गुरुवार, 2 मार्च 2017

सबके साधे "ना" सब सधे

सबके साधे "ना" सब सधे
जब वित्त मंत्री जी ने कुछ पंक्तियां बजट के दौरान पढी - पंख ही काफी नहीं आसमां के लिये।हौसला हम सा चाहिये ऊंची उडानों के लिये। रोक रखी थी नदी की धार तुमने कहीं। लेके आए हम ही कुदाली उन मुहानों के लिये। आखिरकार इस पंक्तियों के मायने में गौर करें तो समझ में आयेगा कि पिछले तेरह सालों से मध्य प्रदेश में भाजपा का ही शासन है और एक छत्र राज है तब से अब तक आखिरकार ये कौन है कि जो नदी की धार को रोक रखा है। और ये कुदाली किस मुहाने में चलाने की तैयारी की जा रही है। और यह जरूरत तेरह सालों के शासन के बाद भी क्यों? खैर इन सब सवालात के जवाब तो बजट प्रस्तुत करने वाले हमारे वयोवृद्ध वित्त मंत्री जी को ही पता होगा। किंतु प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक पत्रकार के पूंछने पर वित्त मंत्री जी का तंज कहकर यह बोलना" हां यह पालिटिकल बजट है... आप कहिये क्या कहना चाहते हैं।"किस खीझ को सामने लाती है। बजट सत्र के दौरान अपनी आर्थिक उपलब्धियों को सत्र २००३-०४ से तुलना करना भी समझ के परे रहा। यह सत्र काग्रेस के शासन काल का था।जिसमें दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे।उनके शासन काल में राज्य की परिस्थितियों की तुलना आज बारह साल के बाद करना भी समझ के परे था।इन सालों में  बजट आज आठ से दस गुना बढ चुका है किंतु आंकडों में अभी भी तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा है और खुश हुआ जा रहा है। यह भी समझ के परे है। परन्तु इसके परे उनका कांफीडेंश घेरने वालों के लिये एक प्रश्न चिन्ह जरूर रहा ।
सरकार की तरफ से कर्मचारियों को सातवां वेतनमान देने की घोषणा की जो जनवरी से लागू हो रहा सेवा निवृति के बाद भी इसका लाभ कर्मचारियों को मिलने वाला है। पांच रुपये में दीनदयाल कैंटीन योजना के तहत खाना देने की घोषणा की गई। जिसकी राशि कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत जुटाई जायेगी। मेघावी बच्चों केलिये मुख्य मंत्री मेघावी विद्यार्थी योजना के तहत माध्यमिक शिक्षा मंडल के मेघावी विद्यार्थियों के लिये सरकार आर्थिक मदद मुहैया करायेंगी। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से निकली नर्मदा नदी के संरक्षण के लिये आसपास के वन भूमि में वृक्षारोपण हेतु भी अच्छा खासा बजट दिया गया। ताकी नदी  का संरक्षण हो सके।यह सरकार की तरफ से पहला प्रयास किया गया।सो यह तो सराहनीय होना ही था। परन्तु इस बजट में विंध्य को जैसे अछूत मान लिया गया। भोपाल से खुशहाली चली तो परन्तु अपने गंतव्यों तक शायद ही पहुंच पाये जहां उसे पहुंचना चाहिये।लाडलियों पर भी सरकार की मेहरबानी भी बखूबी दिखी।परन्तु सोचने वाली बात यह है कि सरकार किसानों और सर्वहारा वर्ग की बातें खूब करती है किंतु इस बजट में टैक्स के संदर्भ में पूरी तरह की खामोशी छाई रही। और तो और किसानों, खेती किसानी करने वाले जमीन से जुझे अन्नदाताओं के लिये कोई खुशखबरी नहीं दिखी।एक जुलाई से लागू होने वाले जीएसटी पर भी कोई चर्चा नहीं की गई ना ही कोई प्रशिक्षण केद्र खोलने की बात इस संदर्भ में की गई।किसानों के लिये मुख्यमंत्री जी हर जगह यह घोषणा करना कि कृषि प्रधान मध्य प्रदेश के किसानोम को विशेष पैकेज दिया जायेगा।साथ ही सब्सिडी को लेकर इस साल के बजट में नये ऐलान होंगे।यह सब धरे के धरे रह गये।सिंचाई परियोजनाओं को शुरू करने के लिये भी कोई प्रारंभिक कदम सरकार की तरफ से नहीं उठाया गया। फसलों का समुचित भाव ना मिलना और बैंकों की कुर्की प्रविधियों पर भी सरकार का मौन कहीं ना कहीं अन्नदाताओं केलिये घातक जरूर शाबित हो रहा है।
खीझ करके वित्तमंत्री जी का प्रेस कांफ्रेंश में यह कहना कि "हां यह पालिटिकल बजट है।आप कहिये क्या कहना चाहते हैं।" कई मायनों में लुभावने बजट की जमीनी हकीकत और विकास के गहरे पैमानों के बीच बजट की स्थिति को स्पष्ट करती है।यह तो तय है कि इस बार आर्थिक ढांचा पूरी तरह से चुनावी बिगुल को मद्देनजर रखते हुए ही सरकार ने बुनी है। तेरह सालों से अधिक शासन के बाद विकास की धार को भी कुदाली के सहारे अगर मोडने की जरूरत आन पडी तो विकास की धार की तीव्रता का अंदाजा लगाया जा सकता है। अब देखना यह है कि इन योजनाओं की नदी की धार कुदाली किस ओर मोडती है। जहां आवश्यकता है वहां की ओर या फिर खाये अघाये महानुभावों की ओर यह विकास आर्थिक धारा का बहाव होता है। इस बजट ने जहां नौकरी पेशा शासकीय और अशासकीय कर्मचारियों को राहत की सांस लेने का मौका दिया वहीं दूसरी ओर अन्नदाताओं और जीएसटी तथा टैक्स देने वालों के मुंह में ताले जड दिये है।अंतत यही मुख्य बात है कि सबको साधने की कोशिश में सब नहीं सधता। कुछ ना कुछ छूट ही जाता है। यह बात और है मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भले ही इस छूटने को रूटीन राजनीति का हिस्सा मान लिया जाये।
अनिल अयान सतना
९४७९४११४०७

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