मंगलवार, 14 जनवरी 2014

कांग्रेस के कायदे में फँसे आप के वायदे


कांग्रेस के कायदे में फँसे आप के वायदे
आप का दिल्ली में सरकार बनाना और कांग्रेस का पर्दाफास्ट करना सबसे बडी घटना है. जिसके चलते यह कहा जा सकता है कि राजनीति का नया इतिहास दिल्ली की धरती में रचा गया. केजरीवाल अब जब मुख्यमंत्री की सपथ ले चुके है इस दर्मियान जरूरी हो गया है कि यह चर्चा की जाये कि आने वाले समय में दिल्ली की सरकार और विधान सभा का क्या हाल होगा.समय सापेक्ष आज की सत्ता में केजरीवाल किसी अभिमन्यु से कम नहीं है. वो  अभिमन्यु जिसने राजनीति रूपी चक्रव्यूह में प्रवेश करने की शिक्षा तो अन्ना से लेकर सरकार बना लिया परन्तु इससे निकलने का रास्ता खोजने में अभी बहुत वक्त लग जायेगा.क्योंकी एक इंजीनियर के रूप में जीवन जीना और फिर सत्ता के गलियारे में बंजारापन करना बहुत कठिन है.अरविंद केजरीवाल ऐसे मुख्यमंत्री है जिन्होंने आम आदमी को यह एहसास कराया की जनसाधारण चाहे तो सत्ता तक पहुँच सकता है.परन्तु यह भी दुर्भाग्य रहा होगा कि सत्ता के लिये विरोधी भाषण देने का विषय बन चुकी कांग्रेस से ही समझौता करना पडा केजरीवाल को.सत्ता का असली नंगापन तो उसी दिन समझ में आगया होगा जब आप के कई मंत्री स्टिंग आपरेशन में फंस गये.और कांग्रेस के वे विधायक जो आप को समर्थन कर रहे थे वो भी थोथे चने बाजे घने वाले राग अलापने लगे.अब तक मै यह जानने में असमर्थ हूँ कि जनता अंध विश्वास जीत कर सत्ता में आयी आप जनता के अरमानों के साथ खेल कर कांग्रेस से ही हाथ मिलाकर सत्ता सुख क्यों भोग रही है. और क्या वह इस काजल की कोठरी से खुद को बिना डीठ लगे बाहर निकाल पायेगी. वायदों की बात करें तो कांग्रेस का पहले विना शर्त समर्थन और फिर आप के वायदों को समर्थन देना कैसा गुणा भाग है. राजनीति का एकाकी करण तभी देखने को मिल गया था जब भाजपा के द्वारा आप का चुनाव के समय समर्थन करना और फिर आप के द्वारा कांग्रेस का दामन थामने के बाद विरोध करना किस पाले का खेल है.
            बिजली पानी और अन्य सुविधाओं का मामला कितना और कब तक पालन करेगी आप यह तो समय के गर्त में छिपा हुआ है परन्तु केजरीवाल के विचार और उनका दिल्ली के प्रति जुझारूपन वाकये काबिले तारीफ है. परन्तु उनके साथी जिस तृष्णा के वशीभूत होकर आप को ज्वाइन किया था वह तृष्णा अब और बढ गई है इसी का परिणाम था कि गिन्नी जैसे लोग भी मंत्री पद को पाने के लिये लालायित हो गये. सब को पता है कि मंत्री जैसे पद भी आय व्यय का तिलिस्म ही तो होता है जिसमें जाने के बाद सब कई पुस्तों तक करोडपति से ज्यादा रकम हासिल कर लेते है. तो गिन्नी जैसे राजनीतिज्ञ कैसे पीछे हट सकते थे.भले ही आप के सिद्धांतों की मैयत निकल जाये. केजरीवाल का कार्यकाल कब तक चलता है यह कोई नहीं जानता है परन्तु जब तक चलेगा वह अविश्मरणीय रहेगा.क्योंकि इस कार्यकाल में बहुत से ऐसे निर्णय होगें जिसके प्रभाव से अन्य राज्यों के सत्ताधारियों के आँखें भी खुलेंगी. रही बात कांग्रेस की तो वह अपना समर्थन कितने समय तक देती है और किन शर्तों तक देती है इस बात को अरविंद केजरीवाल को अपने डेंजर जोन की सीमा रेखा के रूप में लेना चाहिये.क्योंकि इसके बाद ही अन्य रास्तों पर विचार करना आवश्यक होगा केजरीवाल के लिये.कांग्रेस का उद्देश्य क्या है समर्थन देने का वह तो वक्त दर वक्त जनता और अरविंद केजरीवाल दोनो को समझ में आ जायेगा.यह डगर  पनघट की बहुत कठिन है केजरीवाल के लिये.कौरवों के बीच में फंसे अभिमन्यु की कहानी बयान कर रहे केजरीवाल दिल्ली की संसद में परन्तु आज के समय में अभिमन्यु भी हाईटेक हो गये है नई तकनीकी से लैस है और इंजीनियर भी इस लिये कांग्रेस के कायदों के खिलाफ भी शायद उपाय निकाल लें और पाँच वर्ष पूरे कर लेगें.
            आने वाला समय ही यह बतायेगा कि हाथ झाडू लगायेगा या झाडू हाथ का सफाया कर देगा.जितना भी काम केजरीवाल करेंगे वह सब उनकी इस सत्ता की यात्रा के प्रति प्रगति पथ बतलायेगा.इस घटना के संदर्भ में एक बात तो स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि सत्ता के लोगों का भीड में रहकर विरोध करना जितना सरल है उतना ही कठिन है सत्ता का हिस्सा बनकर विरोध जताना और समस्याओं का निराकरण करना.आप के नियम कायदे और वायदे सर्व जन हिताय तभी हो सकेगें  जब उसे उसी तरीके से उपयोग किये जायेगेम वरना यह भी सत्ता के खेल में चली एक चाल बनकर रह जायेंगें,.
अनिल अयान.



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