शनिवार, 30 मार्च 2013

आखिरकार कौन है संजय दत्त

आखिरकार कौन है संजय दत्त
पिछले एक सप्ताह से मीडिया ने एक नई लहर पूरे देश मे चला दी है २० वर्ष पूर्व किये गये अपराध मे मिली सजा से बचने के लिये संजय दत्त की माफी के लिये मुहिम छिडी हुई है..कोई अपने वोट ई मेल से कर रहा है कोई एस एम एस से वोटिंग कर रहा है. इतने दिनों की इस वैचारिक कुरुक्षेत्र को देखने के बाद मुझे यह महसूस होता है कि आखिरकार यह संजय दत्त है कौन. क्या पहचान है इस शक्स की. एक भारतीय, एक अभिनेता, मुन्नाभाई, संजू भैया, या फिर आतंकवादियो से गठजोड करने वाला काफिर,भारत देश की जनता संजय दत्त को किसी भी रूप मे देख रही हो. पर जनप्रतिनिधि उनके नाम परव वोट की राजनीति करने मे तुली हुयी है.. पूरे घटना क्रम को देखने के बाद मुझे तो ये लगा की अब बालीवुड का पावर सुप्रीम कोर्ट के पावर से कहीं ज्यादा पावरफुल है. देश को भी ना जाने क्या होता जा रहा है कि एक अभिनेता के लिये देश की जनता चाटुकार नेताओ के बहकावे और जस्टिस काटजू के बयानबाजी में आकर सुप्रीम कोर्ट के न्याय के विरोध मे जाकर माफीनामा तैयार करवाने मे अधी दौड दौड रही है. यही है न्यायपालिका का सम्मान,. और यही है लोकतांत्रिक देश मे संविधान की इज्जत, संविधान भी अपने इस स्थिति पे गोहारी मारता होगा, बाबा साहब ये कभी न सोचे रहे होगें की उनके स्वर्गवासी होने के बाद उनके देशवासी संविधान को आम और खास के बंटवारे मे शामिल हो जायेगी.
यदि राष्ट्रपति और राज्यपाल को इस प्रकार सजा माफी का अधिकार है तो उन्हे भी एक बार जनता से भी राय जानना चाहिये कि वो इस तरह के अपराधियों के बारे में क्या सोचती है. ये नही कि जन प्रतिनिधि अपराधियों के साथ हो जाये थो पूरी जनता की सहमति है. मेरे यह समझ मे नहीं आती कि यदि जनप्रतिनिधि यदि अपना पेट भर लेता है तो इसका मतलब ये समझ ले की जनता का भी पेट भर गया. ऐसा कभी नहीं होता है. आखिरकार कांग्रेस और अन्य दल के प्रतिनिधि, जस्टिस काटजू अपने बयानबाजी से यही बहुत बारीकी से जनता के गला रेतने का काम अंजाम दे रहे है.सुनील दत्त और नरगिस ने कभी नहीं सोचे होंगे कि उनके बेटे का इस तरह देश के खिलाफ व्यवहारिक रवैया रहेगा. जया बच्चन ने जिस तरह का संजय दत्त का पक्ष लेरही थी जैसे कि पहली बार किसी परिवार रखने वाले व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने सजा का आदेश दिया है. जैसे आम अपराधियों के बाल बच्चे होते ही नही है, कोई परिवार नही होता है. वाह जया जी. अमीरजादो के ऊपर आयी तो आप गोहारी मारने लगी. आम जनता पे मौन क्यो धारण कर लेती है. पहले के समय मे अभिनेता वाकये बहुत सालीन और संयमित होते थे. उनकी रियल और रील लाइफ मे अन्तर निकाल पाना मुस्किल था और आज के समय में अभिताब बच्चन से सैफ और सलमान से होते हुये संजय दत्त तक सभी की रील लाइफ उनकी रियल लाइफ से बहुत ज्यादा अलग होती है. इनके अपराध सिद्ध हो भी जाये तो इनके चेहरे मे एक सिकन तक नहीं दिखायी देती है. अजीब जलवा है बालीवुड का जिसे देखो वो किसी तरह की कोई भी हरकत करे लेकिन उसे राज्यपाल और राष्ट्र्पति से माफी दिलवाने के लिये पूरे देश के बुद्धिजीवी वर्ग मुहिम छेड देते है और सर्वहारा के लिये न्याय दिलाने के लिये ये सब अपने अपने बिल के अंदर घुस जाते है.क्या आज भारत की स्थिति ये हो चुकी है कि न्यायपालिका का कद बालीवुड के सामने बौना आँका जाये. मनोरंजन ,शासन और न्याय पर सवार होकर जीवन जीने लगा है. मानवीय संवेदना हर अपराध , हर अपराधी को बचाती रहेगी तो न्यायपालिका के न्याय का इसी तरह होलिका दहन होता रहेगा.बात संजय दत्त की ही सिर्फ़ नही बल्कि सभी सिने सितारो केउपर लागू होती है आखिरकार संजय दत्त को इस अवदान के तहत लोग उनकी सजा माफी की अपील कर रहे है. वो सिर्फ एक अभिनेता है सुप्रीम कोर्ट के सामने चाहे अभिनेता हो नेता हो या फिर आम जन हो सब बराबरी का दर्जा रखना चाहिये.क्यों संविधान मे इस तरह के कारनामों के लिये माफी का आप्सन दिया गया. जिस समय वो छोटा राजन को प्रमोट कर रहे थे उस वक्त वो बच्चे नही थे. आज जिस तरह अराजकता फैली हुई है देश मे उससे यह साफ जाहिर होता है कि सिने अभिनेता और कांग्रेसी राजनीतिज्ञ सुनील दत्त का कांग्रेसी अस्तित्व के चलते संजय दत्त का पक्ष ले रहे है. यदि ऐसा ही चलता रहेगा तो आने वाले समय में इसी तरह रील लाइफ वाले लोग अंडर वर्ड से हाथ मिलाते रहेगे और देश को कंगाल बनाते रहेंगे. इसी तरह माफी के लिये अर्जियां भेजी जायेगी और रिहाई दिलवाने के लिये दिन रात एक करते रहेंगे. इसी तरह राज महलों के निवासी सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देते रहेंगे. और न्याय पालिया की अरथी मे लोग राम नाम सत्य चिल्लाते रहेगे. न्याय की दुधारी तलवार गरीब को आम गलती के लिये सर कलम करेगी और पावर वालो को गुनाह के लिये भी बाइज्ज्त रिहा करेगी. हम सब बालीवुड के सिने अभिनेताओ और अभिनेत्रियों की पूजा अर्चना करते नजर आयेगे. भले ही वो देश को विदेशियों के हाथों बेंचने मे तुले हों....आखिरकार हम उदारवादी व्यक्तित्व के धनी भारतवासी जो ठहरे.

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