सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

यहाँ हर खंड पाखंड

यहाँ हर खंड पाखंड
यह हमारे देश की विशंगति है कि हिन्दू भक्तों की आस्था के साथ हमेशा ही धार्मिक पाखंड हुआ है और उनकी आस्था तार तार हुई है।क्योंकि आज के समय में धर्म कर्म सिर्फ बाजार का रूप ले चुका है। हर जगह दिखावा का युग है। पहले के समय में बाबा,पीर,फकीर और अन्य प्रकार के साधू संत अपने तप के दम पर लोगों को आकर्षित करते थे।आज के समय में भक्त जन अपनी आस्था के अनुरूप जब गुरुओं का चुनाव करते हैं तो वो उनका ऐश्वर्य,वैभव और उनकी मोहक छद्म छवि को मन में रखकर चुनाव की प्रक्रिया को अंजाम देते हैं।जितना विवाद आज राधे माँ पर हो रहा है उतना ही विवाद कुछ दिनों पूर्व आशाराम बापू को उनके भक्तों के द्वारा जेल में मिलने के लिये भी हुआ था।हमारा देश अंधभक्ति का देश बनता जा रहा है। राधे माँ के आधुनिकीकरण पर इतना हल्ला आखिरकार मचा क्यों हुआ है।क्यों यह जमीन फटी जा रही है और आसमान टूट रहा है। राधे माँ का रूप धारण कर नख- सिख, सज-धज कर वो महिला सरे आम लोगों को बेवकूफ ही बनाये जा रही है। तो भी लोग उसका पक्ष लेकर उसका समर्थन कर रहे हैं। जब कुछ साल पहले उसके ष्आई लव यू भक्तोंष्  की क्लिपिंग टीवी में दिखाई गई थी और विवाद हुआ था तब लोगों ने कोई खास कार्यवाही नहीं की थी।उस समय का समर्थन ही आज की इस विडंबना की जड बनी है।
समय गुजरने के साथ साथ जब तथाकथित धर्मगुरु और अहं ब्रह्मास्मि का भाव रखने वाली राधे माँ विवादों में फंसती चली गई तब मीडिया और अन्य लोग उन पर हाबी होते गये।हमे यह नहीं भूलना चाहिये कि भारत धर्म बाहुल्य देश है और इस देश मे सनातन धर्म मानने वाले हर उस तपस्वी का सम्मान हुआ है जो उस योग्य है।यहाँ पर इस परिपाटी को चलाने के लिये मठों का निर्माण किया गया है वहाँ शंकराचार्य नियुक्त किये गये हैं। उनके अपने धार्मिक नियम कायदों के अनुसार धर्मगुरुओं की पढाई होती है और उनका संस्कार होता है तब जाकर कोई अपना शिष्य बना सकता है और दीक्षा दे सकता है या ले सकता है। परन्तु विगत कई वर्षों से स्वघोषित महामंडलेश्वर और धर्मगुरु और तथाकथित गुरु मातायें, देवियाँ और साध्वियाँ सामान्य जनता को धर्म पर आस्था के नाम पर अच्छा खासा व्यवसाय चला रहे हैं। भक्तों की आस्था के साथ आधुनिक उपकरणों के माध्यम से भी आधुनिकीकरण हुआ है। और मीडिया के कई चैनल्स इसी धार्मिक बाजार की टीआरपी से अपने कर्मचारियों को वेतन भुगतान कर रहे हैं।कई अच्छे नामी गिरामी चैनल्स में इस प्रकार के भक्तिमय आयोजनों को बडे बडे धनाड्य लोगों द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में रिपीट टेलीकास्ट किया जाता है।यह सब भी कहीं ना कहीं कारण है जनता के भ्रमित होने ले पीछे।आज के समय में जनता उन युवा गुरुओं और साध्वियों को अधिक सुनना पसंद करती है जो वास्तविक विषय के अलावा उनका मनोरंजन करने का भी काम करते हैं। युवा और आकर्षक रूप रंग वाले और रूप धारण कर नख- सिख तक सज-धज कर मंच से मनमोहक भाव भंगिमाओं के द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले साधू-साध्वियों को लोग अपना गुरु मान बैठते है और अंततः भक्तों का शोषण भी इसी तरह के धार्मिक व्यापारी करते हैं।राधे माँ भी इसी तरह की स्वनामधन्य व्यापारी महिला है।
आज की समस्या उसका आधुनिकीकरण युक्त रूप नहीं बल्कि उसके द्वारा भरा जाने वाला वह स्वांग है जिस पर मोहित होकर लोग उसे गोद में उठाने और धन लुटाने के लिये पागल हुये जा रहे हैं।यदि ऐसा होता रहेगा और हम अपनी आस्था को अंध भक्ति में परिवर्तित होने से नहीं रोकेंगे तो आने वाले समय में एक नहीं कई राधे माँ आयेंगी और मूर्ख अंधविश्वासी भक्त उनके जयकारे लगाकर उनके चरणों की धूलि बनने के लिये खुद को प्रस्तुत कर देगें।हम जरा गिरेबान में झाँककर देखें कि ये आम लोग अपने मीठे बात करने के अंदाज से और टीवी चैनल्स की लाइट्स के सामने सरे आम लाग लपेट कर हम सबको बरगलाते हैं और हर प्रकार के धतकरम करवाते हैं और हम सब इन लोगों को भगवान से साथ स्थान देकर  माँ,बापू,दीदी और आस्था के अन्य रिस्ते बना लेते हैं। हम यह क्यों नहीं समझते कि ये आस्था के नाम पर अपना व्यापार चला रहे हैं। लोग इस प्रकार का व्यापार करने में छिपते छिपाते हैं परन्तु इस तरह के बहरूपिये अपना चोला परिवर्तित करके डंके की चोंट पर आप सब से मंजीरे और ढोलक बजवाते हैं, और खुद उस पर धार्मिक व्यावसायिकता का नृत्य करते हर जगह नजर आते हैं। इस समाज में जब तक अंधभक्ति आस्था की प्रतिरूपात्मकता बंद नहीं होगी तब तक ये लोग जनता और समाज को सरे आम पाखंड की आग में झोंक कर, स्वयं आनंदमय जीवन जीते हुये धरती में स्वर्ग का सुख भोगते रहेंगें।आज पाखंड को खंड खंड करने की आवश्यकता है।
अनिल अयान, सतना

कोई टिप्पणी नहीं: