सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

क्यों मीडिया पे दोष मढ़ती है ‘आप’

क्यों मीडिया पे दोष मढ़ती है ‘आप’
जंतर मंतर का मैदान एक किसान की आत्म हत्या का गवाह बन चुका है। किस तरह अपना सब कुछ खोने के बाद मृतक किसान रैली में आया और अरविंद केजरीवाल से मिलकर अपनी समस्या का निदान खोजने की कोशिश करता रहा।कोशिश असफल रही तो उसने सभी पुलिसकर्मियों और आप पार्टी के संग आये कार्यकर्ताओं के सामने आत्म हत्या कर लिया। आप अगले अडतालिस घंटे तक कोई भी सहानुभूति व्यक्त नहीं कर पायी।अंततः जब कुछ बोल निकले तो वो भी मीडिया के विरोध में थे।यह पहली बार नहीं था कि जब आप पार्टी के संयोजक ने मीडिया को आड़े हाथों लिया हो। आप की शुरुआत भी कहीं ना कहीं मीडिया में प्रचार प्रसार से ही हुई थी। मीडिया वह माध्यम था जो आप को पूरे देश तक पहुँचाने का काम किया।आप के संघर्ष और किये गये अच्छे और बुरे कार्यों की समीक्षा भी मीडिया ने पूरी तरह से किया। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ था जब गजेंद्र की मौत के बाद हुये मीडिया कवरेज से पूरी पार्टी सकते में आ गयी। कभी यह आरोप लगाया गया कि मीडियाकर्मी अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे है।कभी यह आरोप लगाया गया कि मीडिया ने अन्य पार्टियों से हाथ मिलाकर आप को विवादों में खडा कर दिया। और भी बहुत कुछ जो मीडिया की शान के खिलाफ रहा।मीडिया ने इस बार भी घटना को घटना के नजरिये से प्रस्तुत करने की बजाय उसका छिद्रांणवेषण करके प्रस्तुत करने की कोशिश की ताकि जनता को इस घटना की गहराई के बारे में अधिक से अधिक जानने का अवसर मिले। किसानो की हितैषी बनी आप पार्टी के सामने एक किसान खुद को फांसी मे लटका लिया तो भी पूरी की पूरी पार्टी सिर्फ मूक दर्शक की भांति तमाशबीन बनी रही।जनता और पुलिस कर्मियों को अपने काम को ईमानदारी से करने की पैरवी करने वाली पार्टी खुद ही अपने दायित्वों को निर्वहन करने में असमर्थ रही।और कुंभकर्णी नींद से जगी भी तो अपने घडियाली आँशू बहाने से बाज नहीं आयी।
पत्रकारिता ही वह माध्यम है जो लोकतंत्र का मजबूत स्तंभ है।इसके चलते ही पूरी दुनिया का हर व्यक्ति जागरुक बना हुआ है।वो समाज में घटने वाली हर घटना को जागरुकता से देखता है,समझता है और फिर अपनी प्रतिक्रिया देता है।मीडिया हर प्रकार से समाज, देश-दुनिया के प्रति जागरुकता को फैलाने का काम करती है।पार्टियों का बार बार यह दोष देना कि मीडिया ही दोषी है और वह दूध की धुली हुई है यह सरासर गलत है।प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया ऐसे माध्यम है जिसके चलते पढ़े लिखे आदमी से लेकर अनपढ,बच्चे से लेकर हर उमर का व्यक्ति इससे लाभान्वित होता है।समाचार पत्रों और समाचार चैनल अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये क्रमशः रीडरशिप और टीआरपी पर आधारित होते है और इन्हें होना भी चाहिये।क्योंकि वो बाजार में अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये कार्य कर रहे हैं। मीडिया समाज के हर उस कोने तक पहुँचती है जहाँ पर उसे कुछ विशंगति दिखाई देती है।उसको खबर से खोजबीन करने तक ले जाने का काम भी मीडिया का ही है।कई लोगों का यह मानना कि मीडिया एक खबर को हर बार टेलीकास्ट करती है तो यह भी जरूरी है क्योंकि वह चैनल या समाचार पत्र पूरे देश के लिये होता है एक बार में यह आवश्यक नहीं है कि हर व्यक्ति प्रसारित होने वाली खबर को देखे ही।हाँ एक बात जरूर है कि लाइव चैनलों में आने वाली बहसों में भाषा और संयम दोनो की कमी देखने को मिलती है।निष्कर्ष निकले, ना निकले परन्तु आरोप प्रत्यारोप असंतुलित सा नजर आता है।प्रिंट मीडिया इस हद तक इलेक्ट्रानिक मीडिया से श्रेष्ठ हैं।
रही बात राजनीति की तो आज के समय में चुनाव से लेकर हर राजनैतिक पहलू को मीडिया लोगों के घरों तक पहुँचने के लिये अपना माध्यम चुनती है।मीडिया वह अस्त्र है जिसके सहारे आज के समय में चुनाव जीता जाता है।मीडिया जिसका समर्थन कर दे वह विजयपथ चलने के लिये तैयार खडा होता है।क्योंकि मीडिया से तेज कोई भी किसी के घर में संपर्क एक समय पर और एक साथ नहीं कर सकता है।पार्टियाँ अपने स्वार्थ की बात हमेशा से करती चली आयी हैं।जब उनके फायदे की बात होती है तो वह मीडिया के गुणगान करती है और जब उनकी कमी को मीडिया लोगों के सामने रखती है तब वह पार्टी मीडिया को कटघरे में खड़ी कर देती है।इस बार आप पार्टी का मीडिया को आडे हाथों लेना भी कुछ ऐसा ही था।आप के लिये यह आवश्यक है कि आने वाले समय में वो आंतरिक कलह से बचकर मीडिया को साथ लेकर चले और राजनैतिक क्षेत्र में अनुभव हासिल करे।समय सापेक्ष चल रही मीडिया पर यदि वो बार बार व्यवधान डालेगा तो उसकी राजनैतिक उम्र को खतरा हो सकता है।क्योंकि आप के लिये मीडिया से बैर लेना अपनी कार्यकुशलता में ब्रेकर लगाने की तरह ही है।
अनिल अयान,सतना

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