शनिवार, 5 जनवरी 2013

क्यों पडी परती, संविदा शिक्षकों की भर्ती


क्यों पडी परती, संविदा शिक्षकों की भर्ती
एक साल गुजर गये पर उन सभी की, जो संविदा शिक्षकों की परीक्षा पास करके बैठे है, इंतजार की घडियाॅ अभी तक खत्म नहीं हुई वहीं दूसरी ओर उत्तरप्रदेश में दिसम्बर के पहले सप्ताह में जारी शिक्षको की भर्ती विज्ञप्ति के अनुसार नियुक्तियाॅ जनवरी अंत तक तय हो चुकी है। हमारे राज्य में मुख्यमंत्राी महोदय लगातार लोगों को अपने वादों के लड्डू खिला रहे है और भविष्यगत चुनावो ंके लिए मजबूत बुनियाद तैयार कर रहे है दूसरी तरफ वो सारे परीक्षार्थी जो संविदा शिक्षको की परीक्षा पास करके नौकरी लगने और बेरोजगारी का दाग हटने की बाट जोह रहे है। उनके सपनों में जरूर जंग लगता नजर आ रहा है अब तो यह स्थिति है कि कब बाबा मरेंगे और कब बैल बिकेंगे। संविदा भर्ती से जुडी राजनीतिक नीतियाॅ कहीं न कहीं वोटों की राजनीति के रूप में सामने आने लगी है और इसमें कोई संदेह नहीं बचा कि इस बार की सरकार भी हमारे वर्तमान मुख्यमंत्राी शिवराज सिंह चैहान जी की ही होगी पर उन लोगों का क्या जो सरकारी नौकरी के जलवों के सपनों में गुम है न ही चैन। कब तक भर्ती होगी हर तरफ यही चर्चा का विषय है। सभी की जुबान में 2500, 3500, 4500 से बढी हुई संविदा वेतन 5000, 7000 और 9000 पाने की चर्चाए है और बैंक के खाते भी इंतजार की घडियाॅ गिन रहे है। दिग्विजय सिंह की चलाई गई नीति जो अध्यापक संवर्ग से शिक्षाकर्मियों और फिर शिक्षाकर्मियों से संविदा शिक्षकों तक का सफर तय कर यहाॅ तक पहुॅची है। वह शिक्षकों के साथ वास्तविक न्याय तो नहीं पर वर्तमान में जहाॅ सब सरकारी मुलाजिम बनने के सपने देखते है उनके लिए भागे भूत की लंगोटी ही सही वाली स्थिति है। यदि सरकारी शिक्षक की पोस्ट न मिली तो संविदा में क्या बुरी है इसी बहाने भविष्य सुरक्षित हो जाता है। यही वजह रही है कि व्यापम की चांदी इसी तरह की परीक्षाओं को पूर्व कराने में हो जाती है इफरात धन की कमाई और कम व्यय। संविदा शिक्षकों की स्थित उ0प्र0 की शिक्षा मित्रा वाली योजना की तरह कार्य कर रही है। अब शिवराज सिंह जी को सोचना चाहिए कि उनके राज्य से अलग हुए तेरह वर्ष पूर्व छ0ग0 के मुख्यमंत्राी रमन सिंह ने जो शिक्षकांे का उद्धार किया उस वर्तमान तरह कुछ नया होना चाहिए तभी उनकी वोट बैंकिग की मार्केटिंग लगातार बढेगी शिक्षकों के वोट तो पूरे मान कर चले। शायद इस वजह से यह भर्तियाॅ चुनाव आचार संहिता के पूर्व से होना प्रारंभ हो जानी चाहिए तभी 12 महीनों का इंतजार एक सफल दो मुॅहे परिणामों तक पहुॅॅचेगा। पहला शिक्षकों का उद्धार और दूसरा यह कारनामा शिवराज सिंह चैहान साहब के खाते मंे जाना होगा। सरकारी स्कूलों में पढाई के नाम डंका बजता है प्लान बनते है, ट्रेनिंग के लिए फंड तय किये जाते है और अंततः खानापूर्ति करके रेवडी बांट दी जाती है। काश यू0पी0 का एक भी फंड म0प्र0 अपना ले तो वह छ0ग0 को भी पीछे छोड देगा पर राजनीति और शिक्षा जगत में जो लोग चिंता करते है वो अर्श में होते है और जो चिंतन करते है वो फर्श में होते है। शिक्षा के विभाग में बी0ई0ओ0 से डी0ई0ओ0 कोई अपना ज्ञान अपडेट नहीं करते है जो नौकरी लगने से पहले ज्ञानार्जन किया था वही अब तक है उन्हें मुद्रा कमाने से और स्वयं का विकास करने से फुरसत नहीं। सरकारी स्कूल के शिक्षकों के बीच यही मुद्दे चर्चे में होते है कि तनख्याह कब मिलेगी, भत्ते कब बढेंगे। नई भर्तियाॅ कब होगी और अंततः अपने समान कार्य समान वेतन के लिए जगदोजहद की चिंता रहती है। संविदा शिक्षकों की भर्ती के लिए तैयार किये जाने वाले पेपर में ऐसे प्रश्न पूछ जाने लगे कि उसकी परीक्षा देने वो सारे लडके अपना भाग्य आजमाने में लग गए जो पी0एस0सी0, आई0ए0एस0 और प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग्य आजमा रहे थे। उनका मानना है कि इसी बहाने अपना ज्ञान आजमाने का मौका मिल जाता हैं कुछ भी भर्तियों में देरी वाकयै पुनः मुख्यमंत्राी बनने के लिए शिवराज सिंह जी के साथ युधिष्ठिर का सतत साथी साबित होगी। इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है लेकिन आज भी परीक्षा पास किये हुए परीक्षार्थी बाट जोह रहे है काउंसलिंग की ज्वाइनिंग की और खुशी में मिठाई बांटने की, न जाने कब उनकी इस ब्रम्हइच्छा को तथास्तु का वरदान मिलोगा। मेरा तो मानना है यदि मुख्यमंत्राी जी ये शिक्षाकर्मियों की भर्ती की बजाय शिक्षा संवर्ग की भर्ती करें तो शिक्षकों के पूर्व में खोये हुए सम्मान को वापस दिलाने में सार्थक कदम होगा। आखिरकार कब तक आने वाली पीढी को हम ठेके के शिक्षकों के हाथों से ज्ञानार्जन करायेंगे। यदि ऐसा हुआ तो यह भी तय है कि शिक्षकों की समस्याओं और बच्चो के गिरते हुए परीक्षा परिणामों से मध्यप्रदेश को निजात मिल जायेगी तथा म0प्र0 का शिक्षा स्तर सी0बी0एस0ई0 और आई0सी0एस0ई0 के स्तर तक पहुॅच जायेगा।
- अनिल अयान, सतना

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