मंगलवार, 25 जून 2013

बारिश से धुलता नगर निगम का मेकप

बारिश से धुलता नगर निगम का मेकप
बरसात आते ही हमारे आसपास जब बाढ के बाद जल भराव की स्थिति निर्मित होने लगे तो ऐसा लगता हैकि दौंगरा के गिरने के पहले ही सब कुछ लबालब हो गया है. लबालब सडक,घर-घाट,पार्क,मैदान और सबसे बडी बात नालियाँ भी लबालब.क्या किया जासकता है सब नगर निगम की मेहरबानी है. नालियों का पानी जब सडक से बहने लगे  और सडक भी नाली की तरह दिखने लगे तब ऐसा लगता है कि ये भी सावन मनाने लगी है. और इनको भी बारिस का सुरूर छाने लगा है.बेचारी नौतपा से तपी नालियाँ अपने ऊपर पानी के बहाव बर्दास्त नहीं कर पाती है. और इस तरह बारिस बता देती है कि नगरनिगम के सफाई कर्मचारियों ने कितनी सफाई से इन्हे साफ किया है. और कैसे कैसे धतकरम किये है. और उनके कार्यों की औकात कितने समय तक है.ब्लैक आउट में बिजली विभाग का भी यही रोना रहता है.पहले तो जनता इस लिये झेलती थी कि मेंटीनेंस की वजह से कटौती झेलनी पडती थी. और अब तो वह इस लिये परेशान है कि लोवोल्टेज की वजह से या हाई वोल्टेज की वजह से सारे बिजली के सामान फूँक जाते है.एक सामान्य सा कलाम स्वच्छ सतना अपना सपना वह इन सब के चलते अधूरा सा लगता है. यही वजह है कि सतना राज मार्ग और राष्ट्रीय मार्ग के आस पास और कुछ वार्डों को छोड कर सामान्य रूप से स्थिति दयनीय है.बारिस के समय में कालोनियों के अंदर घुसते ही बरसात का टाँडव अपने आप दिखाई देने लगता है. जैसे बरसात नहीं कोई सुनामी आकर अपना काम करके लौट गई है. नगरनिगम का वार्षिक बजट जितना है उसमें से एक तिहाई भाग वार्ड के विकास में खर्च होना चाहिये. कई जगहों पर बहुत ही काबिले तारीफ काम हुआ है. अच्छी नालियाँ भी बनाई गयी थी. परन्तु आज भी वहाँ गंदगी का अंबार लगा हुआ है. यह सच है कि काम तो इफरात किये गये परन्तु रखरखाव के नाम पर शून्य कदम तय किया गया,यह वही कदम है जो सिर्फ़ सोचा जाता है. और उसके लिये नियुक्तियाँ की जाती है.वेतनमान भी बनता है और एक समय के बाद उनसे वह काम नहीं कराया जाता है.सफाई कर्मचारी सिर्फ सफाई करना , झाडू लगाना और कचडे को फेंकना जानते है.नालियों की दुर्गति तो उन्हे दिखाई ही नहीं पडती है.
   नालियाँ और बारिस में उनकी स्थिति देख कर नगर निगम के सफाई अभियानों और कामों के ढोल की पोल खुल जाती है.सीवेज सिस्टम की ऐसी की तैसी हो जाती है दो तीन दिन तक तो सडकें अपना वास्तविक रूप भूल जाती है.इतना ही नहीं जनता नगर निगम से और भी आशायें है.शहर में पार्क की कमी, दर्शनीय स्थलों की मरम्म्त और नवीनी करण और वार्डों का मूलचूल विकास कहीं ना कहीं जनता को रोजमर्रा की ख्वाहिशों से दूर करता नजर आता है. नगर निगम के तत्वावधान में प्रशासनिक स्तर पर बहुत से काम हुये है. जो विकास कार्यों की गाथा का गुणगान रेल्वेस्टेशन,चौराहों और मार्गों में करते है. परन्तु सिविललाइन ,पुलिस कालोनी,बाजार ,कबाडी टोला और भरहुत नगर, अन्य ऐसे मोहल्ले जिनका कोई माई बाप नहीं है और यदि माई बाप है वह  सुसुप्तावस्था में अपने घर के पलंग तोडते है. उनकी दुर्गति और विकास में बाधक बन रहे रोडों को भी हटाना जरूरी है.
 एक ज्वलंत उदाहरण  मुख्तयारगंज स्थित व्यंकटेश मंदिर की स्थिति जो मेरी नजर में एक दशक से अधिक पूरा कर चुका है परन्तु इसकी स्थिति अपने अंतिम संस्कार की तैयारी कर रही है.और मुहुर्त की बाट जोह रहा है.यह तो एक उदाहरण है सूची में और भी बहुत से नाम अभी शेष है.जब से सतना में नगर निगम की स्थापना हुई तब से बहुत से काम हुये,लेकिन जितने भी काम हुये वो सिर्फ सरकार को दिखाने के लिये और अपना वोट बैंक बनाने के लिये किये गये.नगरनिगम के कर्मचारी सिर्फ अतिक्रमण हटाने और किसी काम का प्रारंभ करने के लिए ही तेज तर्रार होते है जहाँ एक बार काम शुरू हो गया उसके वाद यह बंद भी हो जाये. या किस गति से चलेगा इसकी कोई खोज खबर नहीं ली जाती है.कुछ साल पहले सफाई अभियान के तहत बडे बडे कन्टेनर कचडा इकट्ठा करने के लिये उपलब्ध कराये गये थे. और यह भी कहा गया था कि समय समय पर सप्ताह में एक बार इस कचडे को नगर निगम खुद उठवा कर साफ सफाई बनाये रखेगा.परन्तु हुआ क्या वो कन्टेनर ही गल गये मुर्चा लग गया उनमे टाउन हाल के पीछे परन्तु वह कार्य द्रुत गति से हुआ ही नहीं. यही सब के चलते बारिश की हल्की सी बौछार नगर निगम के कामों को धो देती है और वह बेचारा हाँथ में हाँथ धरे देखने को विवश होता है.यह सच है कि प्रशासन अकेले ही सफाई स्वच्छता नहीं फैला सकता है समाज का भी भरपूर सहयोग चाहिये परन्तु आम इंशान जब नगर निगम के आफिस में जाता है तो वह सिकायत करने से सिर्फ इस लिये डरता है कि कहीं उसे ही इस दलदल में ना फँसा दे और उसे जेव ढीली करने पड जाये. हमारे आसपास होने वाली गंदगी को हम रोक सकते है और रोकते भी है परन्तु घरों में पानी भरने और उसे निकालने के लिये भी लोग एडी चोंटी का जोर लगायें यह कहाँ तक सही होगा. हाथ से हाथ मिलाकर ही हम इस सतना को स्वच्छ सतना बना सकते है. अन्यथा इसी तरह बारिस नगर निगम की करतूतों को में पानी फेरती रहेगी.

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