सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

सीबीआई बनाम व्यापमं रू सिंहावलोकन

सीबीआई बनाम व्यापमं रू सिंहावलोकन
व्यावसायिक परीक्षा मंडल की स्थिति आज के समय पर ष्न घर की ना घाटष् के जैसे हो चुकी है। मण्प्रण् सरकार की स्थिति को नीचे गिराने के लिये यह आज के समय पर सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला अस्त्र बन गया है जिसके चलते विपक्ष भी इस जालसाजी के अंदर अपने राजनैतिक कैरियर की राह खोजने में लगा हुआ है। व्यापमं घोटाले से हुई मौतों ने भाजपा की सरकार की मुश्किलें सातवें आसमान में पहुँचा दी है। सन १९९८ से शुरु हुई इसकी नींव की पोल जब खुली तो २००० में पहली एफ आई आर दाखिल की गई। तब से लेकर आज तक ५५ से अधिक एफ़ण्आईण्आरण् दर्ज की जा चुकी है। ४०० से अधिक विद्यार्थियों के भविष्य को अंधे कुएँ में ढकेला जा चुका है। मौतों का आंकडा ५० से ऊपर पहुँचने के लिये तैयार बैठा है। इसके बावजूद भी मुख्यमंत्री जी का २००९ में कमेटी के द्वारा इसकी जाँच करवानाए उसके बाद २०११ में इस काम को एसण्टीण्फ को सौंपने की औपचारिकता निभानाए इतनी मौंतों के बाद भी उनकी पार्टी द्वारा मौतों को मात्र आसंका जताकर मुकर जाना अमूमन सही नहीं है। हल्के से इन घटनाओं को लेकर उसमें मौन धारण कर लेना कोई आज का खेल नहीं है। इसके पूर्व भी सदन में सूचना के अधिकार के अंतर्गत पूँछे गए सवालों पर मुख्य मंत्री जी ने अलग अलग समय पर विरोधाभाषी बयान देकर इस मामले को सही दिशा से घुमाने का प्रयास किया। जिसमें जनवरी २००९ में उन्होने यह कहा कि फेक परीक्षार्थियों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर कार्यवाही की जा रही है। ३१ मार्च २०११ में उन्होने यह कहा कि गलत ढंग से एडमीसन लिये डाक्टर्स के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है उनको चिन्हित किया जा चुका है। २३ मार्च २०१२ को उन्होने सदन में कहा कि गुनहगारों को फारेंसिक लैब में टॆस्ट के लिये भेजा जा चुका है। अभी तक कोई भी रिपोर्ट नहीं आई है। जबकी प्रारंभिक रिपोर्ट उस वक्त तक आ चुकी थी। इसके साथ राज्यपाल रामनरेश यादवएलक्षमी कांत शर्माए राज्य मंत्री कुलस्ते जी का मेडिकल कालेजों में अनुचित दबाव भी यह बताता है कि इस घोटाले में व्यापमं के साथ.साथ भाजपा का अधिक्तम मंत्रिम्ंडल भी सहभागिता दर्ज करवा रहा है। जिससे गठित कमेटी और एसटीफ किसी सफलतम नतीजे में पहुँचने में असफल रही है। अब जब मजबूरनवश मुख्यमंत्री को सीबीआई जाँच की अनुशंसा करनी पडी है तब भी हाई कोर्ट की हिम्म्त नहीं थी कि वो इस बारे में सीबीआई को निर्देश दे सके। इस वजह से सुप्रीम कोर्ट को इसमें सीधे सीधे दखल देना पडा।
हमें यह जान लेना चाहिये कि १९४१ में गठित हुई सोशल पोलिस इस्टैबलिसमेंट के सिपाही ही आज सीबीआई के जवान माने जाते है। सीबीआई १ अप्रैल १९६३ के गढन के बाद कुछ सालों तक तो निष्पक्ष रूप से काम करती रही क्योंकि पहले यह स्वतंत्र रूप से काम कर रही थी। परन्तु आज के पर राजनीति इसकी ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई है। गृह मंत्रालय के अधीन काम करने के साथ.साथ इसे प्रधानमंत्रीएविपक्ष के मुख्य सदस्य और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी मानना पडता है। जब तक इसे सेंट्र्ल विजिलेंस कमीशन सपोर्ट और डायरेक्ट करती थी तब तक यह कुछ हद तक सही राह में थी परन्तु आज तो इसमें कई और राजनैतिक समीकरण आकर जुड गये है। इसके टुकडे करके स्टेट पुलिस में सीआईडी की ब्रांच खोल दी गई। और राजनैतिक दबाव जिला पुलिस से सीआईडी और सीआईडी से सीबीआई पर स्थानांतरित हो गया। इसके चलते सीबीआई के जोगिंदर सिंह और बीआर लाल भी कुछ गोलमाल के चलते सीबीआई के लिये ब्लैक स्पाट साबित हुये। इतना ही नहीं सीबीआई के कई केस और उसमें सीबीआई की भूमिका को भी संदेह की श्रेणी में शामिल कर दिया गया। जिसमें इसरो स्पाई रिंग स्कैमए हवाला स्कैमएनिठारी हत्याकांडए सोहराबुद्दीन केसएभोपाल गैस कांडए२.जी घोटालाएप्रियदर्शिनी मट्टो मर्डर केश और कोलमाइन्स राइट्स एलाटमेंट केस में सीबीआई को वो सफलता नहीं मिली जो कभी  पहले इसके खाते में दर्ज थी।
अब देखना यह कि जुलाई अंतिम सप्ताह तक क्या सीबीआई कोर्ट को सही और सत्यापित रिपोर्ट सौंप सकती है। यह तो तय है कि मध्य प्रदेश में सीबीआई के लिये राह इतनी सरल नहीं है जितनी कि पहले के कई केस में रही है।यहाँ पर सरकार के कई मंत्री जाँच के घेरे में पहले से है।कई मंत्री जेल के अंदर इसी घोटाले की वजह से कैद हो चुके है।राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक जहाँ संदेहास्पद स्थिति के अंतर्गत आरहा हो वहाँ पर सही फैसला आना गरम तपते रेगिस्तान में किसी प्यासे द्वारा पीने के पानी की तलाश की तरह ही है। सबसे बडी बात यह है कि एसटीफ की जाँच के दौरान ही यदि आधा सैकडा मौतें हुई हैं तो सीबीआई जाँच के चलते क्या गारंटी है कि कोई अपराधी या संदिग्ध व्यक्ति मौत के मुँह में नहीं समा जायेगा।सीबीआई के लिये यह केस शेर के मुँह से उसका शिकार निकालने की तरह है। यदि सीबीआई इस केस को हल करने में सफल होती है और आरोपियों और जुडे राजनैतिक व्यक्तियों को सजा मिलती है तो मृतकों और धोखा खाये विद्यार्थियों के प्रति न्याय होगा। अन्यथा सीबीआई की असफलता की लिस्ट में एक नाम और जुड जायेगा। यह तो तय है कि आने वाले समय मे भाजपा सरकार के लिये यह व्यापम गले की हड्डी शाबित होगी । और आने वाले चुनाओं में इसका असर भी दिख सकता है। अब सरकार के पक्ष की बात यही है कि वो सीबीआई की मदद करके इस गुत्थी को तुरंत सुलझाये और अपनी साख जनता के बीच और मजबूत करे।सीबीआई को सेंट्रल विजिलेंस कमीशन सपोर्ट करे और सही ढंग से बिना किसी राजनैतिक दबाव में काम करने दे ताकि वो अपनी शाख को मध्य प्रदेश में और ज्यादा दृढ कर सके।



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