मंगलवार, 21 जून 2016

"राजन" के बाद कौन?

"राजन" के बाद कौन?
कुछ समय पूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी शासकीय सेवा से निर्वासन की घोषणा की.कुछ समय पहले तक रिजर्व बैंक के गवर्नर की पहचान नोटों में दस्तखत करने वाले प्राधिकारी तक सीमित थी.परन्तु रघुराम राजन ने पहली बार इस दायरे को टॊड कर काम दिये.राजन में लोगों की लोकप्रिय दिलचस्पी शुभ संकेत है कि लोग अब देश की आर्थिक और राजनैतिक समझ को बढाना चाहते हैं.रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन की पारी सामाप्ति की घोषणा पर राजनैतिक और आर्थिक विश्व की प्रतिक्रियाओं के अलग और आगे आम जनता में पनपा अनमनापन और असमति का भाव किसी भी अर्थशास्त्री के लिये अभूतपूर्व हो स्कता है. भारत देश में रिजर्व बैंक  अस्सी साल पुराना हो चुका है. अस्सी साल पुराने इस बैंक में जितने भी गवर्नर रहे किंतु फायनेंस और एकानामिक्स के गूढ और दुरूह दुर्गम अक्षर विश्व से दूर फासले पर खडे समाज की अनगढ और अनपढ ढेहरी पर रघुराम राजन की अलग पहचान बनी. इसका प्रमुख कारण यह भी था कि वो जनता के हक में खुल कर मीडिया से बातें करते थे और बेबाकी से रूबरू होते थे. उनका यह कहता कि लोगों को रास आया कि भारतीय अर्थव्यवस्था अंधों में काने राजा जैसी है. मोदी सरकार को लोग अडानी और अम्बानी की मित्र सरकार मानते हैं.रघुराम राजन सरकार और जनता के बीच की एक आर्थिक कडी के रूप में खुद को स्थापित करने का काम किया.ऐसा नहीं है कि मैने इस बहाने कांग्रेसी विचार धारा को यहां पर उठाया है किंतु यह भी सच है कि रघुराम राजन जैसे लोग अपनी विवेक शीलता के परे आम जनता के हित की बात बेबाकी से अपने लेक्चर्स में कई बार कह चुके हैं.
      रघुराम राजन के बारे में अमर्त्य सेन जो जाने माने अर्थशास्त्री हैं साथ में नोबल पुरुस्कार विजेता भी रहे, ने कहा राजन के जाने के मायने यह है कि भारत एक आर्थिक विचारक खो रहा है.उन्होने अपने विभिन्न तर्कों के आधार पर सिद्ध कर दिया कि भारत सरकार का फैसला दुखद क्यों है. पर अफसोस कि भारत की आम जनता जिसके पास राजन के बने रहने या ना रहने का कोई ठोस तर्क नहीं है वह भी उनके जाने में राजनैतिक षडयंत्र महसूस कर रही है.राजन के अचानक अपने पद से निर्वासन की घोषणा किसी हैरत कर देने वाली बात से कम नहीं है. उनके इस फैसले से सरकार भी असमंजस में थी कि राजन के बारे में क्या फैसला लिया जाये. जिस जल्द बाजी में अरुण जेटली जी ने राजन की पेशकश पर ट्वीट करके आभार व्यक्त किया उससे तो यही महसूस हुआ कि सरकार राहत महसूस कर रही है. राजन के निर्वासन से कहीं ना कहीं स्वदेशी दस्ता बहुत खुश है. क्योंकि वो ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने ने सरकारी पद में रहते हुये सरकार के कार्यों और आर्थिक दृष्टि के समीक्षा करके चेताया कि सरकार किस दिशा में भारत की अर्थव्यवस्था को लिये जा रही है. अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्री जब राजन के जाने का शॊक व्यक्त किये तो हम सब समझ सकते हैं कि देश को वर्तमान आर्थिक संकट के दौर में उनके जैसे गवर्नर की बहुत आवश्यकता है. इतना ही नहीं इन्फोसेस के को फाउंडर एन आर नारायण मूर्ति ने कहा कि मुझे भरोसा है कि राजन के जाने का यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिये कि अमेरिका और अन्य देशों में बसे भारतीय मूल के अन्य ग्रीन कार्ड होल्डर्स अब भारत के लिये अविश्वसनीय हैं. राजन के जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था से जुडे अर्थ जगत के लोग खुश नहीं हैं.केंद्र सरकार के लिये राजन जैसे छमताओं वाला गवर्नर ढूंढना सरल नहीं होगा.
      सरकार बनने के प्रारंभ से ही राजन के द्वारा मुद्रा स्फीति,रिजर्व बैंक के रैपो और रिवर्श रैपो रेट्स,मंहगाई दर,आदि विषयो पर सरकार कई बार आमने सामने हुई. भारतीय रुपये की अन्य देश की मुद्राओं की तुलना में गिरावट भी कहीं ना कहीं उनके लिये चिंता का विषय रहा. उनके रहने से यह महसूस हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था कम से कम सरकार की कठपुतली तो नहीं है. कोई तो है जो एकला चलो रे की सोच को आंगे बढा रहा है. इसलिये चुनावी दौर के प्रारंभ में मुद्रास्फीति के सवाल पर मोदी जी ने सीधे रिजर्व बैंक और यूपीए सरकार को आडे हाथों लिये थे.हम सभी को ध्यान होगा कि राजन के कार्यकाल के अंतिम समय पर विरोधी सुर पहले सुब्रमण्ड्यम स्वामी और बाद में एस गुरुमूर्ति के एक समय पर खूब उठाया. इन लोगों ने उनके मूल रूप से भारतीय होने पर संदेह व्यक्त किया. और उन्हें मानसिक रूप से विरोधी दर्शाया.किन्तु वास्तविकता यह है इस समय सरकार के लिये  रिजर्व बैंक का गवर्नर ढूंढना आसान नहीं है.अब देखना यह है कि क्या सरकार दूसरा राजन खोज पाती है या फिर वही पुराने ढर्रे पर रिजर्व बैंक के गवर्नर की पहचान नोटों में दस्तखत करने वाले प्राधिकारी तक सीमित रखने वाला गवर्नर नियुक्त किया जाता है. फैसला कुछ भी हो किंतु इसका संबंध कहीं ना कही जनता की जेब और भूख से जरूर संबंधित होगा.जिसका प्रभाव भारतकी अर्थव्व्यवस्था पर अच्छा या बुरा पडेगा ही. क्योंकि जिन बैंको में जनता का धन सुरक्षित है उसको शरण देने वाला रिजर्व बैंक के माई बाप जनता के भी रिश्तें में कुछ तो लगेगें ही.
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

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