बुधवार, 6 अप्रैल 2016

धार्मिक समीकरणों का राजनैतिक सफर

धार्मिक समीकरणों का राजनैतिक सफर
दिसम्बर दो हजार पंद्रह से ही राम नाम का सफर धार्मिक समीकरणों की गाडी को राजनैतिक राह पर राजधानी एक्सप्रेस की तरह दौडाने की कवायद शुरू हो गई है। केंद्रीय मंद्री श्री स्वामी जी ने इस गाडी की कंडेक्ट्ररी का दायित्व बखूबी निभाया है। राम नाम मणि दीप धरे का अर्थ इस समय चरितार्थ करते इस मुद्दे से जुडे नुमाइंदे राम मंदिर निर्माण की तथाकथित दिनांक तक घोषित कर चुके हैं।आस्था के पर्याय भगवान श्री राम अब इंशान से ऊंचे घरौंदे में रहने की आस लिये इन संगढनों से उम्मीद लगाये बैठे हैं। मैने सुना था कि भगवान हमारे हृदय में निवास करते हैं। मूर्तिपूजा का प्रतिनिधित्व करते मंदिर इसके आधुनिक पर्याय बन चुके हैं। पांच वर्ष पूर्व इस विषय पर अदालत में मामले का निर्णय चुका था,जो अनियतकालिक रवैये की तरह ठंडे बस्ते में डाला जा चुका था। इस निर्णय में दोनो धार्मिक संप्रदाय कुछ वर्षों के लिये मौन धारण कर लिये थे। परन्तु केंद्र सरकार को उत्तर प्रदेश में सत्ता सुख ना प्राप्त होने का वनवास हमेशा की तरह इस बार भी खलने लगा है। केंद्र के चुनावों के समय पर वाराणसी को चुनावी बिगुल की प्रस्तावना के रूप में चुनना इस वनवास को खत्म करने के लिये समसामायिक निर्णय का प्रथम आहट थी,और अगला पडाव इसी दिसम्बर में संघ शक्ति महाशक्ति द्वारा प्रारंभ किया जा चुका है।
     यह बात छिपी नहीं है कि इस मुद्दे में केंद्रीय मंत्री श्री स्वामी जी द्वारा दिल्ली में किये जा रहे सेमीनार में काग्रेस के स्व.राजीव गांधी का जिक्र करना  कहीं ना कहीं राम मुद्दे में कांग्रेस का समर्थन प्राप्त करने के इरादे को स्पष्ट करता है। संघ शक्ति ने इस २०१६ सन को केंद्र सरकार के रथ में सवारी कर राम मंदिर निर्माण वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय ले चुकी है। ताकि २०१७ के चुनाव में राम के वनवास की तरह भाजपा भी उत्तर प्रदेश की सत्ता का वनवास खत्म करने के लिये चुनावी सुनामी को अपने पक्ष में काबू रख सके।स्व.राजीव गांधी का जिक्र भाजपा के द्वारा किया जाना इस आग में घी की भूमिका से कम नही हैं। जैसा कि हम जानते हैं अस्सी के दशक में इंदिरा गांधी की मृत्यु की संवेदना का सीधा लाभ उनके बेटे राजीव गांधी को उसदौर के लोक सभा चुनावों में मिला था। जब उन्होने किसी महिला के न्यायालयीन केस के चलते मुस्लिम महिला एक्ट में बदलाव करवाया तब भी हिंदूवादी शक्तियां उग्र हुई थी। इस आंधी को दिशा परिवर्तन के लिये उन्होने उस समय राम मंदिर का भूमि पूजन करके सबके चहेते बन गये।इसी तथ्य का लाभ आज भाजपा उठाना चाहती है,यह राजनीति के नजरिये से गलत नहीं है यदि कांग्रेस इसमें हाथ मिला लेती है। दिल्ली में इसतरह का आयोजन दोबारा केंद्र में धार्मिक विद्वेष को बढाने का काम करेगा। यह आग अयोध्या से लेकर दिल्ली की धरती में उत्तर प्रदेश चुनावों तक धधकती रहेगी।
     राम मंदिर की मंशा जितनी तीव्र हो गई है। वह समाज को यही संदेश देती है कि सारे हिंदू एक होकर इस वर्ष में राम मंदिर बनाने के लिये एडी चोटी का जोर अपने स्तर पर लगायें ताकि हमे सफलता हासिल हो। उधर बाबरी मस्जिद के आवेदकों का मानना है कि मोदी सरकार उनके साथ गलत नहीं करेगी। क्योंकि भले ही नरेंद्र मोदी इस विषय की धुरी हों परन्तु वो आज भी पाकिस्तान के साथ सहयोग की आशा रखते हैं और अपने देश में रह रहे मुसलिम समुदाय को हानि कदापि नहीं पहुंचायेंगें। बाबरी मस्जिद और राम मंदिर मुद्दे से कहीं ना कहीं जो आंच दोबारा उठ रही है वह सामाजिक समरसता के लिये हानिकारक है ।यदि हम न्यायिक परिदृश्य की बात करें तो क्या न्यायालय के विरोध में जाकर इस मुद्दे को संवैधानिक मोहर लगेगी। या सरकार का दबाव इस मुद्दे को दोबारा न्यायालय की बेंच में खोलने और चर्चा के लिये विवश करेगा। क्योंकि न्यायपालिका के विरुद्ध विधायिका के जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।राम मंदिर के लिये दिल्ली में सेमीनार का होना और अयोध्या में राम मंदिर के लिये मुहिम तेज करना एक बडे टकराव को जन्म दे रहा है अब देखना यह है कि इससे निकलने वाली आंच से संबंधित संगढन को उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में अनुमानित लाभ मिलता है  या फिर पूर्ववत स्व. राजीव गांधी की पहली पंच वर्षीय में चार सौ से ऊपर सीट प्राप्त करने वाली कांग्रेस सरकार की तरह नब्बे के दशक वाली हार का सामना करना पडता है।  हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि बिहार में भी इसी तरह के कुछ धार्मिक मुद्दों को आंच दी गई थी परन्तु हाल हम सबके सामने उपस्थित हो चुका है।
अनिल अयान
सतना
९४७९४११४०७


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