मंगलवार, 3 सितंबर 2013

लोककलाकारों के जीवन संघर्ष और लोक संस्कृति के उत्कर्ष की लोकगाथा:खम्मा,पुस्तक:खम्मा(उपन्यास),लेखक:आशोक जामनानी, होशंगाबाद, समीक्षा: अनिल अयान,सतना, म.प्र.

लोककलाकारों के जीवन संघर्ष और लोक संस्कृति के उत्कर्ष की लोकगाथा:खम्मा
पुस्तक:खम्मा(उपन्यास),लेखक:आशोक जामनानी, होशंगाबाद, समीक्षा: अनिल अयान,सतना, म.प्र.
श्री आशोक जामनानी की बूढी डायरी और छपाक छपाक की पृष्ठभूमि से ज्यादा प्रभावी और रोमाँचक उपन्यास खम्मा राजस्थान के पश्चिमी भाग माडधरा में बसने वाले लोकसंगीत को संजोने वाले मांगणियार लोगो की संस्कृति सभ्यता और विरासत को सहेजने की प्रभावी प्रस्तावना है. राजस्थान के इन लोककलासाधकों के द्वारा की जाने वाली गंगा जमुनी तहजीब के पालन पोषण तथा उत्सवों में उनकी महत्ता को उपन्यासकार ने अपने मुख्य पात्र बींझा की माध्यम से माडधरा को चूमते हुये घडी खम्मा कर अगाध सम्मान दिया है. इस उपन्यास में उपन्यासकार ने जहाँ एक ओर माडधरा की लोकसंस्कृति के संरक्षक मांगणियार  जाति के जीवन को गहराई से उकेरा है  वहीं दूसरी ओर लोककला के बिचौलियों व दलालों के द्वारा किये जारहे शोषण को भी उपन्यास के माध्यम से समाज और सत्ता को यह संदेश दिया है. कि यदि लोक संस्कृति की रक्षा नहीं की गई तो यह विदेशियों के द्वारा बलात्कृत करके हथिया ली जायेगी. और भारत की यह विरासत सरे आम आत्महत्या करने को  मजबूर हो जायेगी.
            कथा का प्रारंभ बींझा नाम के युवा लोकगीतगायक जो मांगणियार जाति का नेतृत्व करता है, और उसके जमींदार मित्र सूरज के मिलाप से होता है. सूरज जमींदार घराने का युवाराजकुमार है जिसकी पत्नी प्राची का बस एक्सीडेंट में मौत हो गई है और वह बहुत ही एकाकी और तन्हाई का जीवन जी रहा है. बींझा की मित्रता उसे एक बहुत बडा मनोवैज्ञानिक सहारा देता है.सूरज बींझा के गीतों का मुरीद है और वह बींझा की हर कदम में मदद करता है.बींझा की धर्मपत्नी का नाम सोरठ है जो उसके संघर्षपूर्ण जीवन की सच्ची सहचरी होती है.बीझा के साथ उसके बुजुर्ग काका भी रहते है. जिनका साथ पाकर परिवार और मजबूत होता है.उनका नाम मरुखान है.परन्तु कहानी उस समय पहला मोड लेती है जब सूरज बींझा को एक दिन १ लाख रुपये एक लिफाफे में बंद करके देता है और गाँव छोडकर बिना बताये चला जाता है जब मरुखान को पता चलता है तो वह उन रुपयों से खरीदारी करता है. परन्तु बींझा को यह बात अच्छी नहीं लगती. और वह इस बात का गुस्सा सोरठ पर उतारता है. बाद में उसे इस बात की ग्लानि भी होती है.इसके बाद से ही बींझा भी उदास रहने लगता है और परिणाम स्वरूप वह अपने मित्र बिलावल के पास जोधपुर पहुँच जाता है.वह घर वालों को कोई सूचना भी नहीं देता है.वह बिलावल से काम की माँग करता है.बिलावल उसे अपने साथ मेहरानगढ ले जाता है और अपने गाइड के काम से उसे परिचय करवाता है.परन्तु बिलावल के साथ वह बहुत ही ऊब जाता है.कई दिनों के बाद बिलावल उसे कालबेलिया जाति की लोक नृत्यिकाओं सुरंगी और झाँझर से मुलाकात करवाता है.बिलावल की तारीफ से सुरंगी बींझा को अपने साथ रखने को तैयार हो जाती है. सुरंगी एक संघर्षशील गाने बजाने वाली महिलापात्र है. जो भावनात्मक सहारा देकर बींझाको मजबूत करती है. वह उसे बालेसर ले जाती है. उसके साथ बात करतीहै. और अपनी खींवा की कहानी बताती है. जो उसका पूर्व पति होता है. वह बताती है कि इस तरह खींवा चरित्रहीनता का विष पीकर सुरंगी को छोडकर गैर औरत के पास चला जाता है.यहीं पर बींझा का परिचय झाँझर से होता है.वह भी बातों बातों में अपने जीवन की दर्दनाक कहानी बींझा से साझा करती है.यहीं पर पता चलता है कि बिलावल किस तरह उन दोनो की मदद किया था.और अंततः बींझा भी अपने हुनर की दास्ताँ उन दोनो को बयां करता है.इस तरह तीनों के बीच का नाजुक रिश्ता बहुत ही मजबूत हो जाता है.अपना नया सफर शुरू करने से पहले वह सुरंगी की अनुमतिसे अपने परिवार से मिलने गाँव वापिस लौटता है.अपने परिवार के मना करने के बावजूद वह वापिस जैसलमेर पहुँच जाता है. और सुरंगी के साथ रुपया कमाने मे लग जाता है.काम से जीचुराने के चक्कर में वह सुरंगी से डाँट भी खाता है. परन्तु सही समय में उसे अपने जीवन का संघर्ष समझ में आजाता है.एक दिन सुरंगी उसकी मुलाकात विदेशी महिला पर्यटक गाइड क्रिस्टीन से करवाती है जिसका काम विदेशियों को भारत में दर्शनीय स्थलों के बारे में बताना और दिखाना.सुरंगी के मुँह से बींझा की तारीफ सुनकर उसे अपने साथ रख लेती है.क्रिस्टीन की टीम बींझा के साथ रह कर खूब मनोरंजन करती है. दिन गुजरते है और क्रिस्टीन बींझा के साथ अपना ज्यादा समय बिताने लगती है और इसी बीच उनका यह रिस्ता शारीरिक संबंधों की परवान चढने के प्रस्ताव तक पहुँचता है. जिसको पहले ठुकरायेजाने के बाद बींझा के द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है.प्रेम जीवन में परवान चढने लगता है.बाद में समझ में बींझा को आता है कि वह सिर्फ समय गुजारने और अपने शारीरिक भूख मिटाने के अलावा कुछ नहीं अर्थात उसे शारीरिक मनोरंजन का साधन के रूप में क्रिस्टीन इस्तेमाल करती है एक दिन क्रिस्टीन से उसकी काफी बहस होती है और वह अंततः बिन बताये विदेश वापिस लौट जाती है और बदले में बीझा को बहुत सा रुपया दे जाती है.बींझा काफी टूट जाता है और वह अपने गाँव वापिस लौट जाता है. उसके मन की दश सोरठ से छिपती नहीं है. तभी बींझा सोरठ का रात्रि में उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिये सहयोग का आग्रह करताहै परन्तु वह आग्रह सोरठ के द्वार नकार दिया जाता है और नाराजगी भी दिखाई जाती है..कई दिन गुजरने ले बाद सुरंगी उससे मिलने आती है. उसके द्वारा किया गया मनोवैज्ञानिक सहारा बींझा को और संबल प्रदान करता है. इसी उद्देश्य की पूर्ति के बाद सुरंगी अपने शहर वापिस लौट जाती है.समय गुजरता है तभी सूरज का पुनः बींझा के जीवन में आगमन होता है.  यह आगमन बींझा को और मजबूत बनाता है. वह सूरज से विदेश जाने की बात रखता है और सूरज उसे अपने साथ दिल्ली ले आता है. रास्ते में पता चलता है कि सूरज की जिंदगी में प्रतीची नाम की डाक्टर आ गई है. जो सूरज को प्राची के सदमें से बाहर निकाल देती है. और वही बींझा को भी क्रिस्टीन के प्रेम वियोग से बाहर निकालती है.सूरज ब्रिजेन नाम के एक दलाल से बींझा का मिलना तय करता है. और ब्रिजेन बींझा का गाना सुनने के बाद उससे काफी प्रभावित् होता है. और उसे विदेश ले जाने की अनुमति दे देताहै. बातों ही बातो में ब्रिजेन बताता है कि वह भी मणिपुर का एक लोक गायक है और प्रगति की लालच ने उसे एक दलाल बना कर छोड दिया.वह बताता है कि शोहरत हमसे हमारा अपना सब कुछ छीन लेतीहै.बींझा उससे अपने उद्देश्य में अडिग रहने का विश्वास दिलाता है. अंत में बींझा के द्वारा अपने बजाये जाने वाले कवायच को सीने से लगाये जाने की घटना इसकी शुरुआत करती है और कथा की समाप्ति करती है.
            पूरे उपन्यास में नारी पात्रों का जिक्र करें  तो भारतीय नारी पात्र पुरुषवादी सत्ता के प्रति संघर्ष करते उपन्यास में नजर आते है.चाहे वह झाँझर हो, सुरंगी हो, या फिर सोरठ हो. यह सब पुरुष की सामाजिक मानसिक फिसलन से पीडित महिलाये है. परन्तु संघर्ष ने इन्हे एक निर्णायक के रूप में उपन्यास में जगह बनाने में सफल बनाया है.क्रिस्टीन का चरित्र विदेशी संस्कृति में खुले सेक्स, नशे और कमाऊ प्रवृति को उजागर करता है. उसके रग रग में शोषण करना और सेक्स को मनोरंजन मान कर उपभोग करना ही उपन्यास की एक और खासियत है,सोरठ का चरित्र सूरज का चरित्र बींझा के लिये एक रीड साबित होता है जो  रिस्तों की बारीकियों को समझने और उनके बीच समान्जस्य बिठाने में बींझा की मदद भी करता है.अंततः उजागर हुआ परनतु ब्रिजेन का चरित्र शोहरत के सामने मजबूर लोक कलाकार का चरित्र है जो लोकसंस्कृति को छोड कर  वैश्वीकरण की ओर पलायन करने के लिये मजबूर है. और बीझा वह केन्द्रीय पात्र है जिसके चारों ओर सभी पात्र अपनी अपनी विवशता  की गाथा के साथ गुथे हुयेहै.बींझा का महत्वाकांक्षी हो जाना उपन्यास में उसकी मजबूरी और स्वाभिमान को प्रदर्शित करता है.पूरा उपन्यास लोक संस्कृति के बचाव करने वाले लोक कलाकारॊं  के जीवन संघर्ष, बिचौलियों के द्वारा शोषण के शिकार, और पारिवारिक लचरता के साथ साथ संस्कृति को सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी को निर्वहन करने तथा रिस्तों के निस्वार्थ संवहन और संवरण  की मार्मिक गाथा है.पूरे उपन्यास की वाक्य संरचना संवाद परिस्थिति जनय चित्रण राजस्थान की धरती ,बोली जीवन चर्या को पाठक के सामने लाने में सफल होती है.बीच बीच में पात्रों के मुख से लोकगथाये और जातक कथाओं का जिक्र उपन्यास को ऐतिहासिकता के और करीब लाता है.बींझा के द्वारा गाये गये लोकगीत पाठकों को राजस्थान की माडधरा की खुशबू को महसूस करने तथा राजस्थानी बोली दरिया के तिलिस्म को पहचानने का संबल देती है.पूरा उपन्यास मागणियार जाति के लोककलाकारों के जीवन संघर्ष और लोक संस्कृति के संरक्षण के दायित्व निर्वहन करने के बीच के संघर्ष को पाठको के सामने लाने मेंसफल रहाहै.पात्रो के नाम भी माडधरा के गर्भ से खोजे गये है जो लोक गीतों में अधिक्तर उपयोग किये जाते रहे है. परन्तु मुझे फिर एक बार महसूस होता है कि पूर्व उपन्यासों की भाँति इस बार भी अन्य पात्र अपने अनकहे  परिणाम के साथ उपन्यास में शामिल रहे उनके जीवन की अनकही गाथा पाठकों को पुनः प्यासा और जिग्यासा से पूर्ण कर देती है.उपन्यास बूढी डायरी की भांति लोक संस्कृति का पोषण करने वाला है जो पाठकों की चेतना को लोक संस्कृति के और करीब ले जाता है. उपन्यास कार को इन्हीं सफलताओं की बधायी देकर लेखनी को विराम देता हूँ.
अनिल अयान ,सतना.म.प्र,
मारुति नगर सतना.

सम्पर्क:९४०६७८१०४०,९४०६७८१०७०स

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