सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

‘‘साठ्योत्तर संविधान’’ की मुबारकबाद

‘‘साठ्योत्तर संविधान’’ की मुबारकबाद
पैंसठ वर्ष हो चुके हैं हमें हमारा संविधान प्राप्त किये हुये,परन्तु आज भी हमारी सामजिक स्थिति किसी पूंजीवादी व्यवस्था के पीछे चलती नजर आती है।आज भी आम इंसान अपने अधिकारों और कर्तव्यों के किनारा करता नजर आता है।ऐसा लगता है कि ये संविधान सिर्फ शिक्षित लोगों और सत्ता में बैठे लोगों के लिये बना कर सौंपा गया है।साक्षर लोगों को आज भी रोटी ,कपडा और मकान के लिये चिंता होती आज भी सर्वहारा वर्ग और अविकसित स्थानों की जनता आम सुविधा के नाम पर ठेगा देखती हुई नजर आती है।हमारा संविधान भले ही पाँच देशों की संवैधानिक खूबियों से संवर गया हो परन्तु हमारे देश की औसतन जनता उन देशों की जनता से सैकडों साल पीछे जी रही है।
ब्रिटिष एक्ट के अनुसार जब देश चलाने में अछमता नजर आई तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी ने संविधान सभा को जन्म दिया । इसका प्रमुख कारण यह भी था कि ब्रिटिश शासन के द्वारा दिया गया यह एक्ट  जो १९३५ में बना था सिर्फ आयातित नियम कायदों का दस्तावेज ही था इससे उपनिवेशीय सोच तो तैयार की जा सकती थी परन्तु अच्छे नागरिक तैयार नहीं किये जा सकते थे।कांग्रेस की जिद के चलते २६ नवंबर १९४९ में तैयार हो चुका संविधान २६ जनवरी को लागू किया गया क्योंकि उसने 1935 को इसी दिन पूर्ण स्वराज की घोषणा की थीे।संविधान सभा चुने हुये तत्कालिक राजनीतिज्ञ ब्रिटेन,संयुक्त राष्ट्र अमेरिका यूएसए,आयरलैंड,कनाडा और फ्रांस की यात्रा करके संविधान की अच्छी बातें तो आयातित किये। परन्तु अफसोस जनता को भारत के लायक ही बने रहने दिया गया।उनके लिये कोई भी नीति और योजना का आयात नहीं किया गया। आज तक 122 परिवर्तन होने के बाद भी हमारे संविधान में ३९५ आर्टिकल्स और १२ अनुभाग है। भारत की विकासशील स्थिति आज भी विकसित राष्ट्रों में परिवर्तित नहीं हो सकी है।
आज भी संविधान की ऐसी धारायें है जो कुछ समय के लिये रखी जानी चाहिये थे परन्तु उन पर ध्यान ना देने के कारण गले की हड्डी बन चुकी हैं।इसका उदाहरण धारा-370-72 और धारा 374-78 जिसमें आज भी कानून और न्याय व्यवस्था उहापोह में है।इतने सारे अमेंडमेंट एक्ट पास हो चुके हैं कि आयातित संविधान पूरी तरह से संकरित हो चुका है। आज की वर्तमान परिस्थितियों की आवश्यकता है कि हमारे देश का संविधान हमारे देश की सामाजिक आर्थिक राजनैतिक व्यवस्था को ध्यान में रख कर निर्मित की जाये।क्योंकि वर्तमान संविधान में आज भी आयातित होने की छाप दिखाई देती है।जो हमारे देश के देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार एक रत्ती भर भी मिलान नहीं खाता है।यदि हमें अपने देश को विकसित राष्ट्र की श्रेंणी में खडा करना है तो यह आवश्यक है कि संविधान निर्मात्री सभा का पुर्नगठन किया जाये और वर्तमान संविधान का पुनरावलोकन करके वांछनीय परिवर्तन किये जायें। वो परिवर्तन आम जन मानस के लिये लाभप्रद हों
वर्तमान भारत में गणतंत्र होने के बावजूद हर राज्य अपने शासन  के लिये स्वतंत्र नहीं है।उसे केंद्र की भूमिका को मानना ही पडता है।यदि केंद्र में विपक्षी सरकार है तो उसे अपने कोश के लिये संघर्ष करना पडता है।ऐसा लोकतंत्र किस मतलब का है जिसमें राज्यों को सरकार बनाने का अधिकार है परन्तु उसका उपभोग करने का अधिकार पूँछ कर मिलता है।सत्ता का विकेंद्रीकरण आज के समय की माँग है।हमारा संविधान ऐसा होना चाहिये कि गलत काम करने में सजा और निर्दोष के लिये माफी हो।फास्ट ट्रैक कोर्ट को मुख्य धारा में आना चाहिये।न्याय व्यवस्था में आतंकवाद,नक्सलवाद,और अन्य आंतरिक राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान त्वरित होना चाहिये।संविधान के परिवर्तनशील करने और अधिक सख्त करने की जरूरत है।राज और काज में एकरूपता होनी चाहिये।मंत्रालयों में संबंधित विषय विशेषज्ञों को उच्च पदों में पदासीन करना चाहिये।अंततः सीधी शब्दों में बात की जाय तो प्रशासन और सरकार के बीच सामन्जस्य इतना तीव्र होना चाहिये की योजनायें बिना सरकारी बिचैलियों और दलालों के हाथ में गये जरूरतमंदों के हाथों में नियत समय में पहुँच सके।सरकार और नागरिकों के मध्य सीधा संवाद स्थापित किया जा सके।तभी राजनीतिशास्त्र का यह लैटिन भाषा का शब्द रिपब्लिका का सही अर्थ भारत को समझ में आयेगा। वरना नाम के लिये गणतंत्र बनने से और गणतंत्र दिवस मनाने से हम अपने देश को विकसित राष्ट्र में सुमार नहीं कर पायेंगें।क्योंकि हमारे देश के संविधान के मूल तत्व,धर्मनिरपेक्षता, अधिकार और कर्तव्य ,सौहार्दता ,भाईचारा ,विश्वबंधुता,एकता और अखंडता सभी खतरे में हैं क्योंकि जिस समय संविधान बना था उस समय का परिवेश और आज के समय के परिवेश में जमीन और आसमान का अंतर है।क्योंकि जनसंख्या विस्फोट की कगार में खडा हमारा देश आज भी अपने आर्थिक संघर्ष से पीछा नहीं छुडा पाया है इस लिये इस सरकार की समझदारी इसी में है कि इस पंचवर्षीय में  संविधान के अनावश्यक तत्वों को जरूरतमंद एक्टों से परिवर्तित करके कानून और व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करें तभी पैसठ वर्ष पुराना  साठ्योत्तर संविधान खुद को जवान महसूस करेगा।
अनिल अयान,सतना
9479411408

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