सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

किसान हुआ लाचार, है बेफिक्र सरकार

किसान हुआ लाचार, है बेफिक्र सरकार
भारत को कृषि प्रधान देश की श्रेणी में जब खडा किया गया और लाल बहादुर शास्त्री ने जब जय जवान जय किसान का संदेश दिया तब उन लोगों ने नहीं सोचा होगा कि कृषि प्रधान देश का अन्नदाता अपने ही देश में खून के आंसू रोने के लिये लाचार हो जायेगा। आज की स्थिति पूर्णतः विपरीत हो चुकी है। अनियमित बरसात के होने से किसानों की स्थिति बहुत ही ज्यादा गंभीर हो चुकी है। वो चाहकर भी उबर नहीं पा रहा है। देश के २० से अधिक राज्यों में बरसात की अनियमितता ने किसानों की कमर तोड कर रख दी है। किसान पूरी तरह से टूट चुका है और उसकी समझ से यह परे है कि इस वर्ष उसका चूल्हा कैसे जलेगा। इस साल की दोनो रबी और खरीफ की फसलें मौसम के बदले मिजाज के चलते खत्म हो चुकी है। पहले तो ठंड की फसल को कोहरा, ओला और कडकडाती ठंड ने तबाह कर दिया और अब गर्मी के मौसम में असमय बारिस ने किसानो और कृषि दोनों की हालत खस्ता कर दी है।
यूँ तो सरकारें कहने को फाइलों में सक्रियता दिखाई हैं, और हुये नुकसान का जायजा लेने के लिये अधिकारियों की टीम बनाकर मूल्यांकन करने के आदेश दे चुकी है। परन्तु वह मूल्यांकन कितना ज्यादा कठिन है कि अब तक हो ही नहीं पाया है। किसान अपनी फसल के लिये लिये गये कर्ज के बोझ से दम तोड रहें हैं। उनका सुनने वाला कोई नहीं है। यही वजह रही है कि मध्य प्रदेश मे आत्म हत्या करने वाले किसानों की संख्या दहाई के आंकडे से ऊपर पहुँच चुकी है। और पूरे देश में यह संख्या शतकीय पारी खेल चुकी है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या किसानों का पालनहार कोई नहीं बचा है। सरकार को माइक के सामने घोषणायें करने से फुरसर नहीं है और विपक्षी दलों को गैर सरकारी संगढनों की तरह दौरे कर सहानुभूति देने से फुरसत नहीं है। ताकि आने वाले समय में अन्नदाताओं के वोट तो कम से कम उन्हें मिल सकें।रही बात सहायता की तो उस जगह पर सिर्फ आश्वासनों की लंबी कतारें नजर आ रहीं है। यही वजह है कि दमोह और देवास से विगत चैबीस घंटों में दो और किसानों के आत्म हत्या करने की खबर ने संख्या में इजाफा किया है।
कृषि प्रधान देश में इतना सब कुछ होने के बाद जब केंद्रीय मंत्रियों और राज्य मंत्रियों के अटपटे बयान मीडिया के सामने आते हैं तो ऐसा लगता है कि वो इस देश के वासी हैं ही नहीं वो जैसे भारत में कुछ समय के लिये अपना समय व्यतीत करने के लिये आये है और भ्रमण करके चले जायेंगें। ऐसा लगता है कि वो कभी इन किसानों के पास वोट की भीख मांगने गये ही नहीं थे और भविष्य में ना कभी जायेंगें। बयान सुनने के कृषि मंत्री जी के बयान सुनने के बाद तो ऐसा महसूस होता है कि किसान उनके सबसे बडे दुश्मन हैं जो उनके घर का सारा धन लूटने आये हों।सरकार की तरफ से कोई ठोस सहायता निकल कर सामने नहीं आयी। जिन सरकारों ने मुआवजे की घोषणायें की भी हैं वो नुकसान की तुलना में बहुत ही कम है। ऐसा लगता है की ऊँट के मुँह में जैसे जीरा थमा दिया हो। हर सरकार को यह नहीं भूलना चाहिये कि किसान के खेतों से ही वो भूमि अधिग्रहण के सपने संजोये बैठी है और देश व्यापी बहस का मन बनाये बैठी है। किसानों की फसल से ही कृषि उपज मंडियाँ पूरे देश में धरल्ले से दौड रहीं है और जायज ना जायज लाभ भी मिल रहा है। देश के नागरिकों का पेट भरने की जिम्मेवारी कृषि पर केंद्रित उद्योगों की नींव यहीं से बनती है।सरकार का वोट बैंक गांवों से ही निर्मित होता है।तब भी किस बात का इंतजार किया जा रहा है यह समझ के परे है।
सरकार को चाहिये की समय रहते इस वर्ष को राष्ट्रीय कृषि आपदा वर्ष घोषित करके किसानों की मदद करे। अपने भंडार खोले और किसानों को आवश्यकतानुसार सहायता प्रदान करे। बहुत पहले एक फिल्म बनी थी पीपली लाइव।क्या सरकार पीपली लाइव की तरह किसानों की  आत्म हत्याओं के थोक आंकडों का इंतजार कर रही है। समय रहते यदि ऐसा नहीं होता है तो सामाजिक, कृषि संगढनों और आम लोगों को आगे आना होगा और इस आपदा से किसानों को बचाने के लिये उनसे साथ कुछ कदम साथ चलकर संबल तो बढा सकते हैं। यही इंसानियत और नागरिकता की गुहार भी है।
अनिल अयान,सतना


कोई टिप्पणी नहीं: