सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

आप के उनचास दिन तब और अब

                                                                        आप के उनचास दिन तब और अब
इस बार केजरीवाल की आप पार्टी सरकार ने उनचास दिन पूर्ण कर लिया है। इस बार लोकसभा चुनावों के बाद मिली करारी हार के बाद से ही आप पार्टी ने विधानसभा चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। उसी का नतीजा था की पूर्ण बहुमत के साथ आप पार्टी की दिल्ली में सरकार बनी।सरकार इस बार आसानी से अपने कार्यकाल के उनचास दिन पूर्ण कर ली।समय के साथ यह कहा जा सकता है कि केजरीवाल और उसकी टीम ने पिछली बार की तरह इस बार आप को राजनीति के दांव पेंच से लैस करके ही चैन पायी। यही कारण था कि आप के उनचास दिनों में एक नजर डाले तों तब के उनचास दिन और अब के उनचास दिनों में सरकार काफी हद तक संयमित रही है।परन्तु आंतरिक उठापटक के चलते इस बार भी आप पार्टी मीडिया में छाई रही।केजरीवाल ने इस बार विरोधियों को पूर्णतः बायकाट कर दिया।समय रहते राजनैतिक समझ का प्रचलन इस सरकार को निश्चित ही एक अच्छे मुकाम तक ले जायेगी।एक तुलनात्मक तरीके से देखें तो पता चलेगा कि किस तरह केजरीवाल जी ने इस बार सरकार और पार्टी संयोजन दोनो के लिये सभी साथियों को अपने रास्ते से बेदखल कर दिया।       
            यदि तब की केजरीवाल सरकार पर नजर डालें तो कई बातें सामने आती है।तब की सरकार में आप ने गठबंधन का सहारा लेकर सरकार बनाई थी।आप के सारे मंत्री लगभग राजनीति में नये और अनुभवहीन थे।राजनीति की ए,बी,सी,डी तक वो नहीं जानते थे।कांग्रेस ने बीच भंवर में जिस तरह से आप का साथ छॊडा था वह आप के लिये एक सीख साबित हुई।आप पार्टी ने पिछली बार एक समाजिक सेवक से राजनैतिक पार्टी के रूप में खुद को बदली थी।पिछले बार आपके कई निर्णय और कार्य आम जनता के लिये कारगर सिद्ध हुये।उन्होने दिल्ली को सुरक्षित बनाने की पहल की और यदि विरोध किया तो धरने और आंदोलन के रूप में जनता के सामने आया।जनता को यह लगा कि सरकार उससे पूँछ कर उसके विकास के लिये कार्य कर रही है।जनत अके मन में संतोष था।केजरीवाल सरकार ने लोकपाल का पुरजोर समर्थन किया और उसके लिये जनता जनता जनार्दन और अन्य पार्टियों से चरचा भी की परन्तु कोई परिणाम नहीं मिला एक कमी की वजह से वो राजनीति की डगर से भटक गई वो थी जनता की सेवा करने की बजाय लोकसभा का ज्यादा मोह कर जाना और तो और जिस जनता से पूँछ कर सपथ लेना उसी से बिना पूँछे इस्तीफा दे देना।जनता को समझ में आ गया कि आप पार्टी लालची और अन्य पार्टियों की तरह कुर्सियों का मोह लिये हुये है।और इसी का परिणाम था कि उनचास दिन का अनुभव रखने वाली आप लोकसभा चुनाव में अपना मोहभंग करके हार का चेहरा देखने को मजबूर हुई।
            दिल्ली वासियों को लगा कि आप की पहली गल्ती थी जो अनुभवहीनता के बल पर की गई थी।वह मोदीमय भाजपा का कार्यकाल भी देख चुकी थी।और कांग्रेस के दस साल का दंश झेल चुकी थी।अतः इस विधानसभा चुनाव में उसने दोबारा आप को पूर्ण बहुमत देकर विजयी बनाया ताकि वो दिल्ली को देश का सबसे अच्छा राज्य बनाने में कुछ तो कदम उठाये।इस बार तो आप के अंदर ही जूतम पैजार देखने को मिल गई।एक व्यक्ति कुमार विश्वास को छोड कर अन्य लोगों ने यहाँ तक की केजरीवाल खुद अपना आपा खो बैठे।स्टिंग आपरेशन की ऐसी आंधी चली और विभीषणगिरी ऐसे चली की आप के आंतरिक कलह सडक में दिखाई पडा।परन्तु इस बार की सरकार ने पहले की तरह कोई गल्ती नहीं की।लोकपाल को कोसो दूर फेंक दिया।आम जनता की बजाय समाज के धन्ना सेठों को मनोरंजन करने का काम किया।अन्य पार्टियों के साथ सामन्जस्य बिठा कर काम किया।केंद्र सरकार से उसका गतिरोध जरूर रहा।स्वतंत्र राज्य की मांग और अन्य राजनैतिक मुद्दों में कहीं ना कहीं पार्टी को विरोध झेलना पडा।परन्तु पिछली बार से हुये कम विरोध की वजह से इस बार के उनचास दिन ज्यादा सरल थे।
            इस बार की सरकार के बाद केजरीवाल को एक अप्रैल को केजरीवाल दिवस का केंद्र बिंदु बनना पडा।जनता को मूर्ख बनाने के कदवार नेता के रूप में छवि लोगों के सामने प्रकाश में आयी।अपने विरोधियों को बेदखल करना पार्टी के लिये जन्मघुट्टी की तरह था।परन्तु लोकपाल को छोडना कहीं ना कहीं अन्ना आंदोलन और जनता के साथ छलावा के रूप में सामने आयी।सरकार भले ही इन दिनों को अच्छे दिन के रूप में ले रही हो परन्तु हकीकत यह है कि इस तरह की पार्टी का भविष्य़ कितना उज्ज्वल और कालजयी है यह विचार का विषय है।दिल्ली की दशा और दिशा आज के समय में क्या है और क्या होगी यह इसी पार्टी की जिम्मेवारी है।और यह भी हम सब जानते है किं दिल्ली सिर्फ राज्य नहीं है वरन केंद्र का नेतृत्व यहीं से हो रहा है।और यदि यहाँ पर अस्थिरता रहेगी तो देश में अस्थिरता बनी ही रहेगी।केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते केंद्र सरकार की भी जिम्मेवारी है कि दिल्ली हर मायने में देश के विकास के सहायक हो।

अनिल अयान सतना

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