मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

संविधान का बदलते विधान में बाबा साहबह


संविधान का बदलते विधान में बाबा साहब
पिछले ही सप्ताह अम्बेडकर जयन्ती का आयोजन किया गया. कई जगह पर अनगिनत आयोजन किये गये. ऐसा लगा कि आज ही देश की बहुत सी पार्टियाँ, संगठन और सामाजिक संस्थायें अपने अपने तरीके से आयोजन किये और समाचार पत्रो की सुर्खियाँ बने. हमारे देश की परम्परा हो गयी है कि किसी भी महापुरुष की जयन्ती हो या किसी भी बडे साहित्यकार का जन्मदिवस , वह भी टोलों और गुटो के हवाले हो गयी है. बापू किसी राजनैतिक संगढन की विरासत बन गये. कोई जयप्रकाश के नाम पर ऐश कर रहे है. कोई लोहिया को अपने घर की बपौती समझ कर उसके नाम पर देश को अपने अगुलियों में नचाने की कवायद कर रहे है. और यही हाल अपने संविधान का विधान लिख्नने वाले बाबा साहेब का.कभी पढा था की बाबा साहेब दबे कुचले और आम सर्वहारा वर्ग के साथ थे. उन्होने समाजिक परिवर्तन के लिये सर्वहारा वर्ग के लिये लडते रहे.समाजिक वर्ग संरचना के विरोध में आम जन की आवाज बनते रहे. और आजाद भारत के संविधान की रचना करने का कार्य अपनी समिति के साथ मिल कर किया और. संविधान के जनक बन गये. पूरा देश आज उनके लिये कृतज्ञ है.
आजादी के बाद जैसे जैसे देश तरक्की करता गया,उसमे और भी बदलाव द्रुत गति से होते गये. देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था भी राजनेताओं के हवाले होती चली गयी.संविधान का विधान लिख्नने वाले बाबा साहेब की मेहनत को लोग भूलते चले गये और अपने स्वार्थ और राजनैतिक रोटियों को सेकने के लिये संविधान की सिगडी मे परिवर्तबन होता रहा और हर एक वर्ष ही अम्बेडकर जयन्ती मे सभी दलों के राज नेता यह कह्ते नजर आये कि आज भी भारत बाबा साहेब के संविधान मे अपना विकास कर रहा है. मेरे यह नही समझ मे आता है कि आज बाबा साहेब का संविधान रह कहां गया. इतने बार संसोधन होने के बाद तो बाबा साहेब की रूह भी सोचती होगी कि कहाँ से मैने भारत को चलाने के लिये संविधान बनाने के लिये दिन रात एक कर दिया और आज भारतवासी उसी के नाम की धज्जियाँ उडाने में लगे हुये है. आज देश मे हर दल का कदवार नेता और मंत्री दावे के साथ यह कहते नजर आते है कि हम बाबा साहेब का इतना आदर और सम्मान करते है कि आज भी उन्ही के बनाये संविधान मे चल रहे है. पर अफसोस की बात की बाबा साहेब की आत्मा को तो उसी दिन ही ठेस पहुँच गई थी जिस दिन संविधान में संसोधन होना शुरू हो गया था. आज जिस बात का राग अलापा जा रहा है वह पूरी तरह से बेबुनियाद है. बाबा साहब का संविधान आम सर्वहारा वर्ग के लिये और अमी्री गरीबी की खाई पाटने वाला था. और परिणाम भी जल्द भारत को देने वाला था. परन्तु जो भी सत्ता मे गया वह संविधान मे संसोधन मे उतारू हो गया. और अब दावा करना उनके राष्ट्र प्रेम को गालियाँ देने की तरह ही है.
  सबसे बडी बात बाबा साहब की १२३ वी जयन्ती मनाने वाला भारतवर्ष और उसके राज नेता जिस तरह की ईमानदारी बाबा साहेब के जीवित रहने के दौरान दिखा रहे थे मरने के बाद उनके अनुयायी उनके विरोध मे हो गये. अपने अपने गुट बना लिये और समय के साथ पाले बदल लिये. जहाँ पर बाबा साहेब के चरण पखारने वाले लोग,उनकी पूजा करने वाले लोग, उनके गुणगान करने से नहीं थकते थे. वो समय बदल जाने के साथ साथ अब उन्ही के नाम पर ऐश और कैश करते नजर आते है. आज बाबा साहब को निश्वार्थ भाव से याद करने वाला व्यक्ति कम मिलेगा और उनकी वसीहत के नाम पर अपनी जागीर बनाने वाले लोग गिनती से भी बढ कर है. बैर हाल वाकया कुछ भी हो परन्तु बाबा साहब के कार्यों को यूँ हवा में उडाने की प्रवृति छोड कर प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है. और संविधान के विधान को सम्हालने की आवश्यकता और भी ज्यादा है.

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