सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

अतिउत्साहित बयानों से उठते विवाद
राजनीति में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से समाज को अब खतरे नजर आने लगे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का माध्यम अब गलत दिशा की ओर जाने लगा है। पदलोलुपता के चलते राजनीतिज्ञ अपनी मर्यादा को भूलकर कुछ भी,किसी के बारे में और कभी भी बयान देने से बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते है।वो यह नही सोचते हैं कि दिये जाने वाले बयानों से राजनीति के मैदान में क्या उहापोह की स्थिति निर्मित हो जायेगी।उसका समाज में क्या प्रभाव पडेगा और तो और उनकी पार्टी और सरकार पर कितना दुष्प्रभाव पडेगा।अब वक्त आ गया है कि भविष्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पुर्नपरिभाषित किया जाना चाहिये।
बयानबाजी में पश्चिम बंगाल के मंत्रियों की बात की जाये,उत्तर प्रदेश के मंत्रियों की बात की जाये,या फिर भारत की केंद्र सरकार के मंत्रियों और सांसदों की बात की जाय सभी एक से बढकर एक बयान देकर सुर्खियों में बने रहने की चेष्टा करते है और गाहे बगाहे विवादों में घिर जाते हैं।इस सरकार के बनने के बाद और नरेंद्र मोदी जी के कहने के बाद भी सांसद अपनी सीमा को लाँघ कर अभद्र बयान देते हैं।कभी राष्ट्रपिता बापू को गोली मारने वाले नाथू राम गोडसे को देशभक्त कहते हैं।कभी महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी की जाती है।कभी महिलाओं के पहनावे और उनकी नौकरी करने पर रोक की बात की जाती है।कभी पश्चिम बंगाल में महिला सांसदों के द्वारा अपने कपडे खुद फाडकर दूसरे पार्टी सांसदो के द्वारा किये जाने वाले बलात्कार की बात की जाती है। कभी निर्भया दुष्कर्म को बहुत छोटी घटना का रूप दिया जाता है। और कभी सांई के ऊपर अभद्र बयान दिये जाते है।कभी साधू,कभी संत,कभी साध्वी और कभी सांसद महिलाओं को केंद्र बिंदु बना कर अनाब सनाब ,अनर्गल प्रलाप करने से बाज नहीं आते है।
इस बार तो हद इस बात पे हो गई की साध्वी प्राची और साक्षी महराज वर्तमान सांसद भारतीयों को कितने बच्चे पैदा करने चाहिये इसका निर्णय कर बैठे।भले ही भाजपा के द्वारा साक्षी महराज को नोटिस दी गई पर साध्वी प्राची की जुबान पर कौन लगाम लगायेगा।क्या स्त्री को सिर्फ जननी का कार्य सौंपना चाहते है।और कोई दंपति कितने बच्चे पैदा करेंगें यह निर्णय करने और इसके माध्यम से हिंदू कहलाने की पुष्टि करने का अधिकार इन धर्म के ठेकेदारों को किसने प्रदान किया है।हम सब जानते है कि यह मुद्दा नितांत ही व्यतिगत है और इस तरह से बयान बाजी सरकार की गरिमा को धूमिल कर रहा है।साध्वी प्राची का इस बयान में टिके रहने का क्या तात्पर्य है क्या वो महिला होकर महिलाओं की पीडा और संघर्ष को नजरंदाज करना चाहती है।इस प्रकार के बयान अविवाहित सांसदों चाहे वह स्त्री हों या पुरुष हो के मुँह से शोभा नहीं देते है। उन्हें नहीं पता कि आज के समय में बच्चों को पैदा करने में ,पालन पोषण करने में और उनको इस समाज में सम्मान जनक स्थान दिलाने में कितनी मेहनत,संघर्ष और नियोजन करना पडता है।
एक तरफ प्रधानमंत्री जी वाईब्रेंट गुजरात के माध्यम से विदेशों को भारत की सर्वसत्ता का भान करा रहें हैं और दूसरी तरफ ये लोग अपने अनर्गल बयान बाजी से स्त्री को अपशब्द और व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत बातों और उनके बेडरूम तक घुसने की बात करते है। यदि ऐसा होने लगा तो छोटा परिवार सुखी परिवार,और परिवार नियोजन जैसी स्वास्थ्य मंत्रालय की योजनाओं को ठेंगा दिखाती नजर आती है।आज इस वर्तमान भारत में इस प्रकार के बयान बाजी करने में हिंदूवादी संगढनों को सरकार की नीतियों के विरोध में आकर बयान देने से कौन रोकेगा। नरेंद्र मोदी खुद सरकार के मुखिया इस प्रकार के अनर्गल अतिवादिता से ग्रसित नहीं है तो सरकार के सभी टीम मेंबर्स को उन्हें फालो करना चाहिये।आज के विकास के युग में भारत को हिंदूवादी राष्ट्र बनाने की जिदवाले बयान देना सर्वधर्म संभाव और सुशासन की परिकल्पना को फाँसी देने जैसा है।इसी तरह की बयान बाजी यदि होती रही तो वह दिन दूर नहीं है कि जब लोग नरेद्र मोदी को पसंद करेंगें परन्तु उनकी टीम के लीडरों से नफरत करेंगें।और मोदीमय भारत सिर्फ इनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कारण वोटों की गणित बिगड जायेगी।इस उदाहरण वाराणसी के निकाय चुनावों में भाजपा को मिली करारी हार है। इस लिये यह ध्यान रखना चाहिये कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यदि अधिकार है तो मर्यादा में रहकर जुबान खोलना इस समाज के लिये एक कर्तव्य है जिसे सरकार में बैठे हर व्यक्ति को अच्छी तरह से समझ लेना होगा।
सोच समझकर बोलिये, जग में हर एक बोल।
वरना मिट ही जायेगा, इस जग से तेरा मोल।
अनिल अयान,सतना

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