रविवार, 6 अगस्त 2017

राजनैतिक अलाव में जलता केरल

राजनैतिक अलाव में जलता केरल
हमारे देश का सबसे पढा लिखा प्रदेश केरल माना जाता है। यहां की साक्षरता लगभग ९० प्रतिशत को छू रही है। लोग पढे लिखे होने के साथ जागरुक भी हैं। पिछले कई दशकों में यह जागरुकता होने के बावजूद राजनैतिक अलाव में केरल की आम जनता और वहां के जन प्रतिनिधियों की लाशें बिछती चली जा रही है। छ दसकों से वहां सीपीएम और संघ के बीच की स्थिति गंभीर बनी हुई है। अमन की कोई उम्मीद नजर नहीं आती है। प्रतिशोध दर प्रतिशोध जानों का दुश्मन बना हुआ है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के जिले कन्नूर से ही तीन सौ लोगों को इस एजेंडे में स्वाहा कर दिया गया। कभी वाम पंथी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को दुर्दांत तरीके से मौत के घाट उतारा जाता है तो उसका बदला संघ के स्वयंसेवकों को मौत के घाट उतार कर लिया जाता है। विगत तीस जुलाई को जब केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में संघ के कार्यकर्ता की हत्या कर दी गयी। तो यह मुद्दा और गर्मा गया। बीजेपी इस हत्या के पीछे सीपीएम के कार्यकर्ताओं को दोषी बताया। एक प्रेस कांफ्रेस में तो मुख्य मंत्री तक का आपा बाहर हो गया और वो मीडिया को गेट आउट कहने पर विवश हो गया। साठ के दशक से जारी हिंसा अब भी जारी यह हिंसा और वीभत्स होती जा रही है। मारने के बाद अंग भंग करने तक की खबरे आती हैं। राज्य की मीडिया भले ही इसे दोनों दलों के हिंसात्मक रवैये का परिणाम मानते हों। परन्तु राष्ट्रीय न्यूज चैनल्स इन्हें संघ के पक्ष में लेजाने का प्रयास कर रहे हैं।
घटनाक्रम में देखें तो जुलाई माह में एक तरफ सीपीएम नेता सीवी धनराज की हत्या होती है और उसी दिन रात में बीजेपी कार्यकर्ता सी के रामचंद्रन की हत्या कर दी जाती है। धनराज की बरसी में बम से हमला होता है। तो सीपीएम के कार्यकर्ता संघकार्यालय को बम के हवाले कर देते हैं। वहीं पर उपद्रव में बीस घरों को आग के हवाले कर दिया जाता है। इसके पूर्व १० अक्टूबर को पिछले सल सीपीएम नेता के मोहनन की हत्या कर दी जाती है। उसी चौबीस घंटे के अंदर बीजेपी कार्यकर्ता रीमिथ की हत्या प्रतिशोध के रूप में लिया जाता है। और तो और मही में सीपीएम सरकार के विजय जुलूस में बंब से हमला करके उपद्रव मचाने की साजिश की जाती है। अर्थात मौत का बदला मौत से ही लिया जाता है। केरल की हिंसा पर रिसर्च करने वाली युनीवर्सीटी आफ केपटाउन की लेक्चरर रुचि चतुर्वेदी का कहना है कि इस खूनी प्रतिशोध में थिय्या जाति के लोग मारे जाते है। ये कम जमीन वाले साधारण तबके के लोग हैं। इनके युवा वर्ग दोनों राजनैतिक दलों में शामिल हैं इसलिये इन युवाओं का मौत से सामना अधिक होता है। बीआरपी भास्कर अपनी रिपोर्ट में कहता है कि इन हमलों में सीपीएम और संघ दोनों के कार्यकर्ताओं की मौतें हुई है। आरोपियों को सजा का प्रावधान है। केरल के हाई कोर्ट और सेसन कोर्ट ने कई मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।  जिसमें दिसम्बर सन सोलह में सीपीएम के बीस कार्यकर्ताओं को आजीवन कारावास की सजा हुई। इसी तरह दूसरे तरफ का भी हाल रहा। राजनैतिक दल वहां अपने नेताओं के चलते आराम से राजनीति चमका रहे हैं। और कार्यकर्ता आजीवन कारावास भोग रहे हैं। कन्नूर ही सबसे ज्यादा हत्या वाला जिला बना हुआ है।
केरल की सरकार को घेरने की पूरी तैयारी भाजपा द्वारा की जा रही है। सरकार बैकफुट पर है। कानूनव्यवस्था लगभग खत्म हो चुकी है। संघ के कार्यकर्ताओं की मौतों का सिलसला थमने के लिये वहां पर भाजपा शासन प्रमुखता से लाने की तैयारी है। राष्ट्रपति शासन की लगातार मांग उठना इस बात को शाबित करता है। संघ का मानना है कि केंद्र में भाजपा के होने के बावजूद ऐसी स्थिति जिसमें कि स्वयंसेवक मारे जा रहे हो और सत्तामौन धारण किये हो वह संघ के गले नहीं उतर रही है। उधर बीजेपी को लगता है कि इस मुद्दे की पतवार का सहारा लेकर वामपंथी सरकार को कुर्सी से उतार कर खुद काबिज हुआ जा सकता है। विस्तार और संगठन की मजबूती भी इस रणनीति का हिस्सा बन चुकी है।सवाल यह है कि यह छोटा सा राज्य बडे राजनैतिक कुरुक्षेत्र का अड्डा बन चुका है। जिसमें दोनों घटकों का यह मानना है कि तुम हमारे एक मारोगे हम तुम्हारे दस मारेंगें और वीभत्स तरीके से मारेंगें। राजनैतिक झंडावरदारों के लिये कानून मौन है। कार्यकर्ताओं के लिये कानून आजीवन कारावास की सजा देता है। एक पक्ष को सजाए ज्यादा है और दूसरे पक्ष को सजायें कम। कानून का दोगला पन भी इस अलाव का मुख्य वजह है। केंद्रीय कानून मंत्री इस मामले को संजीदगी से नहीं ले रही हैं क्योंकि उनहें लगता है कि यह मुद्दा जितना गरमायेगा उतना ही भाजपा का पक्ष वहां मजबूत होगा। देश में बहुमत दलीय राजनीतिक दल के रूप में भाजपा ही आज के समय में सर्वोपरि है। परन्तु सवाल यह उठता है कि लाशों पर कुर्सी में बैठे सीपीएम की निष्क्रियता और भाजपा की कुर्सी की दौड के बीच का द्वंद नैतिक रूप से कितना सही है। मीडिया पूरी तरह से भाजपा के साथ है जिसके चलते नेसनल लेवल पर यह राज्य नेपथ्य में जा चुका है। हालांकि राजनीति में नैतिकता की उम्मीद बेमानी है। परन्तु इस कूटनीतिक तंत्र में केरल फिल हाल अपने स्वस्थ होने की असफल प्रतीक्षा कर रहा है।
अनिल अयान,सतना

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