सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

धर्मांतरण के ज्वलंत सवाल

धर्मांतरण के ज्वलंत सवाल
धर्मांतरण के नाम पर हमेशा से विरोध रहा है।विशेषकर ईसाइयों और मिशनरियों का विस्तार इस देश की राजनीति को हमेशा से गर्म करता रहा है।राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद भी हम सबसे छिपा नहीं है। हमेशा ही जब भी दो धर्मों के त्योहार एक ही दिन को पडते हैं तब प्रशासन के हाथ पाँव फूलने लगते हैं। वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बयान जिसमें उन्होने अल्पसंख्यकों के सुरक्षा का जिम्मा अपनी सरकार के हाथों में लेकर सभी अल्प संख्यकों को आस्वस्त किया है उसके बाद से ही उप्र और बिहार में चर्च में हमले और नन के साथ बलात्कार जैसी घटनाओं का प्रारंभ हुआ।इन घटनाओं ने धर्मांतरण के विषय पर नई बहस छेड दी है। और गृह मंत्रालय की यह कोशिश कितनी  प्रभावी होगी यह बताना कठिन है।क्योंकि दिया तले अंधेरा खुद नजर आ रहा है।
भाजपा का संबंध जिस विचारधारा से है उसमें देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की ही प्राथमिकता है।इसके लिये सारे हिंदू वादी संगढन एक मत हैं।यह उनके अनुसार सही है क्योंकि हिंदू धर्म पुरातन है और अन्य धर्म इसकी ही संतति है।उनके मत के अनुसार यह देश पहले हिंदुस्तान के नाम से जाना जाता था।जो विवेचना के तर्क सम्मत में खरा उतरता है।इन परिस्थितियों के चलते अपने अपने ढोल और अपने अपने पोल बजाने की कला का बेजोड उदाहरण जो सामने हम सबके आया है वह कितना सार्थक है यह सोचने का विषय है।या फिर राजनीति का एक हतकंडा है जो समय समय पर सभी राजनैतिक व्यक्तित्वों पर लागू होता है।
स्वतंत्रता के बाद सभी को संविधान सभा ने उपासना और धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया था।जिसके अंतर्गत माननीय प्रधानमंत्री जी ने दिल्ली के एक अल्पसंख्यक मिशनरी कार्यक्रम में यह बयान दिया कि हर नागरिक के अपनी पसंद के धर्म को अपनाने और मानने के अधिकार की रक्षा के लिये उनकी सरकार वचन बद्ध है। वहीं दूसरी ओर उनकी पार्टी और विहिप जैसे हिंदू धर्म रक्षा मंच के उच्च पदाधिकारी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं।उनकी तरफ से ये बयान आता है कि जहाँ पर ईसाई है हीं नहीं वहाँ पर चर्च का निर्माण गलत है।इस तरह एक ही पार्टी के अलग अलग छोरों से अलग तरह की बाते निकल कर सामने आती हैं।
 हमारे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रदेश अल्प संख्यक आयोग के सामने कई सवाल रखे और बाद में ट्वीटर में उन्हें दुनिया के सामने रखा।हमें उन सवालों पर भी गौर करना चाहिये।क्या धर्मांतरण जरूरी है,क्या धर्म परिवर्तन के बिना समाज सेवा नहीं किया जा सकता है।क्या धर्म  परिवर्तन के बिना भारत में सभी धर्म फल फूल नहीं सकते,और क्या भारत देश अपनी जनसंख्या की पहचान एवं स्वरूप में बदलाव की इजाजत देता है।इन ज्वलंत सवालों पर एक स्वस्थ्य और गंभीर बहस की जरूरत है।यदि मीडिया में इस तरह की बहस होती है तो सभी प्रतिनिधि अपना अपना राग अलापते हैं और संयोजक उनका चेहरा देखता रह जाता है।
धर्म का स्ंबंध सदैव आत्मीय उन्न्यन से रहा है वो आस्था जिसे धारण किया जा सके उसे धर्म मानना चाहिये।और इस हेतु इच्छित मार्ग चुनने के लिये किसी को रोकना और व्यवधान उतपन्न करके उसे प्रताडित करना अनुचित है।धर्म का मूल अरथ धारण करने से है। गतिरोध तब आता है जब लालच, सुविधाये,और मुद्रा देकर या फिर जबरन दूसरा धर्म धारण करने के लिये कोशिश की जाती है।इसके लिये मिशनरीज और अन्य संगढन कैंप लगाते हैं।उन्हें वैचारिक रूप से परिवर्तित किया जाता है क्या इस प्रयासो के लिये देश में कानून बनने के बावजूद इसके सक्रियता के बारे में कार्य करना चाहियैं
घर वापसी जैसे कार्यक्रम ,केरल जैसे राज्य में धर्म परिवर्तन जैसे विषय इनका निदान क्या है।कई हलकों से य ेप्रश्न उभरकर आते हैं कि घरवापसी के गर्माये माहौल के बीच चर्च के हमलों के बीच इस तरह के सवालात और बयान धर्म निरपेक्षता का छिद्रान्वेषण है या कुछ और उनकी पहल और अल्प संख्यको की सुरक्षा का भार लेकर देश को सर्वधर्म सम्भाव का मसीहा बनाने कीपहल की गई है।परन्तु इस देश के धार्मिक ,सामाजिक,और शैक्षिक स्तर सुधारने के लिये यह जरूरी है कि इन ज्वलंत सवालों पर धार्मिक संगढन बैठ कर चर्चा करें अन्यथा इस सरकार के द्वारा किये ये वायदे आने वाले समय में व्यर्थ ही नजर आयेंगें।क्योंकि यह सहअस्तित्व की लडाई है जो अपने अंजाम तक पहुंचने के लिये बेचैन नजर आ रही है।
अनिल अयान सतना.

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