स्वास्थ्य के साथ खाने और नाश्ते तक की स्कीम को इस केयर में जोड़ाथा, उसके लिए विभिन्न योजनाएं बनाई गई थी। परन्तु मोदी केयर में ऐसा कुछ भी नहीं बताया गया। सरकारी अस्पतालों की स्थिति और डाक्टर्स की स्थिति यह है कि हर डाक्टर्स का खुद का मल्टी स्पेशियलिटी हास्पीटल, और नर्सिंग होम्स हैं। वो हमारी केयर करेंगें कि  हमारे प्रीमियम से खुद के परिवार का वेल्फेयर करेंगेम। ओबामा केयर के तहत इंश्योरेंश कंपनियां व्यक्ति की बीमारी के लिए मुआवजा के लिए मना नहीं कर सकती थी। मोदी केयर में तो निजी अस्पताल, और इंश्योरेंश कंपनियों की चांदी है। डेढ लाख केंद्रों को खोलने का लक्ष्य है। पर लक्ष्य को पाने के लिए रास्ता और फंड कहां से जुगाड़ा जाएगा वह निश्चित नहीं है। इस योजना में बीमा कंपनियों की वल्ले बल्ले है। डाक्टर, हास्पीटल, और बीमा कंपनियों से जुडे हर व्यक्ति के जेब गरम रहेगी। इसको गर्म करने के लिए मध्यम वर्ग की जेब को लूटा जाएगा। गरीब को लाइफ इंश्योरेंश में कोई रुचि नहीं होती। अमीरों का काला धन इन योजनाओं की शान होती है। और बचा मध्यम वर्ग जो अपनी मौत और अस्वस्थ होने के डर और परिवार के भविष्य की चिंता के चलते इन मामलों मेंभी हाथ पैर मारेगा। बजट के प्रकोप को कम करने के लिए यह योजना मलहम का काम करेगी। दूर से देखने में तो यह योजना गरीबों को पांच लाख रुपये का इलाज।  अन्य वर्गों को आठ से दस लाख तक का इलाज मुफ्त में कराएगा। परन्तु पिछली हकीकत तो भयावह लगती है।
प्रायोगिक रूप से देखें तो समझ में आएगा कि छ सात महीने इसको लागू करने में लगेगा, फिर  कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने में लगेगा,  उसके बाद,  परिवारों को जोड़ना, उनका डाटा और रिकार्ड को मेंटेन करना, फिर उसके बाद हास्पीटल्स को इंश्योरेंश कंपनियों को जोडना एक लंबे अवधि का काम है। स्वास्थ्य मंत्री जी का यह कहना कि लोग हेल्थ इंश्योरेंस की बातों को जानते हैं हमारे पास इससे  भी बेहतर हेल्थ माडल्स मौजूद है। जिसमें वेलनेस सेंटर खोल कर इन योजनाओं को घर घर तक पहुंचाने की योजना है। इस प्रकार की लोकलुभावनी योजना का कुछ फायदा वाकयै जनता को होना है या इस प्रकार की योजना सरकार अपने चुनावी फायदे, फंड और अपने कामों की नाकामियों को छुपाने के लिए जारी की है यह तो आने वाला वक्त बताएगा। इस योजना की तरह, पहले भी खाद सुरक्षा गारंटी योजना, मनरेगा, अटल पेंशन योजना, और भी अन्य ढेरों योजनाएं सरकार के द्वारा लागू की गई परन्तु गारंटी केयर की कम और वेल्फेयर की ज्यादा समझ में आई। इन योजनाओं में तो प्रीमियम बैंक सेक्टर तुरंत काट लेते हैं फंड कम होने पर भी माइनस बैलेंश दिखाकर काट लिया जाता है। और जब रिफंड का नंबर आता है तो कागजात की इतनी मांग की जाती है कि प्रीमियम देने वाला मध्यम वर्गीय मुखिया माथा पकड़ कर घुटने टेक लेता है। वित्त मंत्री जी जितनी मासूमियत से कैमरे के सामने घोषणा करते हैं और जनता के फायदे का वचन देते हैं। भुगतान के समय पर इन योजनाओं की नियम व शर्तें अपना रूप और रंग दोनों बदल लेते हैं। प्रारंभ में कुछ और भुगतान के समय पर कुछ और नजर आते हैं।
इस योजना में भी दस से पंद्रह हजार करोड़ खर्च करने का अनुमान सरकार ने बताया,  दो हजार उन्नीस में लोक सभा चुनाव है, स्वास्थ्य इफ्रास्ट्रक्चर उतना सुदृण नहीं है, सरकारी अस्पताल की तुलना प्राइवेट संस्थानों से की नहीं जा सकती, डाक्टर्स काम के प्रेशर की वजह से आत्महत्याएं कर रहे हैं। कुल मिलाकर सरकार अपने दिन अच्छे करने के चक्कर में आने वाले चुनावों का वोट बैंक तैयार कर रही है। और इस तैयारी का खर्च जनता से प्रीमियम जनता की बचत और सैलेरी खातों, सेस जैसे उपकरों के उठा रही है, आखिरकार कब तक सरकारी योजनाओं की नाव में बैठकर सरकार जनता से प्रीमियम, टैक्स, टैक्स पर भी उपकर, लेकर नौकरी पेशे वाले नागरिकों को लूटती रहेगी। हम सब यह जानते हैं कि उन लाभान्वित होने वाले पचार करोड नागरिकों में बेचारे मध्यम वर्ग के लोग नहीं आएगें, उनमें जुगाडू, पहुंच वाले, पहचान वाले, बीमा कंपनियों के कर्मचारियों के रिश्तेदार, डाक्टरों और हास्पीटल में काम करने वाले लोग और उनके रिश्तेदार , और तो और सरकारी अमलों के आस पास के महानुभाव ही लाभान्वित होंगे। मध्यम वर्ग के पास मात्र दिन भर की नौकरी, महीने की दस तारीख को तनख्वाह, डर की वजह से पालिशियों की प्रीमियम, और रात में सोने से पहले  टीवी चैनलों में चल रहे राजनैतिक ड्रामे और नौटंकी की बहस ही आएगा। बल्ले बल्ले तो उन लोगों की हैं जिन्हें कभी रिबेट दिया जाता है, जिनके बैंक लोन मेंछूट दी जाती है, जिनके पास अकूट धन और सत्ता का सुख है।
अनिल अयान
९४७९४११४०७

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