शनिवार, 12 जनवरी 2013

किस बात का युद्व विराम


किस बात का युद्व विराम
एक तरफ शांति के प्रयासों का दिखावा और दूसरी तरफ आतंकी कोहराम यह सूत्रा तो हमारे पडोसी मुल्क पाकिस्तान को पहले से रहा है। 65 और 71 का युद्व चस्मदीक गवाह रहा है कि यदि समक्ष युद्व हुआ है तो पाक को हार का सामना करना ही पड रहा है। इसमें पाक का ज्यादा दोष नहीं है। पाक को अमेरिका की तरह दुश्मन नहीं मिला वरना ईराक और ओसामा की तरह इनका भूगोल भी मिट गया होता। वो ज्यादा ही साफ-साफ परिणाम होता है परंतु हम लोकतांत्रिक और समतावादी देश के निवासी है। हमने गांधी की गांधीगिरी की शिक्षा ली है जितने हमले पाक ने नापाक इरादों से हमारे देश में किया और हमने उदारवादिता का परिचय देकर मित्राता के नाम पर वीर सपूतों, सैनिकों की कुर्बानियों को सिर्फ समीक्षात्मक निर्णय के अंजाम पर लाकर खत्म कर दिया यह सब सिर्फ पंचवर्षीय सत्ता और उसके मोह का परिणाम है।
युद्वविराम का मानवीय अर्च भुला देने वाले पाकिस्तानी आतंकी संगठनों और उनके उन जेहादियों को शायद यह नहीं पता कि जेहाद का कार्य किसी के जिस्म के टुकडे करना नहीं सिखाता। युद्व विराम में किस तरह से जेहाद में खलल पड रही थी। घुसपैठ के नाम से युद्व विराम को पाकिस्तान को सरेआम ये आतंकी संगठन चूना लगा रहे है। 12 बार नालायकी करने का परिणाम और सजा भारत जैसे उपमहाद्वीप ने सिर्फ इतना कहकर दे दिया कि उच्चायुक्त को तलब किया गया है। उचित निर्णय लिये जायेंगे। वह अब भी आपके ओंठ मौन क्यो है प्रधानमंत्राी जी, रक्षामंत्राी जी की जुबान में क्यों ताला लग गया और विदेश मंत्राी को तो जैसे पैरालाइसिस सा हो गया। इस पूरे घटनाचक्र मंे कोई धर्म, कोई देश या कोई सभ्यता दोषी नहीं है बल्कि पाकिस्तान की जमीन में पल रहे वो आतंकी संगठन और आतंकवादी दोषी है जिस पर पाकिस्तान समय पर नकेल नहीं लगाया और वो ज्यादा भारत के साथ-साथ पाक की भी तेरही करने में उतारू हो गया है। यह बात पाक के उच्चाधिकारियों से भी छिपी नहीं है कि उसके यहाॅ इस्लामाबाद और कराची में हुए आतंकी हमले उन्हींेे के नाजायज तरीके से पैदा किये आतंकी संगठनों और उनके सपोलों की घिनौनी करतूत है जो अपनी ही थाली में छेद करने से भी बाज नहीं आ रहे है।
वास्तविकता तो यह है कि जिन्ना साहब की मेहरबानी है जो पाकिस्ताचन का अस्तित्व आया और भारत का विभाजन शर्तो के आधार पर हुआ और उसी के बाद से पाक, अफगान और बांग्लादेश जैसे पडोसी मुल्को का अस्तित्व सामने आया जिसमें से पाकिस्तान लगातार विरोधी रवैये के चलते कई बार युद्व में मुॅह की खाया पर बाज नहीं आया लेकिन अभी हुए बर्बरतापूर्ण तरीके से कृत्य वाकयै यह साबित कर दिया कि पाक आतंकी संगठन और आतंकवादी सिर्फ जेहाद और मुस्लिम धर्म को सरे आम, सरे राह नीलाम कर रहे है, गहराई पर जाने में यह समझ में आया कि आतंकी संगठन बिगडैल भाग है मुस्मिल समुदाय का जो धर्म को अपने स्वार्थो के लिए गलत ढंग से उपयोग कर रहा है। इस बात का एहसास पाकिस्तान को हो रहा है कि कई दशकों के पूर्व उसने जो बबूल का पौधा बोया था उसी के कांटे उसे चुभ रहे है। यह भी सच है कि पाकिस्तान के बगल में यदि भारत की जगह में यदि अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश होता तो तय था कि ईराक की तरह कब्र में पाक भी आराम कर रहा होता लेेकिन होता वही है तो ऊपर वाला चाहता है।
लेकिन बर्बरतापूर्ण इस रवैये से पूरे देश में आक्रोश फैला हुआ है इतना ज्यादा किसी ने भी विरोध नहीं किया, क्यो नहीं किया, इसमें देश की संवेदनाएॅ नहीं तार-तार हुई, क्या इसमें कोई भाई, कोई पति, कोई पिता नहीं आहत हुआ, किसी माॅ, किसी बहन, किसी पत्नी ,किसी बेटी ,की उम्मीदें नहीं धराशायी हुई। सच है हम सब इसे दुर्घटना मान कर चुपचाप मौन धारण किये है। सब कुछ खत्म तो उन दो परिवारों का हुआ जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया। मुझे लगता है यदि हमारी सरकार प्रैक्टिकल होकर तुरंत उत्तर देना सीख लें तो यह मजाक दुश्मन देश के द्वारा हर बार न किया जाएगा। सरकार इस प्रकार की परिस्थितियों में हमेशा एक ही जवाब देती है कि हम ठोस कदम उठा रहे है मेरी यह समझ में नहीं आता कि हमारी केन्द्र सरकार के कदम कितने ज्यादा मजबूत और ठोस कदम है कि उठते-उठते शत्राु द्वारा आक्रमण भी कर देता है और हम भीख मांगते रह जाते है। अजीब सत्ता है और सत्ता के ये पण्डे है वो न पाकिस्तानी धतकरमों को रोक सकी और न ही पाकिस्तानी संगठनों को जो धर्म की छीछालेदर करने से कभी बाज नहीं आती है।
मुझे एक था टाइगर फिल्म का अंतिम सीन याद आता है जिसमें कथाकार की कथावस्तु को भारत और पाकिस्तान दोनों को माननी चाहिए जिसमें सलमान खान और कैटरीना अंतिम सीन में एक साथ विदेश में घर बसा लेते है और सलमान कहता है कि मुझे इस बात की खुशी हुई है कि आज तो भारत की राॅ और पाकिस्तान की आई.एस.आई. हमें ढंूढने के लिए एक साथ काम कर रही है वरना ये दोनों खूफिया एजेंसी सिर्फ आपस में ही लडती रहती है। आज भी आई.एस.आई. और राॅ के कुछ ईमानदार अधिकारियों को सलमान और कैटरीना की बजाय आतंकवाद, आतंकी संगठनों और मुस्लिम धर्म के दगाबाज अफसरों को ढंूढने के लिए एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है इस पर दोनों सरकारों को संजीदगी से विचार करना चाहिए तभी यह प्राॅक्सीवार का ड्रामा रूक सकता है वरना एक युद्व विराम होगा और उधर से दूसरी तरफ घुसपैठियों का कोहराम होगा। यह भी सच है कि सेना सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक आदेश का इंतजार कर रही है वरना पाकिस्तान क्या कई पाकिस्तान इस तरह की हरकतों के बाद एक पहर से दूसरा पहर न देख पाय और विश्व का मानचित्रा हर पहर बदलना पडे। यदि इतने हमलों के बाद भी हम चुप है तब यह तो तय है कि भारत की संसद के सत्ताधारी जनप्रतिनिधियों का पुरषत्व खत्म हो चुका। कोई दुश्मन भले ही कथित रूप से वह हमारा भाई हो, यदि सरेआम वीर सपूतों का सिर कलम कर दे तो भी हम खामोश रहें तो यह कायरता ही होगी। जिस दिन इस बर्बरतापूणर््ा घटना को मैंने देखा उस दिन मेरे अंदर के कवि ने सिर्फ इतना कहा कि -
तुम संसद में बैठ देशभक्ति जान नहीं सकते
ये ऐसे नालायक है तुमसे मान नहीं सकते
सेना यदि औकात दिखा दे बिना किन्ही आदेशों के
तब भूगोल नहीं दिखेगा विश्व में ऐसे देशों के
देश नहीं चला करता है ऐसे नालायक पंडों से
शांति नहीं स्थापित होती समतावादी झंडो से
सेना तो तैयार खडी है पाकिस्तान मिटाने
 एक पल में जाकर के कब्रिस्तान बनाने को
सच कहता हूॅ सेना को यदि कुछ घंटे मिल जाए
तो छद्म युद्व करने वाले देशों के मुॅह सिल जाए।

- अनिल अयान, सतना

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