मंगलवार, 22 जुलाई 2014

अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनी, वैदिक की पाक यात्रा

अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनी, वैदिक की पाक यात्रा
एक सप्ताह से डा वेद प्रकाश वैदिक जी के मिलन प्रसंग को बहुत समय से अवलोकन कर रहा हूँ.उनका पाकिस्तान जाना, नवाज शरीफ ,प्रधान मंत्री पाकिस्तान से मिलना और फिर वहाँ के पत्रकारों के कहने बस से मोस्ट वांटेड हाफिज सईद से मुलाकात कर लेना, मिलकर भारत आने का निमंत्रण दे देना.यह सब इतना ज्यादा आसानी से वो मीडिया को बता रहे थे जैसे उन्होंने बहुत बडा कार्य करके पाकिस्तान से लौटे या ये कहें कि काश्मीर मुद्दा और अन्य समस्याओं का निपटारा करवा कर लौटे हो.और तो और कई न्यूज चैनल के प्रस्तुत करताओं को ऐसे डाँट रहे थे जैसे उन्होने वैदिक जी से सवालात करके देश द्रोह कर दिया हो.और उसके बाद क्या हुआ हम सब जानते है.आज उनके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर हो गई है.
मै खुद वैदिक जी के बहुत से आलेख पढा हूँ.उनकी विद्वता का कायल रहा हूँ.विषय विशेषज्ञ मानने लगा था.परन्तु इस बार की घटना ने सबके साथ मुझे भी सोचने के लिये मजबूर कर दिया है कि क्या वैदिक जी का हाल अपने मुँह मिया मिट्ठू बनने जैसी हो गई है. और इसी के चलते वो पाकिस्तान में जल्द बाजी में हाफिज सईद से भी मिलने के लिये तैयार हो गये क्योंकि वहाँ के पत्रकारों ने अपने शब्द जाल के मोहपाश में वैदिक जी को मोहित कर लिये थे.वैदिक जी का यात्रा वृतांत और उनके जीवन के महत्वपूर्ण लमहों को उनके मुँह से ही सुनने के बाद लगा कि  वो अति उत्साह वादिता के शिकार थे और इसी का परिणाम रहा है कि वो आज इस हाल में है.उनका हाल कुछ ऐसा हो गया है कि गये थे हरि भजन को और औटन लगे कपास.वो चाहे जितना अपने को राष्ट्र भक्त और सबसे बडा वीवी आई पी व्यक्ति और भारत का नागरिक घोषित कर ले परन्तु उनकी भाषा शैली को सुनने के बाद लगता है कि वो अपने ही मुख से अपनी प्रशंसा करने में लगे है.क्योंकि जो लोग गहरे होते है वो अपना गुणगान नहीं करते है.अतिउत्साहवादिता का परिणाम था कि वो इतना सब कुछ होने के बाद भी वो अपने किये गये कार्य और उसके परिणाम से उठे विवाद का कोई दुख नहीं है वो विदेश मंत्री, विदेश सचिव,और अन्य राजनेताओं को भी गलत मान रहें है.वो अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करते है. पर इस स्वतंत्रता से उठे शैलाब और सुनामी का कोई छोभ तक नहीं है.अपने को पत्रकार मानते है.पर कैसे वो पाकिस्तान के प्रधान मंत्री से मुलाकात की अनुमति भारत से मिली कैसे उन्हें पाकिस्तान भेजने की प्रक्रिया पूरी की गई.क्या यह शासकीय यात्रा थी या व्यक्तिगत यात्रा थी. व्यक्तिगत यात्रा थी तो फिर वहाँ के प्रधान मंत्री से क्या काम था.हाफिज सईद की मुलाकात यदि शासकीय नहीं थी तो उसका वीडियों और पिक्चर क्यों खीची गयी. और यदि व्यक्तिगत थी तो फिर वैदिक जी को व्यक्तिगत क्या काम आन पडा हाफिज शहीद से ,और वो भी तब ,जब प्रधान मंत्री जी ब्रिक्स सम्मेलन में अपनी भागीदारी और अपने देश का परचम लहरा रहा है. कांग्रेस का कोई संबंध नहीं है. आर एस एस का कोई  संबंध नही है. विवेका नंद फाउंडेशन से उनका कोई नाता नहीं है. तो भी इतने झूठ क्यों बोले गये जो साफ साफ जनता और मीडिया के पकड में आगये.अपने को राष्ट्र वादी और प्रसिद्ध पत्रकार का राग अलापने वाले वैदिक जी को काश्मीर को आजाद करवाने और हाफिज शहीद को भारत में न्योता देने का अधिकार किसने दिया था. कुछ ये ऐसे प्रश्न है जिसका जवाब ना वैदिक जी के पास है और ना ही भारत की सरकार के पास.
इन सवालों के जवाब ही निर्णय तक पहुँचा सकते है कि वैदिक जी कैसे है. वैसे ,जैसे वो अपने विचारों के माध्यम से आम जनता को अखबारों में नजर आते है. या फिर वैसे ,जैसे वो इस धमाचैकडी मचाने के बाद टीवी चैनलों में हम सब को दिख रहे है. जिस हाफिज सईद के लिये देश की सेना पाकिस्तान से युद्ध के लिये तैयार है.जिसके लिये रक्षा मंत्रालय अपने दांव पेच आजमा रहा है. भारत के शहीदों के परिवारों के लिये वो सबसे बडा जानी दुश्मन है.भारत सरकार जिसके लिये पाकिस्तान से कोई समझौता करने के लिये कोई बात सुनने के लिये तैयार नहीं है.उससे मिलना और मिलकर भारत आने का निमंत्रण दे देना.और तो और काश्मीर को पाक को आजाद करके सौंप देने की घोषणा करके आना. देश द्रोह नहीं तो और क्या है.  वैदिक जी विद्वता का नकाब ओढ कर पत्रकारिता का घोषणा पत्र लिये अतिउत्साह वादिता की सजा भोग रहे है.और इस बात की सजा भी मिलनी चाहिये क्योंकि उन्होने भारत की सरकार की अनुमति के बिना दुश्मन देश से गये वहाँ पर देश के सबसे बडे आतंकी अपराधी से मेल मिलाप कर अपने देश में उसकी पैरवी कर रहे है.मै इतना जानता हूँ .भारत की जगह कोई और देश होता तो काफिर करार कर सिर कलम कर दिया गया होता.इस प्रकार के बहुत से उदाहरण अरब देशों में मौजूद है.हमारी उदारवादिता और हमारी स्वतंत्रता देश की रक्षा व्यवस्था से बढकर नहीं हो सकती है.इस बात को वैदिक जी और उन जैसे लोगों को स्वतः ही समझ लेना चाहिये.
अनिल अयान.सतना

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