शनिवार, 7 मई 2016

दलाली में जुगाली करती सियासत

दलाली में जुगाली करती सियासत
कांग्रेस का लोकतंत्र बचाओं का स्टंट उस समय पर निकल कर सामने आ रहा है जब इटली की अदालत ने गांधी परिवार को अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर की खरीदी में दलाली का मामला हावी हो चुका है. यूपीए सरकार के समय पर इस डील के अब पर्दाफाश होने से एक लाभ तो भाजपा को मिल रहा है कि बिना कुछ किये कांगेस अपने में उलझ चुकी है. अभी संसद के सत्र में इसके चलते कई बार बैठकें बाधित भी हुई.रक्षामंत्री बार बार इस बात का दिलाशा देते नजर आते हैं कि इस सौदे में हुई कांगेसी दलाली की गडबडी की जांच तेजी से कराई जा रही है. किंतु इस जांच की अंतिम रिपोर्ट के बारे में वो मौन धारण किये हुये हैं. इधर ज्योतिरादित्य सिंधिया जी का सोनिया गांधी को शेरनी कहता और राहुल गांधी का यह बयान देना कि जब भी उन्हे निशाना बनाया जाता है तो उन्हे खुशी होती है सबसे बडे बचकानेपन का जीता जागता उदाहरण है. इस सब घटनाक्रम को देखकर महसूस होता है कि यदि राहुल गांधी को इतनी ज्यादा खुशी है तो भिर वो लोकतंत्र बचाओ की रैली में शामिल होकर कपास औटने का काम कर रहे थे. कांगेसी नेता एक तरफ तो जनता की सहानुभूति लेने की सोच रहे हैं और दूसरी तरफ लोकतंत्र बचाओ के नाम पर अपने ऊपर पडे इटालियन सरकार के छीटों को साफ करने का समय भी खोज रहे है।
      अफसोस तो तब होता है जब भाजपा और कांग्रेस के अलावा भी जनतादल के नेता त्यागी जी और सपा के नेता रापगोपाल यादव जैसे राजनीतिज्ञ भी इस मसले को कोई बहुत बडा मसला स्वीकार करने को तैयार नहीं है उनके बयान तो भारत की व्यवस्था को कांग्रेस के हांथों में कसने की पैरवी करते अधिक नजर आते हैं.हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि बोफोर्स मामले का अंततः परिणाम बहुत सुखद नहीं रहा. इतिहास में झांकें तो समझ में आता है कि राजीव गांधी के सगे संबंधियों और करीबियों की तरफ जांच कमेटी की सुई घूमने के बावजूद भी उन्हें बोफोर्स घोटाले में सजा नहीं मिल सकी थी. सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि अगस्ता का हाल भी बोफोर्स की तरह ना हो जाये. यदि हम दलगत राजनीति को कुछपल के लिये एक किनारे रख दें तो हमें पता चलेगा कि इस दलाली में ए के एन्थोनी,मनमोहन सिंह सहित नामी गिरामी नाम साथ ही साथ सेना के उच्चपदाधिकारी भी सिकंजे में फंस चुके हैं. जिसकी पडताल भारत की जांच एजेंसियों को करनी हैं. दोषियों की शक्ल और नाम हमारे सामने है परन्तु देखना यह है कि कैसे यह सजा प्राप्त कर पाते हैं. आज के समय पर मीडिया की पहुंच जितनी ज्यादा तीव्र हुई है और दखल भी राजनीति में बढा है उससे कहीं ना कहीं यह मुद्दा और सुर्खियों में बने रहने की संभावना अधिक है. भारत की राजनीति में यह देखा गया कि. भारत की कोर्ट में मुकदमें चलते रहते हैं और राजनीतिज्ञ अपनी कुर्सी पाने के लिये दोबारा चुनाव लडता है और सत्ता में काबिज हो जाता है. अगस्ता वेस्टलैंड का मामला जितना कांग्रेस सरकार को घेरने का काम करता है उतना ही भाजपा की अग्नि परीक्षा के रूप में इस शासन काल में आया है. यह यदि कांग्रेस के कैरियर को डुबो सकता है तो भाजपा की कुर्सी को भी खतरे में डाल सकता है. हमें यह नहीं भूलना होगा कि यूपीए शासनकाल में यह मामला कांग्रेस के दबाव के चलते सीबीआई ने लगभग एक साल तक अपने पास दबाकर रखा उसके बाद प्रवर्तन निदेशालय को सुपुर्द किया. जांच एजेंसियों की संदिग्ध भूमिका, उनकी लचर व्यवस्था के साथ उन पर सत्तारूढ दल का अनावश्यक हस्ताक्षेप भी इस प्रकार की जांच प्रक्रियाओं की देरी का मुख्य कारण बनती हैं.
      इस बार पंद्रह दिन से ऊपर का समय गुजर चुका है.तस्वीर सरकार के सामने साफ हो चुकी है, परन्तु सरकार की तरफ से कोई ठोस और मजबूत कार्यवाही निकल कर जनता के सामने नहीं आ पाई है. सरकार की तरफ से सिर्फ छीछालेदर करने का काम किया जा रहा है. ऐसा लगता है कि भाजपा भी इस मुद्दे को कुछ लंबा खींचने की फिराक में है ताकि उसका लाभ विधानसभा चुनावों में वो ले सके.भाजपा और कांग्रेस पूरी तरह से विपरीत विचारधारा के राजनैतिक दल हैं भाजपा जब छोटी छोटी कांग्रेसी गल्तियों में मीनमेख निकालना और टांग खींचना नहीं छोडती तो फिर इस दलाली के मामले को इतनी आहिस्ता से क्यों धीमी गति से हैंडल किया जा रहा है.इसका कोई जवाब सरकार के पास नहीं है। यह जवाब ना होना भाजपा के लिये दलाली में जुगाली करने की तरह ही है. भाजपा मुद्दे को चब चबा कर कमजोर करने की जुगत में लगी है.जनता को यह गवारा नहीं है। जनता इस मामले में भोलेपन से नहीं समझना चाहती है.वो ना कांग्रेसी लोकतंत्र बचाओं की रैलियों से प्रभावित होने वाली है और ना ही काले धन को और अच्छे दिन के नाम पर ठगी को भूलने वाली है. यह मुद्दा रक्षा मंत्रालय,सरकार और काग्रेस सहित देश की आंतरिक व्यवस्था को ठेंगा दिखाता नजर आ रहा है
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

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