शनिवार, 2 अप्रैल 2016

वाह रे अभिव्यक्ति की आजादी

वाह रे अभिव्यक्ति की आजादी
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आज देश की राजनीति नया मोड ले चुकी है।पूरा मीडिया और राजनीतिक दलों का गुट अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश को तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और वामपंथ के नजरिये में इसके मूल्यांकन के तले विरोधी सुर सुनाई देने लगे है। जे एन यू से राष्ट्रद्रोह के बोलों का रूपांतरण राष्ट्रवाद के पूछ पकड कर पूरे देश में अपने पैर पसार रहा है। सभी विषय विशेषज्ञ इस पर अपने अपने विचार व्यक्त कर रहे है। जब सरकार अभिव्यक्ति की आजादी का रवैया अपनाती है तो अनुच्छेद ३५६ के तहत राष्ट्रपति शासन की मांग करने बैठ जाती है। कभी देश के शीर्ष के राजनेता और पत्रकार वामपंथ के शिकार होकर भावावेश में गर्व से खुद को राष्ट्रद्रोही मानने से कोई गुरेज नहीं करते है। सियासत के चलते कभी जातीय आरक्षण की आग राजस्थान के अंदर गुर्जर विरोध में तो कभी गुजरात के अंदर जाट विरोध के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी को तथाकथित उपयोग  दुरुपयोग करते नजर आते है। यह सब अभिव्यक्ति की आजादी की विभिन्न रंगीनियां हम सबके सामने आती है।
      अभिव्यक्ति की आजादी के चलते सीमा पर बहुत समय से मदेशियों के आंदोलन को सही ठहराया जाता है और नेपाल प्रभावित होता है।आज के समय पर देश सुलग रहा है जाट आंदोलन की आग में गुजरात से फैली यह आग देश के कई कोनों मे अपनी लपटें बिखेर चुकी है। देश की सरकार को आज भी इसकी चिंता कम और जे एन यू विवाद में अपनी गर्दन फंसाने से फुर्सत नहीं मिल पा रही है। आरक्षण भी अभिव्यक्ति की आजादी से उपजी अवसरवादिता का परिणाम ही तो है। जातीय समीकरण के चलते हर जाति के लोग अपने आप को इस छत्रछाया के तले सुरक्षित करना चाहता है। देखिये जनाब यह तो तय बात है कि हमारे पूर्वजों ने जातियों को हमारी पीठ में हमेंशा के लिये गोदवा दी है। पीढी दर पीढी हम अपनी जाति की मुर्दा लाश को अपने जीवन भर रोते मरते ढोते हैं। राजनीति में   हर राजनैतिक दल का यही प्रयास होता है कि उसको फायदा देने वाली जातियों को वो आरक्षित करे और वोट बैंक में अपने खाते के धन को बढाये। पूर्व की यूपीए सरकार ने कुछ ऐसे ही कर्म को अपने समय में पूर्ण करने की कोशिश की थी परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने उसको खारिज कर दिया था। अब खच्चर सरकार जाटों के चक्कर में बहुत बुरी तरह से फंस गई है। कभी तो यह भी देखा गया है कि कुछ राज्यों में राजपूत और ब्राह्मणों को भी आरक्षण की छत्रछाया देने की चिंगारी भडकाने की पहल कर करने में दल लगे हुये हैं। वसुंधरा राजे सरकार पिछले साल कुछ इसी तरह गुर्जर आंदोलन या कट्टर आरक्षण के पक्ष में अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उपजे तमाशे में फंसी थी। संविधान में आरक्षण और उसकी बारीकियों को पहले से स्पष्ट कर दिया गया है। तब भी इन लोगों को अपनी अभिव्यकित को व्यक्ति करने से फुर्सत हो तब तो कुछ परिणाम तक पहुंचा जाये।
      जे एन यू में अभिव्यक्ति की आजादी के सुर इस तरह बिगड गये हैं कि इसकी राह पर देश के अन्य विश्वविद्यालय भी इसकी राह पकड लिये हैं।जे एन यू में भगवा रंग अपने रंग में रंगने के पीछे युद्ध स्तर पर पड गया है। और कांग्रेसियों को यह बात गले नहीं उतर रही है। जूतम पैजार की वह स्थिति बनी हुई है कि न्यूज चैनल्स चर्चा के नाम पर अच्छी खासी टीआरपी बटॊरने में सफल हो रही है। केंद्र की राजनीति नहीं चाहती की यह मामला सुलझे इस लिये रोज नया प्रोपेगेंडा मीडिया तैयार करके दिन भर जनता को परोसती है।अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और वामटापू के बीच तूतू मैमै की फैंटेसी लिखी जा रही है। उधर दिल्ली में जल संकट भी किसी दल अभिव्यक्ति की आजादी का एक रूप ही है।कोर्ट को अपने निर्णय तक पहुंचने तक नहीं दिया जा रहा है। बाहर ही बाहर काग्रेस और भाजपा के नुमांइदे आपस में कटे मरे जा रहे हैं। एक दूसरे पर शब्दों के शस्त्र चलाये जा रहे है,उससे से भी यदि पेट नहीं भर रहा तो एक दूसरे पर मारा पीटी का कारनामा कर रहे हैं। इस समय एक विशेष माहोल बना हुआ है कि यदि देश में अपने आप को हाईलाइट करना है तो भाजपा पर बयान बाजी करो और कांग्रेस के समर्थन में बात करो नहीं तो केजरीवाल सरकार के खिलाफ चुटकी लो,, ‘कभी कभी भाजपा विरोधी रुख भी अपना लो,बस फिर क्या मीडिया आपको ढूंढेगी और अपने चैनल की चर्चा का हिस्सा बनाकर आपको वैचारिक वमन करने का भरपूर अवसर देगी। इस तरह आप अपनी अभिव्यक्ति की आजादी को बाजारवाद के दरवाजे में न्योछावर कर सकते हैं और बुद्धिजीवी बनकर मजे लूट सकते है। राजनीति का यह दस्तूर बन चुका है कि जब आप विपक्ष में हो तों आरक्षण,लेफ्ट राइट,और टांग खिंचाई को हवा दीजिये और सरकार का ढोल बजाइये जनता को उग्र बनाइये। और जब आप सरकार में पहुंचिये तो इनकी उग्रता का दुष्परिणाम भोगिये और अपना माथा ठोकिये। तब विपक्ष वाले आपकी टांग खींचेगें। यही तारतम्य चलता रहेगा और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बाजारवाद और समाजशास्त्र फलता फूलता रहेगा।अभिव्यक्ति की आजादी अब आम और बुद्धिजीवी वर्ग के अलावा नेताओं के घर में ज्यादा फल फूल रही है। पर हमेशा से ही आम जनता कहती थी,कहती है और भविष्य में भी कहती रहेगी वाह रे अभिव्यक्ति की आजादी।
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७


कोई टिप्पणी नहीं: