बुधवार, 7 अगस्त 2013

अपाहिज प्रशासन में मौत का आशन

अपाहिज प्रशासन में मौत का आशन
सतना के बीच बाजार में जो भी हुआ उसके बारे में कोई विशेष व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है. परन्तु यहाँ भी तय है की इस तरह के हादसे अपने शहर की शान्ति के लिए घातक है. आज प्रश्न यह उठता है की ऐसे हादसे होते क्यों है. कौन जिम्मेवार होता है इस तरह के हादसों के लिए. आज जिस तरह सतना के बीच बाजार में एक भारी वाहन घुस कर लोगों को अपनी चपेट में लिया वह कोई आम बात नहीं है. सतना के बीच बाजार में जो भी हुआ उसके बारे में कोई विशेष व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है. परन्तु यहाँ भी तय है की इस तरह के हादसे अपने शहर की शान्ति के लिए घातक है. आज प्रश्न यह उठता है की ऐसे हादसे होते क्यों है. कौन जिम्मेवार होता है इस तरह के हादसों के लिए. आज जिस तरह सतना के बीच बाजार में एक भारी वाहन घुस अपाहिज प्रशासन में मौत का आशन
सतना के बीच बाजार में जो भी हुआ उसके बारे में कोई विशेष व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है. परन्तु यहाँ भी तय है की इस तरह के हादसे अपने शहर की शान्ति के लिए घातक है. आज प्रश्न यह उठता है की ऐसे हादसे होते क्यों है. कौन जिम्मेवार होता है इस तरह के हादसों के लिए. आज जिस तरह सतना के बीच बाजार में एक भारी वाहन घुस कर लोगों को अपनी चपेट में लिया वह कोई आम बात नहीं है. सतना के बीच बाजार में जो भी हुआ उसके बारे में कोई विशेष व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है. परन्तु यहाँ भी तय है की इस तरह के हादसे अपने शहर की शान्ति के लिए घातक है. आज प्रश्न यह उठता है की ऐसे हादसे होते क्यों है. कौन जिम्मेवार होता है इस तरह के हादसों के लिए. आज जिस तरह सतना के बीच बाजार में एक भारी वाहन घुस कर लोगों को अपनी चपेट में लिया वह कोई आम बात नहीं है.
आज भले ही प्रशासन कुछ भी बहाने बना ले परन्तु यह  भी तय है की लोगों की जानों की कीमत सिर्फ बहानेबाजी नहीं होसकती है. हम क्यों भूल जाते है की जिस तरह यह हादसा हुआ उस तरह के कई हादसे इस शहर में हो चुके है. और तब ही नों इंट्री की बात को हवा मिलती है. कुछ दिनों के बाद मामला शांत हो जाता है और प्रशासन भी अपने काम में उसी तरह लग जाता है. जैसे  की कोई बुरा सपना देखा हो. आज जरूरत है की नियमों  पर पुनः समीक्षा हो और यह तय किये जा सके की ऐसे हादसों के लिए पुलिश के आलावा और कौन से कारक है जो सतना के प्रशासन के थू थू करने के लिए जनता को मजबूर करते है. प्रशासन हमें सुरक्षित रखने के लिए पुलिस देती है. पुलिस अमले की जवाबदारी है की जनता के रक्षा करे. प्रशासन ने नियम बनाया की सुबह से रात तक भारी वाहन प्रवेश करे तो भी प्रवेश होते वाहनों के लिए जिम्मेवार कौन है. क्या पुलिस प्रशासन इतना निकम्मा हो गया की उसके घर के खर्चो के लिए भारी वाहनों के द्वारा दी जाने वाली बकसीस से दिन गुजर रहे है. क्या सरकार को और वेतनमान बढाने की आवश्यकता है ताकि पुलिस वाले इस तरह के नीचतापूर्ण कार्य बंद करने की महान कृपा करे. और नो इंट्री का सख्ती से पालन हो. यह भी सच है की पिछले कुछ महीनों से पुलिश अपहरण कांडो में इतना व्यस्त हो गयी के उसे इस मामले में सोचने का कोई अवसर ही नहीं मिला. प्रशासन को मुख्यमंत्री के स्वागत और सुरक्षा व्यवस्था की चिंता अधिक थी. आम जनता तो सिर्फ इनके लिए कीड़े मकोडो की तरह ही शायद है. दो दिन पहले हुए इस हादसे ने प्रशासन के गाल में जिस तरह का तमाचा लगाया है वह प्रशासन मुख्यमंत्री जी की यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था के दौरान भी नहीं भूलेगा. मन में यह ख्याल क्यों रहा था उस दिन की अपने सतना के अमन चैन को भंग करने के लिए कही यह एक राजनैतिक साजिस तो नहीं थी. परन्तु. ज्यादा हताहत दोनों धर्मों के लोग हुए और सबसे ज्यादा फुटपाथ के वो लोग जिनकी कोई जात थी और कोई पात. वो तो सिर्फ गरीब थे. एक तरफ गम इस बात का है की प्रशासन की नपुंसकता का एक और नमूना इस रमजान के पाकीज मौके में देखने को मिला .ऐसा लगने लगा है इस शहर में किसी के साथ कुछ भी हो सकता है  परन्तु प्रशासन शिखंडी के तरह मौन बना रहेगा भविष्य में भी. इस हादसे के बाद सतना को अब हाई टेक होना चाहिए. और सरकार को चाहिए की  पुलिस को और प्रायोगिक बनाये ताकि इस तरह की आकस्मिक परिस्थितियों से निपटा जा सके और पहले तो यह कोशिश की जानी चाहिए की इस तरह  के नियम विरोधी कृत्य पुलिस के द्वारा किये जाये. मंगलवार की इस काली शाम में सबसे ज्यादा खतरा तो सांप्रदायिक दंगो के भाडाकने और प्रशासनिक सिटी कोतवाली , सिटी अस्पताल के आस पास बवला फैलने का था. क्योकि जिस तरह पुलिस और जनता के बीच  तू तू मै मै हो रही थी वह उग्रता को और बढाने वाली थी. इस हादसे के बाद सतना को अब हाई टेक होना चाहिए. और सरकार को चाहिए की  पुलिस को और प्रायोगिक बनाये ताकि इस तरह की आकस्मिक परिस्थितियों से निपटा जा सके और पहले तो यह कोशिश की जानी चाहिए की इस तरह  के नियम विरोधी कृत्य पुलिस के द्वारा किये जाये. मंगलवार की इस काली शाम में सबसे ज्यादा खतरा तो सांप्रदायिक दंगो के भाडाकने और प्रशासनिक सिटी कोतवाली , सिटी अस्पताल के आस पास बवला फैलने का था. क्योकि जिस तरह पुलिस और जनता के बीच  तू तू मै मै हो रही थी वह उग्रता को और बढाने वाली थी. कलेक्टर का देर से पहुँचना और फिर विधायक का आप खोना कहीं कहीं एक घातक परिणाम की आशंका पैदा कर रहा था. यह दर्द विदारक घटना कई प्रश्न समाज और प्रशासन के सामने खड़े करते है. की क्या इसी तरह से सड़क सुरक्षा व्यवस्था रहेगी. क्या. इसी तरह सड़क आम जन के खून से लाल होती रहेगी. क्या इसी तरह प्रशासन सोता रहेगा. क्या जिलाधीश इसीतरह बहाने बनाते रहेगे. क्या पुलिस से बेहतर जिम्मेवारी जनता निभाती रहेगी.
अब जागने की जरूरत है. शासन और पुलिस दोनों को क्योंकि सिर्फ नियमों को तार तार करने की जिम्मेवारी और आम जन को मौत की शूली में चढाने की जिम्मेवारी बस उनकी नहीं है. बल्कि इन सब से ज्यादा जरूरत है आम नागरिक के मन से अपने प्रति एक सम्मान पैदा करने के लिए अच्छे कर्म  करने की. सिर्फ मंत्रियों और आला कमान के अधिकारियो से पीठ ठोकवा कर जनता का सेवक जनता के लिए लाभकारी और फलदायी नहीं होगा बल्कि जनता के बीच जाकर उसकी सुरक्षा का जिम्मा उठाना ही प्रशासन और पुलिस का प्रथम और अंतिम रास्ता होना चाहिए. यह एक मौका है नो इंट्री के नियमो को सख्त करने और जवानों को मुस्तैद करने का. नहीं तो यह पब्लिक सब जानती है की कहाँ से उसे अपने कदम उठाने होते है और फिर उसके लिए वो किसी से भी इजाजत नहीं लेती है भले ही धरा १४४ क्यों लगी हो.कर लोगों को अपनी चपेट में लिया वह कोई आम बात नहीं है.
आज भले ही प्रशासन कुछ भी बहाने बना ले परन्तु यह  भी तय है की लोगों की जानों की कीमत सिर्फ बहानेबाजी नहीं होसकती है. हम क्यों भूल जाते है की जिस तरह यह हादसा हुआ उस तरह के कई हादसे इस शहर में हो चुके है. और तब ही नों इंट्री की बात को हवा मिलती है. कुछ दिनों के बाद मामला शांत हो जाता है और प्रशासन भी अपने काम में उसी तरह लग जाता है. जैसे  की कोई बुरा सपना देखा हो. आज जरूरत है की नियमों  पर पुनः समीक्षा हो और यह तय किये जा सके की ऐसे हादसों के लिए पुलिश के आलावा और कौन से कारक है जो सतना के प्रशासन के थू थू करने के लिए जनता को मजबूर करते है. प्रशासन हमें सुरक्षित रखने के लिए पुलिस देती है. पुलिस अमले की जवाबदारी है की जनता के रक्षा करे. प्रशासन ने नियम बनाया की सुबह से रात तक भारी वाहन प्रवेश करे तो भी प्रवेश होते वाहनों के लिए जिम्मेवार कौन है. क्या पुलिस प्रशासन इतना निकम्मा हो गया की उसके घर के खर्चो के लिए भारी वाहनों के द्वारा दी जाने वाली बकसीस से दिन गुजर रहे है. क्या सरकार को और वेतनमान बढाने की आवश्यकता है ताकि पुलिस वाले इस तरह के नीचतापूर्ण कार्य बंद करने की महान कृपा करे. और नो इंट्री का सख्ती से पालन हो. यह भी सच है की पिछले कुछ महीनों से पुलिश अपहरण कांडो में इतना व्यस्त हो गयी के उसे इस मामले में सोचने का कोई अवसर ही नहीं मिला. प्रशासन को मुख्यमंत्री के स्वागत और सुरक्षा व्यवस्था की चिंता अधिक थी. आम जनता तो सिर्फ इनके लिए कीड़े मकोडो की तरह ही शायद है. दो दिन पहले हुए इस हादसे ने प्रशासन के गाल में जिस तरह का तमाचा लगाया है वह प्रशासन मुख्यमंत्री जी की यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था के दौरान भी नहीं भूलेगा. मन में यह ख्याल क्यों रहा था उस दिन की अपने सतना के अमन चैन को भंग करने के लिए कही यह एक राजनैतिक साजिस तो नहीं थी. परन्तु. ज्यादा हताहत दोनों धर्मों के लोग हुए और सबसे ज्यादा फुटपाथ के वो लोग जिनकी कोई जात थी और कोई पात. वो तो सिर्फ गरीब थे. एक तरफ गम इस बात का है की प्रशासन की नपुंसकता का एक और नमूना इस रमजान के पाकीज मौके में देखने को मिला .ऐसा लगने लगा है इस शहर में किसी के साथ कुछ भी हो सकता है  परन्तु प्रशासन शिखंडी के तरह मौन बना रहेगा भविष्य में भी. इस हादसे के बाद सतना को अब हाई टेक होना चाहिए. और सरकार को चाहिए की  पुलिस को और प्रायोगिक बनाये ताकि इस तरह की आकस्मिक परिस्थितियों से निपटा जा सके और पहले तो यह कोशिश की जानी चाहिए की इस तरह  के नियम विरोधी कृत्य पुलिस के द्वारा किये जाये. मंगलवार की इस काली शाम में सबसे ज्यादा खतरा तो सांप्रदायिक दंगो के भाडाकने और प्रशासनिक सिटी कोतवाली , सिटी अस्पताल के आस पास बवला फैलने का था. क्योकि जिस तरह पुलिस और जनता के बीच  तू तू मै मै हो रही थी वह उग्रता को और बढाने वाली थी. इस हादसे के बाद सतना को अब हाई टेक होना चाहिए. और सरकार को चाहिए की  पुलिस को और प्रायोगिक बनाये ताकि इस तरह की आकस्मिक परिस्थितियों से निपटा जा सके और पहले तो यह कोशिश की जानी चाहिए की इस तरह  के नियम विरोधी कृत्य पुलिस के द्वारा किये जाये. मंगलवार की इस काली शाम में सबसे ज्यादा खतरा तो सांप्रदायिक दंगो के भाडाकने और प्रशासनिक सिटी कोतवाली , सिटी अस्पताल के आस पास बवला फैलने का था. क्योकि जिस तरह पुलिस और जनता के बीच  तू तू मै मै हो रही थी वह उग्रता को और बढाने वाली थी. कलेक्टर का देर से पहुँचना और फिर विधायक का आप खोना कहीं कहीं एक घातक परिणाम की आशंका पैदा कर रहा था. यह दर्द विदारक घटना कई प्रश्न समाज और प्रशासन के सामने खड़े करते है. की क्या इसी तरह से सड़क सुरक्षा व्यवस्था रहेगी. क्या. इसी तरह सड़क आम जन के खून से लाल होती रहेगी. क्या इसी तरह प्रशासन सोता रहेगा. क्या जिलाधीश इसीतरह बहाने बनाते रहेगे. क्या पुलिस से बेहतर जिम्मेवारी जनता निभाती रहेगी.

अब जागने की जरूरत है. शासन और पुलिस दोनों को क्योंकि सिर्फ नियमों को तार तार करने की जिम्मेवारी और आम जन को मौत की शूली में चढाने की जिम्मेवारी बस उनकी नहीं है. बल्कि इन सब से ज्यादा जरूरत है आम नागरिक के मन से अपने प्रति एक सम्मान पैदा करने के लिए अच्छे कर्म  करने की. सिर्फ मंत्रियों और आला कमान के अधिकारियो से पीठ ठोकवा कर जनता का सेवक जनता के लिए लाभकारी और फलदायी नहीं होगा बल्कि जनता के बीच जाकर उसकी सुरक्षा का जिम्मा उठाना ही प्रशासन और पुलिस का प्रथम और अंतिम रास्ता होना चाहिए. यह एक मौका है नो इंट्री के नियमो को सख्त करने और जवानों को मुस्तैद करने का. नहीं तो यह पब्लिक सब जानती है की कहाँ से उसे अपने कदम उठाने होते है और फिर उसके लिए वो किसी से भी इजाजत नहीं लेती है भले ही धरा १४४ क्यों लगी हो.

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