सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

क्या भारत दिखायेगा, चाइना को आइना

क्या भारत दिखायेगा, चाइना को आइना
विगत दिनों चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को उनके जन्म दिन का तोह्फा प्रदान किया .वह निवेश और  गुजरात को गुआंगडोंग को सिस्टर प्रोविंस राज्य के रूप में सहमति के रूप मे रहा.निवेश के नाम पर भारत को ६-७ लाख करोड का मसौदा भारत के पक्ष में रहा.भारत में चाइना की औपचारिक प्रतिनिधि मंडल सदस्यों की यात्रा का लाभ सबसे अधिक गुजरात को मिला.जिसमे बरोडरा के के करीब ४०० एकड जमीन पर बनेगा जिसमे चाइना के द्वारा किये गये करार के अनुसार भारत मे वह निवेश करेगा.सबसे अधिक समय जिनपिंग ने भारत के प्रधान मंत्री मोदी को दिया और जाते जाते चाइना की जमीन में भी कदम रखने के लिये आमंत्रित करके गये.इस यात्रा से भारत की राजनीति भी पुनः एक बार गर्मा गई.इस यात्रा से भारत को कितना लाभ हो गा इस का प्रभाव तो आने वाला समय बतायेगा.जो भी परन्तु भारत के हर नागरिक को इस मुलाकात के परिणाम का इंतजार है.
वहीं दूसरी तरफ लेह लद्दाख में फ्लैग मीटिंग मे भारत और चाइना के  सैन्य अधिकारियों की बैठक राष्ट्रपति की मुलाकात की सफलता को धता बता कर बेनतीजा खत्म कर दिये भारत की मनाही और रोक-टोक के बाद भी चाइना अपने सैनिकों और घुसबैठियों को पीछे करने के फिराक में नजर नहीं आया.चाइना मे इस बार तो भारत के हिंद महासागर से आने वाले जलमार्ग को भी अपने देश का हिस्सा बताने में लगा हुआ है.भारत की इंटेलिजेंस ब्यूरो को उतनी जानकारी नहीं है जितनी की चाइना के द्वारा भारत की सरजमीन और सैनिकों की जानकारी रखी जाती है.चाइना ने भारत की सीमा रेखा में आने वाले भूभाग को चाइना अपना बता रहा है और ना जाने कितने वर्ग किलोमीटर का इलाका भारत से छीन कर चाइना अपने देश में मिला चुका है.परन्तु भारत के प्रधान मंत्री जी ने इस संदर्भ में जिनपिंग से कोई गहरी चर्चा नहीं की.ना ही कोई विदेशी सुरक्षा नीति और संधि पर समझौता हुआ.
भारत में चाइना का व्यवसाय जितना तेजी से फैला है सामान जितना सस्ता है उतना ही ना भरोसा करने वाला है.चीनी सामान ने भारत की कम्पनियों को इलेक्ट्रानिक,मोबाइल और टेलीकाम,इलेक्ट्रिक उत्पादों में जमींजोद कर दिया उसके बाजजूद एफ,डी.आई.का पल्लू पकडे हमारे प्रधान मंत्री जी चाइना का प्रचार प्रसार करने में कोई कसर नहीं छोडे.क्या निवेश करके भारत को चाइना अपना उपनिवेश देश बनाने की फिराक में है.यह प्रश्न आज हर भारत वासी के मन मे है.हम पहले भी व्यवसाय के आड में ब्रिटिश देश की उपनिवेशवादिता के शिकार कई शतक वर्षों तक रहे है.आज फिर अपना इतिहास दुहराने की कोशिश में लगे हुये है.हमारे टीवी चैनल भारत और चाइना की जितनी भी तुलना कर लें.परन्तु भारत का अस्तित्व का सबसे बडा ग्रहण चाइना का प्रतिबिंब है हमारी आजादी के कुछ वर्षों के बाद भी भारत चीन युद्ध हो चुके है. परन्तु हम अपनी आर्थिक दृढता के लिये अपनी सुरक्षा के सबसे बडे घातक पडॊसी देश के साथ हाथ मिलाने के लिये तैयार है.उसे मित्र बनाने की कगार में है.पर क्या वह देश हमारा मित्र देश बनने के लायक है इस बात पर भी विचार करना चाहिये.हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि जिस घुसबैठ के लिये लेह लद्दाख मे हमारी हजारों की संख्या  मे सैनिक इसी चाइना की सुरक्षा सैनिको की घुसबैठ के खिलाफ मोर्चा खोले बैठी हुई है.हमें चाइना से सतर्क रह कर उसके सीमा में किये गये घुस बैठ का जबाब देना चाहिये.पर हम उसे अपने ही घर में बुला कर मेहमान बनाकर अपनी सुरक्षा के साथ मजाक कर रहे है.प्रधान मंत्री जी भी अपने गुजरात के विकास के लिये देश की सुरक्षा के संदर्भ मे मौन रह कर चीनी भारत भाई भाई का भाव दिखाया है.
यदि चाइना भारत को अपना मित्रदेश बनाना चाहता है तो भारत की सीमा विवाद और घुसबैठ को पूरी तरह से समाप्त करके सुरक्षा संधि का प्रस्ताव मानना चाहिये.उसके बाद ही अन्य आर्थिक और राजनैयिक करार होने चाहिये.वर्ना वह दिन दूर नहीं कि चाइना भारत की वायु सीमारेखा को भी जल और जमीन की सीमा में घुसपैठ की तरह अपने देश में मिला लेगा.मै इस मुलाकात के विरोध मे नहीं हूँ.लेकिन मेरा मानना है कि किसी भी देश को सबसे पहले किसी से हाथ मिलाने से पहले पूर्व मे उस देश के साथ संबंध को जरूर एक बार बाचना चाहिये.और भारत की सुरक्षा का मामला वह मामला है जो भारत के लिये सबसे ज्यादा महत्व पूर्ण है और इस कटघरे मे चाइना भारत के साथ किसी तरह की मित्रता ना तो पूर्व मे दिखाया है और ना ही इस मुलाकात के बाद दिखायेगा.हाँ हमारा देश अपनी उदारवादी सोच के चलते हर बार  उसके स्वागत में स्वागत गीत गाता रहेगा.और धीरे धीरे वो भारत को अपना उपनिवेशित देश बना लेगा तब भी हम उससे किस निवेश की अपेक्षा करेंगे.
अनिल अयान.सतना

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