सोमवार, 21 नवंबर 2016

कभी "मुन्नी-शीला" कभी "सोनम" और अगली बार हमारी बेटी

कभी "मुन्नी-शीला" कभी "सोनम" और अगली बार हमारी बेटी
यह अप्रत्याशित मुद्दा ही था कि इस बार "सोनम" के कथानक को बाजार में नोट के ऊपर रखकर काफी उछाला गया.जब से नोटों का विमुद्रीकरण हुआ तब से इस नाम को इतनी लोकप्रियता मिली की कि हमारे समाज में रहने वाली इस नाम की औरतें, बहने, बेटियां,भाभियां,सालियां खुद बखुद लोगों की जुबां में आने लग गई.परिवार में मजाक करने वाले रिश्तों के बीच में रोजाना ही मजाक बन गया.पहले एक हजार की नोट,फिर पांच सौ और उसके बाद यह प्रक्रिया लगातार हर नोटों में यह लिख कर कि "सोनम गुप्ता बेवफा हैं" रातों रात कांट्रोवर्सी में आगई.सवाल यह खडा हुआ कि मीडिया ने यह मुद्दा इतना क्यों फैलाया.देश की सभी नेटवर्किंग साइट्स में यह मुद्दा काफी उछाल में आया. इसकी जड कहां से शुरू हुई यह किसी ने जानने की कोशिश नहीं की बस अपने अपने प्रोफाइल में साझा करना शुरू कर दिया. इस कथानक के जरिये जिस वैचारिक महामारी का फैलाव हुआ वह कहीं ना कहीं प्लेग से भी ज्यादा भयावह है.प्लेग का एक बार तो इलाज हो सकता है किंतु इस प्रकार की सस्ती लोकप्रियता को पाने के लिये देखा गया उत्साह सोनम के हर रिश्ते से जुडे लोगों को समाज में शर्म आने लगी.बिना दूरगामी परिणाम सोचे इस तरह की हरकत समाज में जिस झूठे ग्लोबलाइजेशन की हवा बह रही है वह किस दिशा में जा रही है यह सोचने का विषय है.चरित्र और सम्मान के नाम पर यह एक गहरी चोंट है जो मनो वैज्ञानिक रूप से एक बीमार व्यक्ति की आंतरिक व्यथा को समाज के सामने सिर्फ मजे लेने के बहाने फैला दिया गया। बिना यह सोचे कि असहज भाव का उस नाम की स्त्री पर क्या प्रभाव पडेगा।
बालीवुड में स्त्रियों के नामों को लेकर शुरू हुए अश्लील गानों की धुन पर नाचने वाले युवा अगर "मुन्नी बदनाम हुई  डार्लिंग तेरे लिये." और "शीला की जवानी" हमारी फीचर फिलमों के एक अंधकारमय पक्ष को उजागर करने में सफल रहे। तो दूसरी तरफ "सोनम गुप्ता" का विषय हमारे समाज में हाईटेक युवा दिल दिमाग और जिस्म की आंतरिक आग को शांत करने का केंद्र बिंदु बन जाता है.इन मामलों को हमारा समाज संज्ञान में नहीं लेता.हर घर ,हर कालोनी,हर कस्बे में इस नाम को रखने में पैरेंट्स हजार बार सोचेंगें कि हमारे घर की इज्जत के साथ भी वैचारिक बलात्कार हो सकता है.और अगला नाम क्या होगा यह कोई नहीं जानता, बार बार यह कहना कि अरे हो गया लोग जो कह रहे हैं कहने दो हमें कोई फर्क नहीं पडता.बेटियां सब जानती हैं. साहब सच्ची बात तो यह है कि हर सोनम गुप्ता का पिता भाई और पति कुछ पल के लिये झेप जाता होगा,यदि इस तरह के मुद्दों में यह नाम बार बार उसके सामने सुर्खी बनकर आता होगा. जब कोई यह कहता है कोई बात नहीं "इट्स ओके" तो यह मान कर चलिये कि उसका सब कुछ ओके नहीं है.यह एक मात्र घटना नहीं है.यदि हम इस घटना पर मौन हैं तो यह तो तय है कि अगला नंबर हमारे घर के बहन बेटी और मां का लगने वाला है. इस प्रकार की प्रसिद्धि किसी काम की नहीं है.इस मुद्दे में महिला समूह,उनसे जुडे हुए संस्थाये जिस चुप्पी को साधे बैठी हुई हैं वो हृदय विदारक है.यह किसी वैचारिक अत्याचार कम नहीं है.कभी कभी तो मै यह सोचता हूं कि सोनम गुप्ता तो इस मुद्दे में क्या सोचती होगी.कि अपने ही घर में अपने ही समाज में हमें नोटों में एक प्रेस नोट बनाकर छॊड दिया गया.हमने किसी से प्यार किया या नहीं किया हमारी प्राइवेसी को सार्वजनिक कर दिया गया. उसके बावजूद भी हमारे आसपास के भाई पट्टीदार और हमारी सुरक्षा के लिये प्रतिबद्ध संस्थायें भी इस लिये मौन हो गई क्योंकि हम से उन्हें कोई फेम नहीं मिलने वाला था. कोई लोकप्रियता नहीं मिलेगी. हमें सोशल मीडिया में सोसाइटी से उठा कर मजाक और घिनौने आनंद का हिस्सा बना लिया गया.एक खिलौने की तरह हमें खेलकर हमारी धज्जी धज्जी करके हाथ का मैल "रुपया पैसा" बनाकर सडक में फैंक दिया गया. वो भूल गये कि जिन्होने यह हरकत की कि आज तो सोनम गुप्ता है कल कोई और इसी तरह वैचारिक बलात्कार का हिस्सा बनेगी.और हमारा समाज हाथ में हाथ धरे अपनी बारी का इंतजार करता रहेगा.एक रात में मुझे मिस वर्ल्ड या सेलीब्रेटी बना दिया गया।मतलब यह कि मुझे अपनी अंदरूनी आग को भडकाने के बहाने पेट्रोल के रूप में उपयोग किया गया.लोगों की इस प्रवृति को रोकने की बजाय लोगों ने खूब उछाला.आखिर कब तक मेरा इस तरह जीना दूभर होता रहेगा.मै इस बात से आत्म हत्या भी कर सकती थी.किंतु इस लिये कदम रुक गये कि मेरे पिता का उसके बाद क्या होगा जब लोग कहेंगें कि इसी की बेटी असली सोनम गुप्ता रही होगी.इस लिये जब इसका जवाब मेरे पास भी नहीं इस लिये मै सिर्फ यही कह देती हूं कि लोगों का यही काम है वो कहते रहते हैं. लेकिन मै यह जरूर भगवान से प्रार्थना करूंगी कि दोषी को सोनम गुप्ता का पिता भाई और पति जरूर बनाये.इस जनम या अगले जनम इससे मुझे ज्यादा फर्क नहीं पडता, बालीवुड से शुरू हुई यह प्रथा कहीं ना कहीं आज सोशलमीडिया की नाक बनकर कटने के लिये सामने खडी है.
दुराचार का यह रूप बलात्कार के दैहिक रूप, ऐसिड अटैक,और यौन शोषण से ज्यादा दुष्कर है. पहले इस दंश की पीडा,फिर न्याय के गुहार के लिये पीडा और संघर्ष,और अंततः क्लेश के वजह से आत्महत्याकरने के बाद माता पिता के दिल में गिरने वाली चट्टान,एक बार विचार करके देखिये कितना दर्द है इस दर्दनाक सोशल मीडिया की करतूत पर,नोट में लिखकर इस किरदार इस नाम को भले ही अप्रत्याशित शेयर मिला हो,मीडिया को अप्रत्याशित टीआरपी टेलीवीजन रेटिंग प्वाइंट मिली हो. परन्तुयह ठीक उसी तरह लिखा गया जिस तरह की कोई हर दीवार में यह लिख दे "आप अपने मां- बहन- बेटी" के बलात्कारी है.और समाज आपको मुंह दिखाने लायक ना छॊडे.प्यार में किसी को छॊड देने को बेवफा कहना पुराने जमाने की बातें हो गई पर उस समय पर भी यह लिखा गया कि "जरूर कोई मजबूरियां रही होगी तेरी सनम, वरना यूं ही तू बेवफा नहीं होती",.आज इसके मायने जिस्मानी रिश्तों की दहलीज के दायरे में आगये हैं. महिला संगठन,एनजीओ,सुधार ग्रह और संस्थाये,इस प्रकार के मामलों में अगर चुप्पी साधे बैठी हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम सब मौन साध लें मौन ही अंतिम स्वीकृति होती है.हमारी जिम्मेवारी बनती हैं कि ऐसे यूजर्स को ब्लाक करने या उसका एकाउंट बंद करने की पहल करनी चाहिये.हमारा यह कदम समाज की चुप्पी टोडने की एक पहल तो हो ही सकता है. क्योंकि हमारे समाज में हमारे  परिवार में स्त्री हर रिश्तें में हमसे गहरा संबंध रखती है.इस लिये ऐसे भ्रामक और नीचता वाले प्रचार प्रसार को अपने मजबूत निर्णयों के माध्यम से बंद करे.ताकि उपर्युक्त नाम जैसे और किसी बहन बेटी और अन्य रिस्तों की धज्जी ना उडाई जाये सरे राह सरे चौराहे और सरे सोशल बाजार में.हमारे घर की इज्जत घर की ही नहीं हमारे समाज की भी मर्यादा है.सोशलमीडिया के बाजार में यह नीलाम हो यह तो किसी भी अभिभावक को गंवारा नहीं होना चाहिये.क्योंकि वह भी कभी किसी सोनम का पिता भाई और पति तो बनेगा ही.

अनिल अयान,सतना

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