मंगलवार, 21 मई 2013

अंतर्मन के द्वंद को मार्मिकता के समुन्दर मे डुबाती कहानियाँ;धूप और छाँव


अंतर्मन के द्वंद को मार्मिकता के समुन्दर मे डुबाती कहानियाँ

जिंदगी एक सधन वन ही तो है जिसमे धूप और छाँव हमसे लुका छिपी का खेल खेलते रहते है जैसे कि जिंदगी में दुख और सुख आते और अपने  मेहमानी करके चले जाते है. जी हाँ यह किसी कहाने की शुरुआत नहीं वरन एक कहानी संग्रह धूप छाँव के संदर्भ में मेरे मन की आवाज है.इस कहानी संग्रह को सतना की सुप्रसिद्ध समाज सेविका और साहित्य में अटूट रुचि रखने वाली श्री मती बेला मीतल ने लिखा है.यूँ तो उन्हे कोई भी कथाकार के रूप में नहीं जानता है.परन्तु यह भी मै दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस कहाने संग्रह को पढने के बाद हर पाठक उन्हे हमेशा एक अच्छा कथाकार मन से स्वीकार कर लेगा.धूप छाँव काल्पनिक कहानियों का संग्रह नही बल्कि  जीवन की टीस,कसक, अंतर्दंद, मर्म, और अंतर्मन के कुरुक्षेत्र को बेबाकी से बयान करने वाले पात्रों की अशेश दास्तान है. लेखिका ने अपने प्राक्कथन में खुद लिखा है कि" जीवन एक विशाल जटिल और गहन अरण्य है.वहां उसके सुंदर और असुंदर रूप दोनो विद्यमान होते है. हमारी जिंदगी मे समाजिक पक्ष जितना प्रभावी होता है भावनात्मक पक्ष उतना ही मार्मिक होता है , उतना ही याद गार होता है, और इस हद तक जीवन को प्रभावित करता है कि कोई अपने आप कलम उठा कर भाव और यादों को किसी भी विधा में कागज में उतार सकता है. और ताउमर के लिये उन्हे अमर कर सकता है.
 प्रस्तुत कहाने संग्रह सिर्फ चौदह कहानियों का संग्रह है. जिसमे हर कहानी  अपने नये आयाम छूती नजर आती है.विदाई, स्वीकृति,और पापा चले गये, एक मुट्ठी धूप, वादा, दोस्ती,धोखा, इंतजार,थैक्यू माँ, ऐसी कहानियाँ है जो पाठक एक ही बैठक में पढताहै. मानव संस्कृति सभ्यता की दुहायी देने वालों के समक्ष भावो को जीने वाले भावनात्मक रिस्ते बनाने वाले  पात्रों का प्रत्युत्तर देती ये कहानियाँ पाठक को यह संदेश देती है. कि दकियानूसी विचारधारा के चलते भावनात्मक रिस्तों के साथ बलात्कार करने वाले मठाधीश अपने  को भले विजयी मानकर आत्ममुग्ध होते रहें परन्तु वह जीवन अकी सबसे बडी हार को गले लगाकर उसका दंश उमर भर झेलते रहते है. इन कहानियों में लेखिका ने बताया कि हम उम्रभर भ्रम और द्वेश के चलते सच्चे प्रेम के रिश्तों को अपना नहीं पाते और जब हमें इस बात का पश्चाताप होता है तब तक समय बहुत आगे निकल चुका होता है.हमारे पास उस वक्त सिर्फ अफसोस  ही बचता है.
  संग्रह की अन्य कहानियाँ भी समाज में चलते रिस्तों के साथ खिलवाड और मजाक की पेशगी है.ये कहानियाँ भले ही प्रथम कहानी संग्रह हो परन्तु यह भी सच है कि इसमेम ऐसा ;लगता है कि लेखिका ने जीवन के हर छोटे बडे अनुभवों को , जिसने उन्हे अंतरमन में जाकर हृदय के दरवाजों मे दस्तक दी है, कहानी के रूप में उकेर दिया है. और साथ ही कागज मे भावों को साकार रूप दे दिया. अधिक्तर कहानियाँ चरित्र, भाव और घटनाप्रधान कहानियाँ है. इनके गढन ने ऐसा कही भी नहीं लगता कि कोई पात्र अनायास ही कथा में आकर विचलन उत्त्पन्न कर रहा है. कहानी के मापदण्ड मे हर तरह से खरी उतर रही ये कहानियाँ लेखिका को नये आयाम तक , उचाइयों तक ले जाती है. संग्रह की ८०% कहानियाँ जीवन के धूप छाँव के पलों को मास्टर पीस बना दिया है एक समाज सेविका से एक लेखिका बनने के इस सफर मे ये कहानियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती नजर आती है. इन कहानियों को पढने के समय पर ऐसा लगता है कि जैसे मेरे जीवन के उपन्यास के पन्नों से कुछ पल इन कहानियों ने चुरा लिये गये हो. जैसे यह हमारी जिंदगी बयां की जा रही है ऐसा तो हम भी कहना चाह रहे थे.समाज के क्रूरतम व्यवहार के खिलाफ मोर्चा खोलती ये कहानियाँ वह जवाव देती है जिसके सामने सारे सवालात धरासायी नजर आता है. कभी कभी तो मन को यह आभास होता है कि जैसे लेखिका ने अपने  जीवन के भोगे हुये यथार्थ और दंश को हू बहू बयाँ कर दिया है. अंततः मै  लेखिका को एक मार्मिक , गहराई ली हुई , अंतरमन के द्वंद को बया करती कहानियों का कहानी संग्रह पाठकों से समक्ष प्रश्तुत किया है वह काबिले तारीफ है और शुभकामनायें ताकि वो आने वाले वक्त में इसी तरह के मोती पिरोती रहे और हमे नये संग्रह पढने को मिले और अंत में
    हर लफ्ज जिसके जब तह ए दिल मे उतर जाते हों,
    उसके दिल की हर तह कई यादों का कब्रिस्तान होगी.
अनिल अयान,युवा कथाकार
सतना

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