सोमवार, 6 मई 2013

सबर की जीत नहीं ,हमारे सब्र की हार


सबर की जीत नहीं ,हमारे सब्र की हार
राजा जब शासन करने मे असमर्थ हो जाये तो उसकी विद्वता है कि वो राज गद्दी छोड कर अपनी जगह पर किसी और योग्य और समझदार शासक को बैठा दे.चाणक्य ने सही नसीहत दी थी चंद्रगुप्त को. आज यही कुछ हाल इस देश के शासन व्यवस्था का हो चुका है. और परिणाम यह है कि हम सब इस गल्ती का सिकार होते चले जारहे है. केन्द्र की सत्ता नपुंसक और नाकारा होती चली जा रही है. जो हाल कसाब और अफजल गुरु का भारत ने किया . उससे कहीं ज्यादा बदतर हाल पाक ने सबरजीत नाम के भारतीय का किया. फिर उदारवादिता का धतकरम हमे चूना लगा गया और हम सब स्वागत में खडे रहे. वाह रे सत्ता और सत्ता के मठाधीशों. इस तरह से देश के संग बलात्कार करने का अधिकार जिस तरह से जनता ने दिया है उसे तुम भरपूर उपयोग कर रहे हो. भारत तो हमेशा से ही अपने पडोसी मुल्को के प्रति ज्यादा ही मित्रवत रहा है.
   कितने सबरजीत और हमारा पडोसी मुल्क हलाल करता रहेगा. कितना सामन्जस्य हम ही बिठाते रहेंगे. कब तक वह पीठ मे छूरा घोंपता रहेगा. कब तक हम अपना हाथ मित्रता के लिये बढाते रहेंगें. यह सवाल आज हर भारतवासी मनमोहन सिंह जी से पूँछ रहा है. आखिरकार सबरजीत अपनी जीवन की जंग लडते लडते सबर खो दिया. और साथ ही संदेश दे गया कि. भारत में आम और खास की खाई कितनी गहरी है. कोई कुछ  नहीं कर सकता है. सब लाचार है. यदि गाहे बगाहे सबरजीत की जगह पर देश के किसी नेता , मंत्री, और बडे आलाअधिकारी का रिस्तेदार गया होता तो भारत हर शर्त मानने के लिये गुटनों के बल तैयार खडी होती. मै इतना जानता हूँ. कि देश भावनाओं में बहकर नहीं चलाया जाता बल्कि विवेक से चलाया जाता है. एक उदाहरण इटली के दो गुनहगारो और कातिल सेना के सिपाहियों की रिहाई के लिये पूरे देश के प्रशासन को उसके सामने झुकना पडा. पर भारत एक आम और बेकसूर नागरिक के लिये पाक को नहीं झुका सका. क्या समझ है. सबरजीत के मरणोपरांत तो ऐसे बयान आरहे थे. जैसे कि राजनीति अब बयानों की शक्ल में बाहर आरही हो. राजनीति की रोटियाँ सेकी जारही थी. और गृह प्रशासन ने तो जेलों की सुरक्षा भी बढा दिया. तीज त्योहारों को भूल कर शासन को जैसे इस बात की आशंका होने लगी कि कहीं धर्म का बलवा ना मच जाये. तीज त्योहारों मे जब हिन्दू और मुस्लमान एक साथ गले लगते है. तो इस तरह का घटिया काम कैसे कर सकते है.
  पाक को तो तब भी शर्म नहीं आयी. वो अपने कैदियों की माँग भी करने लगा है. क्या जज्बा पाया है भारत से.पर गलत तरीके से इसका उपयोग करने लगा है वह.आखिरकार खून का असर दिखायेगा ही.सबरजीत की मौत पाक का जवाब था . भारत के सत्ता के मठाधीशो को बताने के लिये. और एक संकेत है कि प्रशासन मे पारदर्शिता लाने के लिये. वरना अभी तो सबरजीत का परिवार खून के आँसू बहा रहा है. कहीं ये आह भारत के अन्य परिवारों को ना लग जाये. आज वक्त है चेतने का, और प्रधानमंत्री जी के तेज तर्रार रवैये का,वरना यह देश आपको कभी माफ नहीं करेगा.अब आपकी चुप्पी खलने लगी है. आपका मौन व्रत टूटने की आशा,अब आमंत्रण नहीं युद्ध की उम्मीद को और ज्यादा मजबूत करता है. क्योंकी इस शक्स की मौत भारत की उदारवादिता के सम्मान का बलात्कार और विश्वास नामक द्रोपदी का चीर हरण है. इस लिये अब आवश्यकता  है कि कडे कदम और प्रभावी दो टूक जवाब देने की. ना कि एक नव व्याहता स्त्री के कोमल अंगो की भाँति दुश्मन देश के गालों को सहलाकर रति क्रिया करने की.
          

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