शनिवार, 27 अप्रैल 2013

कैन्डिल मार्च या सैन्डिल मार्च


  कैन्डिल मार्च या सैन्डिल मार्च
दामनी के बाद तो देश मे हैवानियत जैसे अपने मुँह को और बडा करने मे लगी हुयी है और इन्सानियत तो जैसे दुम दबाकर भारत के किसी कोने मे विश्राम करने लगी है. बलात्कार करना जैसे आज के समय में वीरता का काम बनता जा रहा है कोई भी किसी भी वक्त यह कृत्य करके अपने को गौरवान्वित और पुरुषार्थ की जीत का जश्न मनाता नजर आता है. कभी कभी तो यह लगता है कि संस्कार और विरासत तो कहीं खो सी गयी है.सभ्यता तो बिल्कुल अंतिम साँसें गिन रही है,. सिर्फ बची कुची जो इज्जत इन्सानियत के पास शेष है वो भी लोग बलात्कृत करके इन्शानों से छीनने में लगे हुये है. दिल्ली जैसे महानगरों में तो लडकी कोई खेलने वाली गुडिया बनकर रह गयी है. जिसमे कोई उमर की आवश्यकता नहीं है जो चाहे खरीदे , छीने खेले और कचडॆ में फेक दे. नियम और कानून की धज्जियाँ उडाते ये इन्सानो के भेष में छिपे दरिंदे वास्तविक रूप से अपनी मानसिक विकृति का शिकार मासूम  लडकियो को बनाते है, इनके लिये लडकियाँ किसी की माँ ,बहन ,बेटी,और परिवार का और भी कोई रिस्ता नहीं सिर्फ भोगने वाली मादा मानते है. जिसका उपयोग और उपभोग करके सिर्फ भोगवादी भूख और प्यास मिटाने का प्रबंध किया जा सके. जानवरों से भी बदतर इनका यह कृत्य यह शाबित कर देता है कि मानसिक सोच की पगडंडियाँ कितनी संकरी हो चुकी है. की अब उनकी चौडी होनी की संभावना बहुत कम है.
       जिस प्रकार दक्षिण अफ़्रीका की राजधानी केपटाउन है उसी तरह भारत की राजधानी दिल्ली अब रेपटाउन बनती जा रही है. और दिल्ली सरकार पुलिस और प्रशासन सब अपने घर की बेटियों यह सांस्कृतिक कार्यक्रम होने का जैसे इन्तजार करते बैठे हुये है. दिल्ली क्या भारत का ऐसा कोई कोना नहीं है जहाँ यह कष्टकारी घटना ना घटती हो. मुझे तो लगता है कि प्रशासन पुलिस और सरकार क्या कर सकती है जब हम में ही चारित्रिक कमजोरी है और नैतिक पतन है. आज के समय देश वाकयै विकासशीलता का पालन कर रहा है. नैतिक विकास बहुत कम और अनैतिक विकास बहुत तेजी से हुआ है.आज के समय में पोर्नोग्राफी जहाँ युवाओं के मोबाइल्स की शान बने हुये है. जहाँ देश मे सन्नी लियोन और अन्य आइटम हीरोइन्स अपने जिस्म का प्रदर्शन करने मे गौरवान्वित महसूस करने लगी हो,. वहाँ पर रेप कैसे रुक सकते है. सामान्यतः मनोविज्ञान का मनोविज्ञान भी चकित है कि भारत के लोगो को क्या हो गया है. एक केस समाप्त होता नहीं है कि दूसरा अंजाम तक पहुँच जाता है. सरकार की सिरदर्दी भी कम नहीं हो पाती है.सबसे बडी बात कि इस तरह की घटनाओं में लोग कैंडिल मार्च करके शांति प्रदर्शन करने में जुट जाते है. थोडा बहुत शोक मनाते है और फिर अपने काम लग जाते है. जैसे कुछ हुआ हि नहीं है. सब सामान्य रूप से चलने लगता है. और सब लोग दुहायी देते है कि सरकार कुछ कर नहीं कर रही है. .अरे रेप करे आपके समाज का और आप हाथ मे हाथ धरे बैठे रहे ... फिर सरकार ,पुलिस और प्रशासन को दोष देते रहे. हम सब जानते है कि कानून हमारा इतना लचीला और सुस्त है कि अपराधियों को सजा देने में कई साल लग जाते है. न्याय तो कोर्ट के दरवाजे के सामने कुम्भकर्ण की नींद लेता नजर आता है. फरियादी और फरियादी का परिवार  अपने फरियादी होने पर दिन रात सोचते सोचते मर जाता है पर न्याय नहीं मिल पाता है. यही सब चलते रेप करने वाले दरिंदे खुले आम घूमते है एक के बाद एक अनगिनत रेप करते है पर हमारा कानून उदारवादी रवैये के चलते सिर झुका लेता है. देश की महिलाये , और अन्य जागरुक लोग दिन रात धरना प्रदर्शन करके सरकार से न्याय की गोहार लगाते है. सरकार पुलिस बल का प्रयोग करके लाठी चार्ज करती है.
      आज के समय पर जरूरत है की अपने मसले खुद निपटाओ. कब तक.....आखिरकार कब तक इस तरह महिलाये जिसे देवियों का स्थान दिया जाता है उन्हे लाठियाँ खाना पडेगा. वो खुद चाहें तो इस मसले को. बलात्कारियों को और अपने अपराधियों को ऐसी सजा दें की सब लोग देखे . क्या जरूरत है कोर्ट में जाकर अपना समय और रुपया बरबाद करने की. कैंडिल मार्च की जगह यदि इन बलात्कारियों के साथ सैंडिल मार्च किया जाये तो  हमारे देश की महिलाये और बेटियाँ इतनी है कि बलात्कारी सैंडिल खाते खाते बेमौत मर जायेगा.  क्योकीं दिल्ली में बैठी शीला दीक्षित जी तो कुछ करने से रहीं और सरकार सिर्फ बयानबाजी से बाज नहीं आती है. तो महिलाओं को यह काम अपने हाथों से करना होगा. इसके लिये देश की महिलाओं को एक जुट होकर सहयोग करके बलात्कारियों को सजा देना होगा, वरना अभी तो देश की राजधानी रेप टाउन बनी है आने वाले समय में पूरे राज्यों के हर शहर रेपटाउन बन जायेंगें.

कोई टिप्पणी नहीं: