शनिवार, 2 अप्रैल 2016

वैचारिक गुलामी का गृह आतंकवाद

वैचारिक गुलामी का गृह आतंकवाद
वर्तमान समय में देश के राजनैतिक हालात और वैचारिक हालात आमने-सामने एक द्वंद युद्ध में टकरा रहे हैं। देश की युवा पीढी की जुबानी, बयानी और रवानी एक नई दिशा की ओर अग्रसर नजर रही है। जो विध्वंसक होने के साथ साथ खतरनाक भी है। इसी का लाभ युवा संगठनों को पर्याप्त रूप से मिल रहा है। रोहित वेमुला और कन्हैया जैसे लोग और उससे जुडे युवा राजनैतिक संगढन इसके जीते जागते उदाहरण उच्च शिक्षा में नजर रहा है।राजनीति हर काल में किसी ना किसी वैचारिक लहर का उन्माद युवाओं को छूता रहा है। इतिहास गवाह रहा है कि युवाओ की तीव्र वैचारिक शक्ति को आवश्यकतानुसार अपने स्वार्थ के लिये राजनैतिक दलों ने भरपूर उपयोग किया और इस देश की सत्ता को हथियाने में कोई कसर नहीं छोडी। विगत दशकों से जिस वामपंथ और दक्षिण पंथ ने एक ही घाट में आकर अपनी वैचारिक प्यास बुझाई है वो आज ज्यादा उग्र और आवेशित हो रहे हैं। यह चाहे देश की राजनीति की मांग हो या राजनीतिज्ञों की आपूर्ति दो एक दूसरे के संपूरक बनकर देश की सामाजिक समरसता को विघटित करने में हाथ धोकर पीछे पड गये हैं। यह विघटनकारी तत्व देश के मस्तिष्क उच्च और माध्यमिक शिक्षा के मंदिरों पर आघात करने के लिये लालायित नजर आते हैं।
      आज भारत को खतरा यदि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बनते बिगडते रिश्तों की वजह से महसूस होता है, तो इस बात से भी कोई गुरेज नहीं हैं भारत को वाम और दक्षिण पंथ के बदलते स्वरूप और उनके अंतर्द्वंद से कहीं ज्यादा खतरा महसूस होता है। मुस्लिम समुदाय की राजनीति देशभक्ति और धर्म के प्रति अपना रवैया चिंता का विषय उतना पेशे नजर नहीं है जितना कि वाम और दक्षिण पंथियों के बीच गैर आतंकवाद और आतंकवाद समर्थन में उठ रही आवाज को अपने उद्देश्य तक पहुंचाने में विभीषणगिरी को दिखाना है। यदि हम कुछ महीनों के इसी विषय को केंद्र मान कर शिक्षा संस्थानों के अंदर चल रहे शीत युद्ध पर नजर डालें हमें समझ में आयेगा कि संगठनों के प्रति विचारात्मक प्रतिबद्धता दिखाने के चक्कर में युवा वर्ग के तथाकथित नेतृत्वधारी मेमनवादिता, अफजलगुरुवादिता और, कट्टर इस्लामिक स्टेटवादिता के सुरो को अलापने का काम करने लगे हैं। समय सापेक्ष इस प्रकार की विचार शीलता की आग को दलगत राजनैतिक संगठन और उनके कट्टर किस्म के प्रचारक इसको हवा देने का काम बखूबी पूरा कर रहे है। रोहित वेमुला और उसके संगठन के विचारों और जे एन यू में उपजे विचारों का यदि तुलनात्मक समालोचना की जाये तो पता चलता है कि अभाविप और इन संगठनों का योगदान उस जगह भी था और इस जगह भी है। भीड में अपनी ओर ध्यानाकर्षण के चक्रव्यूह में इस प्रकार की विचारशीलता मीठा जहर बनकर रक्तवाहिनियों के साथ साथ मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र में खतरनाक ढंग से प्रवाहित हो रही है। आज पूरे देश में सिर्फ स्थान परिवर्तित हो रहे है परन्तु इस प्रकार की वैचारिक आग हर जगह नितनूतन भयावह होती जा रही है।
      मार्क्स और लेनिन ने जिस क्रांति को अंजाम दिया था उसके प्रभाव में भारत के अंदर जो कुछ भी हो रहा है वह पूरी तरह से विपरीत स्थिति पैदा कर रहा है। मजदूरों और पूंजीपतियों के बीच संघर्ष की दास्तान से प्रारंभ हुआ मार्क्स और लेनिन के जीवन के बलिदान को उनके भारतीय अनुयाईयों ने याकूब मेमन के समर्थन,अफजल गुरु के समर्थन,और इस्लामिक स्टेट के समर्थन में अपनी उर्जा को न्योछावर करने और भारत की नागरिकता के तले धार्मिक आतंकवाद को वैचारिक आतंकवाद के सहारे खेती करने की कोशिश में लगे हुये है। क्या इसी प्रगतिशीलता का पोषक भारत का युवावर्ग है। मां की कोख से जिसे राजनीति में कूदने की चुलुक चढी होती है वो युवा वर्ग इस तरह के विद्रोही प्रवृति का पालन पोषण करता है। कालेज में पहुंचते पहुंचते वैचारिक गुलामी का दंश झेलता है और गृह कलह से नये आतंकवाद को जन्म देता है। जिसका नाम होता है वैचारिक गुलामी का गृह आतंकवाद जिसमें हमे अपने ही घर के वैचारिक गुलामों से डर लगने लगता है।
      भारत में एक समय था जब विवेकानंद ने मानव निर्माण की शिक्षा और गांधी ने बुनियादी शिक्षा का प्रचार प्रसार किया था।आज के समय में दिल्ली में ही विद्रोह का तथाकथित संखनाद किया जा रहा है। यदि इनकी गतिविधियों को आईना लेकर प्रतिबिंब खोजा जाये तो समझ में आता है कि बीजेपी और उसके प्रभाव को खत्म करने के लिये इस प्रकार के समूह के लोग प्रोपेगेंडावाद का हुनर आजमा कर देश के माहौल को खराब करने और खुद को वर्तमान सरकार की नीतियों के कट्टर विरोधी बनाने की कोशिश कर रहे है।साथ खुद को आतंकवाद के नुमांइदों के फेहरिस्त में जाने अनजाने शामिल करने का प्रयास कर रहे है। इस प्रकार का रवैया देश की वैचारिक प्रगति के लिये सबसे नुकीला शूल बन रहा है। यदि विचारों से हम आतंकवाद के गुलाम हो गये तो निःसंदेश अभी तो शिक्षा के मंदिरों के अंदर प्रारंभ हुआ गतिरोध, विराट गृह युद्ध में तब्दील हो जायेगा। हमारी सरकार को चाहिये कि इस प्रकार के मसलों को राजनैतिक तूल देने की बजाय समाधान हेतु कडी से कडी सजा की अनुशंसा करनी चाहिये,न्यायपालिका को आनन फानन समय सापेक्ष निर्णय सुनाने की पहल करनी चाहिये ताकि इस तरह की आवेशजन्य गतिविधियों को पूरी तरह से समाप्त किया जा सके।


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