गुरुवार, 17 नवंबर 2016

नमक से नमकहरामी

नमक से नमकहरामी
देखते ही देखते नमक का नमकीनपन छिनने लगा.एक ही रात में नमक २०० रुपये से ३०० रुपये किलो क्या बिका सभी लोग बोरियों में नमक रखकर सुकून की नींद सोने की तैयारी करने लगे स्वतंत्रता पूर्व एक बार महात्मा गांधी ने नमक के कर को समाप्त करने के लिये अंग्रेजी हुकूमत से लडने हेतु डांडी यात्रा की और देश को नमक के नमकीन स्वाद को और बढाया था.पर यहा तो नमक से ही तथाकथित लोग नमकहरामी करने के लिये उतारू हो गए. कभी कभी तो मुंशी प्रेमचंद्र के द्वारा लिखित कहानी नमक का दरोगा की याद आ जाती है.वैसे तो वो बेचारा अंततः पंडित अलोपी दीन के साथ होने को मजबूर हो जाता है.किंतु यहां तो ऐसे कथानकों की फौज खडी नजर आई जो कालाबाजारी और जमाखोरी के जरिये नमकहरामी करने की जुगत में लगे हुए थे.चाहकर भी जनता इनके चक्रव्यूह से बाहर ना आसकी।भ्रम का ऐसा मायाजाल इन्होने फैलाया कि लोग नमक के लिये भी तरसने को मोहताज हो गये.दिल्ली उत्तर प्रदेश और बिहार सहित उत्तर भारत के लगभग छ राज्यों में जिस तरह की नमक के नाम पर लोगों के घावों में नमक की नमकीन सतह लगाई गई वो चर्चा का विषय बन गया था. मीडिया ने भी इस नमक को अपनी पानी दारी से धुल ना सकी,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो नमकीन राजनीति करके यह भी बता दिया कि इसमे कहीं ना कहीं तथाकथित भाजपा और उनके समर्थकों का हांथ है ताकि नोटफ्लू और नोट बंदी के प्रभाव से ध्यान हटाया जा सके।
लोग जिस तरह जमा धन को निकालने के लिये पसीना बहा रहे हैं। उसी तरह लोग नमक खरीदने के लिये किराने की दुकानों में घूमते नजर आये.पर इस पर यकीन कर पाना कैसे संभव हैं जब भारत दुनिया में नमक उत्पादन और विक्रय में टाप पांच देशॊं की सूची में अपना स्थान बनाये हुये हैं.साथ ही साथ उसके उत्पादन का  वार्षिक टर्न ओवर ३ हजार करोड टन से ज्यादा है.अब देखने वाली बात यह है कि क्यों इस तरह की भ्रमयुक्त बातें जनता के पास तक पहुंचाई गई.क्या मीडिया इसमें योगदान नहीं दे रहा है.क्या राजनेता और बडे व्यवसाई पंडित अलोपीदीन का सम्राज्य दोबारा खडा हो रहा है. प्रेमचंद की कथा इस देश की वास्तविक स्थिति को घेरने के लिये दोबारा आतुर नजर आई.कुल मिलाकर इस तरह की घटनायें देश में कालाबाजारी और जमाखोरी की आवोहवा को बढाने का काम करती हैं.चाहकर भी कोई आम जनता को सुकून से जीने नहीं देना चाहता है.नमक के बहाने जनता के साथ गुस्ताखी करने की जहमत उठाकर एक और मुद्दे को गर्म तवें में परोसा जा रहा है.अब तो जनता जिस तरह परेशान है वह आशंकाओं के चक्रव्यूह में फंस कर कुछ भी कदम उठा सकती है.परन्तु बडी नोट को रद्दी में बदलने से पूर्व जनता लाइन में खडे होकर सरकार के निर्णय को सही भी ठहरा सकती है.किंतु सफेद नमक के काले रूप को कैसे बर्दास्त करे.जनता के लिये इस समय जो आर्थिक आपातकालीन स्थितियां बनी हैं उस बीच  काला बाजारी और और जमाखोरी को रोकने वाले नियामक और उनसे संबंधित नियम कानून ऐसे सोते हुए क्यों नजर आ रहे हैं जिसकी नाक के नीचे नमक से नमक हलाली घट गई.क्या नमक के दरोगे कहानी की तरह प्रशासन भी अलोपी दीन जैसे किरदारों की जागीर बनकर रह गया है.क्या यह शीतकालीन सत्र के समय उठने वाले सदन के भीतर के तूफान की आशंका है.इन सब प्रश्नों के जवाब खोजना ही होगा।
नमक तो एक मात्र सामान है.यदि राजनीति इसी तरह हावी रही तो आर्थिक के साथ साथ गृहस्त जरूरतों का आपातकाल ना शुरू हो जाये.नमक शक्कर,तेल आदि मूल भूत रसोई के सामानों को सामान्य रूप से पूर्ति बनाये रखना ही इसका मुख्य रास्ता है.उपभोक्ता और रिटेल मार्केटिंग से जुडे नियामकों को इसमें नजर रखने की आवश्यकता है ताकि इस प्रकार की स्थिति ना पैदा हो.भले ही हमारे पडोसी राज्य में चुनाव है तो इस प्रकार की स्थितियों से हमें रूबरू होने की आदत हमें डाल लेना चाहिये किंतु यदि हमारे राज्य में चुनाव की स्थिति में ऐसे दर्शन देखने को मिलेंगें तो कैसा महसूस होगा.अर्थ में अपना अर्थ खोजती आम जनता फिलहाल तो अपने अर्थ को सही ठिकाने लगाकर रोजाना रोजमर्रा की जरूरतों को सुलझाने में जुटी है.इसलिये संवैधानिक पद और समाज की चेतना ही इस तरह की अफवाहों और आशंकाओं का निवारण करा सकती है.हमारी चेतना ही हमें यह समझने के लिये समय देगी कि हमारे आसपास क्या हो रहा है और हमें उससे कैसे निपटना है.इसलिये नमक की कालाबाजारी और जमाखोरी को हम सब मिलकर शासन की मददसे छुटकारा पासकते हैं.हमारे बीच में बहुत से कथानक अलोपीदीन मौजूद हैं उनको खोजकर बेपर्दा करने की बस देर हैं.और नमक से नमकहरामी को रोकने की पहल करने जरूरत है।
अनिल् अयान
९४७९४११४०७

ayaananil@gmail.com

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