सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

वन रैंक वन पेंशन के विभिन्न आयाम

वन रैंक वन पेंशन के विभिन्न आयाम

सेना के भूतपूर्व कर्मचारियों की माँग आज भी पूरी नहीं हो पायी है। वन रैंक वन पेशन की मांग इस देश के लिये कितनी सार्थक होगी और सेना के साथ साथ अन्य रक्षा के सैनिकों के लिये कितनी लाभकारी होगी इस पर मंथन की आवश्यकता है। आज आवश्यकता है कि हम यह बात जाने कि वन रैंक वन पेशन की गहराई क्या है और सरकार इसे सशर्त मानने के लिये क्यों राजी हो गई है। क्या वजह रही की वन रैंक वन पेंशन की योजना सरकार के द्वारा पूरी तरह से स्वीकार नहीं की गई। जब हम इसकी गहराई में जाते हैं तो पाते हैं  कि भूतपूर्व सैनिक यह मांग कर रहें हैं कि नवीनतम रैंक और इस रैंक के लिये अधिक्तम पेशन का प्रावधान हो।इतना ही नहीं इस पेशन के साथ साथ वो यह भी मांग कर रहें हैं कि वो चाहे जिस वर्ष रिटायर हुये हों उनको उतनी ही पेशन मिले जितना कि उस रैंक के व्यक्ति को आज दी जा रही हैएऔर यह पुनरीक्षण व्यवस्था वो हमेशा चाहते हैं। यह कितना हास्यास्पद है कि यदि कोई सेना से १९९५ में रिटायर होता है उसे उतनी ही पेंशन दी जाये जितनी कि २००५ में रिटायर होने वाले सैनिक को मिलती है।सरकार के अनुमान के अनुसार रक्षा बजट दो लाख पचास हजार करोड है और यदि यह स्कीम लागू होती है तो साढ हजार करोड पेशन के बजट में लगभग पंद्रह हजार करोड का अधिभार पडेगा।
एक प्रमुख मुद्दे की बात यह भी है कि सेना के अलावा पैरामलेट्री फोर्स के सैनिकों को यह योजना का लाभ नहीं दिया जाता है। मेरे यह समझ में नहीं आता है यदि सेना के प्रति सरकार का इतना अच्छा रवैया है तो पैरामलेट्री फोर्सेस के सैनिकों ने सरकार का क्या बिगाडा है जिसकी वजह से सेना की तरह उनको लाभ नहीं दिये जाते है। इतना ही नहीं सेना की तरह उन्हें अन्य भत्ते और सुविधाओं से भी अलग रखा जाता है। हमें यह भी जान लेना चाहिये कि पेशन वेतन के आधार पर निर्धारित होती है। ना कि वर्तमान और भूतपूर्व वेतन की राशि अंतराल को ध्यान में रख कर दी जाती है। सरकार ने जब इस बात को स्वीकार की तो ऐसा लग कि सरकार सिर्फ सेना के लिये हितैशी है ना कि अन्य अर्ध सैनिक बलों और पुलिस के प्रति। यह कही विवादास्पद स्थिति भी पैदा करती है कि यह योजना के क्रियान्वयन में और ज्यादा पारदर्शिता की आवश्यकता है। वास्तविकता तो यह है कि भारत जैसे सीमित बजट और संसाधनों के बीच में जहाँ वेतनमान बढाने के लिये सरकार और विभागों को हजारो हजार बार सोचना पडता हैएवहाँ पेशन के लिये इस तरह के मापडंड तय करना कितना उचित है। हमारे बेहतर क्या होगा। रिटायर बुजुर्गों को एक समान पेशन देकर उनकी सेवा की ब्याज देने के लिये बाध्य होना या फिर युवाओं को अच्छे वेतनमान के लिये पहल करना। इतना ही नहीं युवाओं को अच्छे रोजगार के लिये साधन और संसाधन मुहैया कराना ताकि वो देश से पलायन न कर सके।सोचना सब सरकार को ही है सरकार चाहे तो सारे सैनिकों को बराबर लाभ दे या सेना के सैनिकों को वन रैंक वन पेशन और अन्य सैनिकों को वही घिसा पिटा मानदेय और आर्थिक लचर जीवन प्रदान करें
हम इस बात से मुकर नहीं सकते कि भारत में सेना और पेशन के खिलाफ चर्चा करना तो दूर की बात है बोलना तक सबसे बडा विरोध लेने वाला मुद्दा है। परन्तु यदि हम गहराई से विचार करें तो भारत जैसे विकासशील देश में गहन विमर्श की आवश्यकता है। वैसे तो वन रैंक वन पेशन लागू नहीं होनी चाहिये। क्यॊंकि यदि यह लागू होती है तो सेवा शर्तेंएसेवाकाल और सेवा भत्तों पर बहुत बडा प्रभाव पडेगा। यदि लागू होती है तो अर्धसैनिक बलों और पुलिस के लिये भी यह योजना का निर्धारण होना चाहिये क्योंकि ये भी आंतरिक सुरक्षा के लिये जिम्मेवार हैं।सेना का सम्मान सरकार और संविधान द्वारा किया जाना आवश्यक है परन्तु सेना के सैनिकों के साथ साथ अन्य सैनिकों के पेट में लात मारकर यह लागू होना अन्याय होगा।जब लोग सब्सिडी छॊड सकते हैं तो क्या अधिकाधिक मिलने वाली पेशन छॊड कर जरूरत मंद सैनिकों को नहीं दी जा सकती है। तथ्य परक निर्णयों की आवश्यकता है भारत को ना कि भावनात्मक प्रधान निर्णयों की। रक्षा के सभी मुद्दों पर गहराई से दिमाग से विचार होना चाहिये और लाभ भी मिलना चाहिये ना कि दिल से और स्वार्थ से विचार होना चाहिये।
अनिल अयानएसतना
९४७९४११४०७

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