सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

चाइना को हर बार आइना क्यों

चाइना को हर बार आइना क्यों
भारत की तरफ से फिर एक बार विदेश मंत्री सुषमा स्वराज्य अपनी विदेश यात्रा के लिये चाइना को चुना।वो विगत दिनों भारत और चाइना के रिस्तों में नई उर्जा डालने की कोशिश कर रही थी।हम सब जानते हैं कि दिल्ली विधान सभा चुनावों की जीत के सपने के बाद अब हमारे प्रधान मंत्री जी मई में चाइना जाने की तैयारी में हैं।हमारी विदेश मंत्री की यह यात्रा उनकी प्रस्तावना के रूप में स्वीकार की  जा रही है। पर इस यात्रा का औचित्य क्या निकला यह मेरे समझ के परे है। क्योंकि चाइना के साथ हमारे संबंध छिपे नहीं हैं। आज भी भारत चाइना का सीमा विवाद ,भारत के गले की हड्डी बना हुआ है।
जिन छ सूत्रीय माडल को लेकर विदेश मंत्री बीजिंग गई थी उनकी तरफ नजर डालें तो उसमें दोनो देशों को परिणामोंन्मुखी कार्ययोजना बनाना,व्यापक आधार वाले द्विपक्षीय रिस्तों की शुरुआत करना,सामान्य क्षेत्रीय व वैश्विक हितों के लाभ की बात,व्यापार सहयोग के नए क्षेत्रों का विकास,राजनैतिक संवाद का दायरा और व्यापक बनाना, और एशियाई सदी का लक्ष्य पाने के लिये साझा रणनीति बनाना। इस छ सूत्रीय संवाद में भारत चाइना सीमा विवाद और कैलास मान सरोवर मार्ग जैसे वो मूलभूत मुद्दे किसी कोने में जम्हाई लेते नजर आये।विदेस मंत्रियों और सदस्य मंडल की बैठक में क्या सिर्फ मोदी की मई में चाइना यात्रा को फाइनल करना  और वांग सी को इंटरटेन करने का जिम्मा उनके पास था।वो कहती नजर आई कि यह चाइना में विजिट इंडिया २०१५ की शुरुआत है मतलब आने वाले समय में भारत सिर्फ चाइना को मनोरंजित करने का काम करेगा।अपने मूलभूत मुद्दों को भूल कर इस तरह की यात्राओं का मतलब कितना देश वासियों के हित में है।
वो चाइना मीडिया फोरम को संबोधित कहते हुये जब कहती हैं कि चाइना भारत का सबसे बडा  व्यापारिक साझेदार है तब उन्होने सीमा मामले पर अपनी जुबान पर ताला क्यों लगा रखीं।बार बार भारत के विदेश मंत्रालय का दावा करना कि बस से जासकेंगें कैलाश मान सरोवर, उन दावों का क्या होगा।क्या विदेश मंत्रालय आज तक अन्य रास्ता खोलने पर विचार करना बंद कर चुका है।अपने अंतिम संवाद में हमारे विदेश मंत्री का यह कहना कि सीमा पर शांतिपूर्णं शर्त जरूरी है कहाँ तक सही है।हम भूल जाते हैं कि चाइना लाइन आफ कंट्रोल को बार बार पार कर कथित भारत अधिकृत चाइना को हथियाने या ये कहें भारत में घुसबैठ करने में अपनी एडी चोटी का जोर लगा रहा है।वो वहाँ पर चैकियाँ, सडकें,टेलीफोन लाइन,और अपनी कालोनियाँ लगभग सौ किलोमीटर तक बना चुका है।और भारत के सैनिकों को आज तक यह अधिकार दिया गया कि वो उनको पीछे खदेड सके ।तब भारत के विदेश मंत्री का इस तरह घिघियाना कब बंद होगा।
एक ओर भारत २६ जनवरी को नारी शक्ति प्रदर्शित करता है और वहीं दूसरी तरफ विदेश मंत्री वो नारी शक्ति जिन्हें वास्तविक रूप से अधिकार है अपनी शक्ति और संबल का प्रदर्शन करने का वो वहाँ शांति पूर्ण शर्त की बात करती नजर आ रहीं हैं। क्या भारत को नहीं पता कि वो चाइना सीमा में कितना फंड खर्च कर रहा है।दोटूक बात करने का वादा जो हमारे प्रधान मंत्री जी चुनाव के उम्मीदवार के रूप में कर रहे थे उन वादों की तिलांजलि देने का क्या मतलब है। व्यावसायिक और वैश्विक निवेश और साझेदारी को द्वितीयक प्राथमिकता देते हुये पहले भारत को इन विवादों को सुलझाने के लिये सीधे संवाद कर परिणाम निकालना चाहिये।और अपने क्षेत्र को अपना बनाना चाहिये।इसके लिये भारत को चाहे जितना विरोध झेलना पडे।जितने रक्षा इतजाम करना पडे।भारत को अपने अतीत में मिले चाइना के युद्ध नहीं भूलना चाहिये।उसे यह नहीं भूलना चाहिये कि चाइना सिर्फ भारत के उपभोक्ताओं का उपभोग कर रहा है और करता रहेगा और जब भी उसके नुकसान की बात की जायेगी यानि सीमा और अन्य रक्षा सौदों की बात की जायेगी तब वो सीधे सीधे मुकर जायेगा और बात को घुमा फिरा देगा।आज विदेश मंत्री को चाहिये कि इन मुद्दों  सीधा संवाद भविष्य की यात्राओं में तय किया जाये और मसलों का हल निकाला जाये। ना कि उनको बातों से उलझाकर अपनी विदेशी यात्राओं के आँकडों में इजाफा मात्र किया जाये।
अनिल अयान,सतना,9479411407

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