मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

सतना के उद्योग बनाम पर्यावरण सुरक्षा


सतना के उद्योग बनाम पर्यावरण सुरक्षा
सतना शहर यानि सीमेंट सिटी,सतना के उद्योग बनाम पर्यावरण सुरक्षा का दारोमदार कही ना कहीं हम सभी के हाथों में होता है परन्तु यह भी सच है कि हमारे प्रयास को कहीं ना कहीं डीठ लगाने का कार्य सीमेंट उद्योग भी करते रहे है.समय दर समय इन उद्योगों की संख्या लगातार बढती जा रही है. क्योंकि इस क्षेत्र में चूना पत्थर की प्रचुर मात्रा पायी जाती है और सीमेंट बनाने के लिये इसका उपयोग मूल कारक के रूप में सामने आता है.इस विषय के कई पहलू हो सकते है परन्तु यदि फायदेमंद पहलू यह है कि इन उद्योगों से कहीं ना कहीं यहाँकी अर्थव्यवस्था की रीड बनती है उसी तरह दूसरा सबसे हानिकारक पहलू यह भी है कि इसके आस पास १० कि.मी. तक का पर्यावरण पूरी तरह से अव्यवस्थित हो जाता है जिसको दोबारा व्यवस्थित होने में आने वाले ५० साल लग जायेगें.इसका कुप्रभाव पर्यावरण और इससे संबंधित ईको सिस्टम में पडता है. आस पास की जमीन, जल और वायुमंडल भी प्रदूषण का शिकार होते आ रहे है. सबसे ज्यादा इसके आसपास रहने वाले लोग और उनके स्वास्थ्य पर पडने वाले प्रतिकूल प्रभाव को हम अपने आर्थिक फायदों के लिये नजरंदाज नहीं कर सकते है.फेफडों,गुर्दे, और ध्वनि संबंधी बीमारियाँ,और हॄदय रोग संबंधी शिकायतों का अंबार है इन उद्योगों के आसपास रह रहे लोगों के जीवन में.
            इस सब के बाद भी यदि पर्यावरण प्रदूषण विभाग यदि सतना को प्रदूषण मुक्त शहर घोषित कर लोगों और प्रशासन की वाहवाही लूटे तो बहुत अफसोस होता है.और आश्चर्य की सीमा भी नहीं रहती है.प्रशासन ने पर्यावरण संरक्षण संबंधित बहुत से नियम कानून और एक्ट बनाये है लेकिन सतना के इन उद्योगो के लिये इस तरह के नियम कानूनों का कहीं प्रभाव नहीं दिखाई पडता है.ना जाने क्यों.सब प्रभाव हीन सा नजर आता है. इस उद्योगों के अंदर की जमीन और पर्यावरण तो बहुत शानदार होता है. खूब धन का खर्च किया जाता है. हरियाली का सघन प्रभाव दिखाई देता है. परन्तु इसके बाहरी सीमा में पर्यावरण की जर्जर स्थिति और प्रदूषण का सबसे ज्यादा कुप्रभाव दिखाई पडता है.समय रहते यह सब  इतना बढने लगा है कि आस पास के लोगों के जीवन अस्तव्यस्त से होगए है. वैसे तो नियम कानून के अंतर्गत पर्यावरण के खिलाफ व्यवहार करने वाले संस्थानों के लिये अनेक प्रकार की सजा और जुर्बाना है परन्तु आर्थिक दृढता के चलते सबके मुँह में ताला लगा होता है.सतना की पर्यावरण का दुषप्रभाव यह है कि बेमौसम बारिस का होना, जमीन उर्वरा क्षमता का ह्रास और जमीन के अंदर के जल स्तर का लगातार नीचे चले जाना और सल्फर की मात्रा की अधिक्तम सीमा के ऊपर पहुँच जाना है.आस पास के जीवजन्तु और जलीय जीव के साथ साथ पेड पौधे भी इसी कुप्रभाव के शिकार हो रहे है.हम सब इतने खुद गर्ज हो गये है कि औद्योगीकरण की भागादौडी में इतना अंधे होगये है कि अपने आर्थिक उन्नयन के लिये अपना मूलभूत विकास उपक्रम को बिसरा दिये है.हम सबकी पुरानी आदत है कि आस्तीन में साँप पालने से बाज नहीं आते है. और उस पर तब तक अंधविश्वास करते है जब तक की वो हमें डस नहीं लेता है.आज के समय की माँग है कि हम सब जागरुक हों. पर्यावरण के प्रति ज्यादा से ज्यादा सोचें और इस के बचाव के लिये कदम भी उठाये.यह स्थिति हर उस जगह की भी है जहाँ पर इस तरह के रसायनिक उद्योग स्थापित है. इस में सतना जिला का नाम विंध्य में प्रथम  है और इस वजह से हमारा प्रथम दायित्व है कि इस केंपेन में हम सब मिल जुल कर पर्यावरण को सुरक्षित करें और प्रदूषण को कम करें.इस पूरे कार्य में यदि हम देखें तो उद्योग ,जनमानस और प्रशासन एक त्रिकोण की तरह कार्य करते है.और केन्द्र में है पर्यावरण जिसे तीनों के एकाकी प्रयासों से ही बचाया जा सकता है.प्रशासन के उद्देश्यों को ताक में रखकर प्रदूषित वातावरण में आर्थिक और औद्योगिक विकास करके भी प्रशासन क्या कर लेगा यदि समाज का हर तबका और जीव जन्तु, पेड पौधे और पर्यावरण बीमार है.
सीमेंट उद्योग सतना के लिये कोई दुश्मन नहीं  है परन्तु उनका पर्यावरण के प्रति उदासीन हो जाना और क्रियाहीन रवैया किसी दुश्मनी से कम भी नहीं है.प्रशासन का पर्यावरण के प्रति उदासीनता,सिर्फ खानापूर्ति कर कागजी कार्यक्रमों की समीक्षा करना भी पर्यावरण से दुश्मनी को ही जग जाहिर करता है. इस लिये इस एकाकी त्रिकोण को चाहिये की पर्यावरण की जर्जर व्यवस्था को मजबूत करें.समाज के साथ हाथ से हाथ मिला कर इस केंपेन मे भागीदारी करें तभी हम अपने अमूल्य पर्यावरण को बचा सकते है. वरना उद्योगों की सीमा रेखा की दीवारों और भवनों की दीवारों पर लिखे नारों के दम पे पर्यावरण नहीं सुरक्षित होने वाला है.
अनिल अयान,सतना.

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