रविवार, 1 जनवरी 2017

"नियमों की खुदाई" करते रेत माफिया

"नियमों की खुदाई" करते रेत माफिया
इसी रविवार को नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा का प्रारंभ किया गया जो ११ मई तक चलने वाली है. इसके जरिये संस्कारधानी से यह मिशन आगामी आने वाले समय में विकास की राह प्रशस्त करेगा.नर्मदा को हरियाली चूनर पहनाने की यह पहल अनोखी और आश्चर्यचकित करने वाली है.क्योंकि इसके पीछे भी बहुत से ऐसे कारक हैं जो कहीं ना कहीं इस मिशन में बाधक सिद्ध होंगें.हमारे देश में वर्ष भर बहने वाली ऐसी अनेकानेक नदियां हैं. गंगा के लिये समूचा मंत्रालय इसी कार्य के लिये कार्यरत है.किंतु परिणाम बहुत सुधारात्मक ढांचा नहीं बना पाया.देश भर को छोडिये हमारे महाकौशल और विंध्य में नदियां अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहीं हैं. नदियों से जुडने वाली आस्थायें इनके घाटों को मनुष्यों की भीड से सामना करने के लिये मजबूर करती हैं.उज्जैन की स्थिति सिंहस्थ के बाद हम सबके सामने है.हम चाहकर भी नैसर्गिक सौंदर्य को बचा नहीं पा रहे हैं.आम जनता के लिये नियम बने के बने रह जाते हैं. जनता उन्हें मानती भी है. परन्तु नदियों से जुडा एक और व्यापार है जो वैध और अवैध रूप से फल फूल रहा है.सरकार के पास उसकी खातिर कोई ठोस रण्नीति नहीं है.या सरकार की नीतियों को ये माफिया नदी के रेत के साथ खोद रहे हैं.इन सबके पीछे कौन जिम्मेवार है.यह सोचने का विषय है.हम सब जानते हैं कि आज कांक्रीट के शहर खडे करने के लिये रेत के विभिन्न प्रकारों की शहर को बहुत जरूरत है.सरकार इस पर लगाम कैसे लगायेगी.दोनो एक प्रकार से एक दूसरे के पूरक है.अगर रेत के उत्खनन को रोका जाता है तो नदियों का विस्तार बढता है.और अगर इस उत्खनन को बढाया जाता है तो नदियों का प्राकॄतिक अस्तित्व खतरे में आ जाता है.रेत का अवैध धंधा और इससे जुडे माफिया गिरोहो के लिये जितने नियम कायदे बनाये गये हैं वो महज देखने के लिये ही समझ में आते हैं.उनकी पूर्ति मात्र खानापूर्ति बनकर रह गयी है.अब इस दरमियां यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि नर्मदा के बहाने जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस यात्रा को प्रारंभ किया जा रहा है उसके संबंध रेत माफियाओं के साथ चोर चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करने की तरह ही संरचित हो रहे है.
अब मध्य प्रदेशसरकार को यह देखना होगा कि इस यात्रा का हस्र रामपथ यात्रा की तरह ना हो.क्योंकि अनिल दवे जी ने अपने राजनैतिक कैरियर के साथ साथ अपनी पुस्तक नर्मदा समग्र में लिखा है.कि नर्मदा को खतरा अपने ही रहनुमाओं से हैं.नर्मदा में खनिज संपदा के साथ साथ रेत का अथाह भंडार मौजूद हैं.जबलपुर से कटनी के बीच में इसका दोहन अधिकाधिक हो रहा है.इसकी प्रमुख वजह यह भी है कि सतपुडा और विध्यांचल पर्वत श्रेणियों से यह नदी रेत की अथाह मात्रा अपनी तली में समेटे हुये है.यही वजह है कि महाकौशल और विध्य में इस रेत के माफियाओं का सम्राज्य भारत के प्रमुख रेतमाफियाओं की सूची में टाप टेन में है.प्रशासन खुद अगर इन माफियाओं का संरक्षण करे तो फिर कैसे नर्मदा को नैसर्गिक सुंदरता प्रदान की जायेगी,.वर्तमान में तगाडियों और फावडों को किनारे करके अंधेरी रात में और सुबह के भोरंभोर में आधुनिक मशीनों के जरिये रेत के साथ नियमों की खुदाई भरपूर की जा रहीहै.इस बीच में माननीय मुख्यमंत्रीजी का यह कहना कि यह यात्रा अपने उद्देश्यों की पूर्ति करके रहेगी.इसका राजनैतिकीकरण नहीं होगा.बाला बच्चन जी का समर्थन और संकेतात्मक रूप से इस प्रकार के ब्रेकर्स के प्रति सरकार को सचेत करवाना भी इस सेवा यात्रा के लिये एक महत्वपूर्ण चुनौती बनकर उभरेगी.उद्देश्य तो बेहतर हैं किंतु इसकी पूर्ति के लिये चाहिये कि माफिया और उनके गुर्गों को ठिकाने लगाया जाये ताकि वो नियमों की खुदाई ना करके नदियों की नैसर्गिक सुंदरता हो बचाये. आज आवश्यकता है कि माननीय मुख्यमंत्री जी की इस यात्रा को सामाजिक और पर्यावरण सुधार के नजरिये से लिया जाये.
हमें यह ध्यान रखना होगा कि इस तारतम्य में अमरकंटक से नर्मदा के लिये चलाई जा रही यात्रा के अंतिम पडाव तक के नागरिकों को अपने स्तर पर कुछ ना कुछ पहल करना ही होगा.माननीय मुख्य मंत्री जी से हमारी यह अपेक्षा यही है कि उन्हें आपरेशन थियेटर में काम करने वाले सर्जन की तरह निर्दयी होना चाहिये ताकि रेत माफिया चाहे उनसे अगर  अप्रत्यक्ष रूप से तालुकात रखें या किसी विरोधी पार्टी से जुडाव रखे, दो ही स्थितियों समान सजा देने में उन्हें अपने कदम पीछे ना हटाना पडे .उनका यह प्रयास जितना सराहनीय है उतना ही कांटॊ भरा  है. बस यह मान लीजिये एक आग का दरिया है और दूब के जाना है.इसमें उनके सहयोगियों का सहयोग बहुत जरूरी है.साथ ही साथ उनसे जुडे प्रशासन का सहयोग भी इस यात्रा के उद्देश्यों को पूरा करने में मदद करेगा.वास्तविकता तो तब सामने आयेगी जब रेत माफियाओं और प्राकृतिक सौंदर्य को नष्ट करने वाले वन माफियाओं का नदी के किनारों से कब्जा हटेगा.इस अभियान की सफलता भी तभी है जब यात्रा से एक जागरुकता फैले जिससे नर्मदा ही नहीं बल्कि अन्य जीवन प्रदान करने वाली नदियां माफियाओं के चंगुल से मुक्त हों और हरित धन धान्य से परिपूर्ण हो. नर्मदा की तरह सोन,केन,मंदाकिनी और अन्य प्रचुर जल वाली नदियों के लिये उसके पर्यावरण हेतु एक पहल की आवश्यकता जितना समाज से हैं उतना ही प्रशासन और सरकार से है.
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७  

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