रविवार, 16 दिसंबर 2012

ओलम्पिक से भारत हुआ बेदखल ,टूटा खिलाडियों का मनोबल ....

कब तक सहें -
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ओलम्पिक से भारत हुआ बेदखल ,टूटा खिलाडियों का मनोबल ....
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भारत में जब से कामनवेल्थ गैम्स हुए भारत के राजनीतिज्ञकों के घर की चांदी हो गई। कई मालामाल हो गये, कई घोटालेबाज हो गये, कईयों के ऊपर केस चलने लगे, कई जाॅच के घेरे में आकर अपने आप को जनता की नजरों में गिरा लिये और उस समय राजनीतिज्ञ और अधिक खुश हुए हांेगे जब भारती ओलम्पिक संघ को विश्व ओलम्पिक संगठन से इसलिए बेदखल कर दिया गया क्योकि संगठन के चुनाव में ज्यादा ही राजनीतिक पार्टियों का दखल बढने लगा था इसका प्रमुख कारण राजनीतिक पार्टियों के धन्ना सेठों के मध्य लाभांश के लालची रवैयें की बढोतरी थी।
राजनीतिज्ञों ने दखल दिया और उधर भारत ओलम्पिक संघ से बेदखल हुआ। अब सब हाथ में हाथ रखकर बैठे हुए ओलम्पिक गैम से भारत की निकासी की तेरहवीं और बरसी का शोेक मनाते नजर आ रहे है। क्रिकेट का जुनून इतना अधिक बढ गया है कि क्रिकेट के माहौल को देखते हुए बाॅलीवुड ने कई फिल्में बनाकर करोडो कमा लिये। प्रायोजकों के द्वारा फर्श से अर्श तक का सफर तय कर लिया गया और खिलाडी विज्ञापन के चकाचैंध में आकर खेल की गुणवत्ता की ऐसी की तैसी करने में परहेज नहीं किया। कई खिलाडी मैच फिक्सिंग, डोपिंग टेस्ट में अपने को सबसे आगे रखकर पूरे देश की इज्जत पूरे विश्व के सामने निलाम कर दी और पूरे देश को उनकी करतूतों से शर्मशार होना पडा। क्रिकेट के चलते अधिकतर खेल उपेक्षित होते चले गये। उनको लाभ और सुविधाएॅ बहुत दूर की बात बल्कि उनके साथ जातीयता बढने लगी। अन्य खेलों में भारतीय हुनर को आगे बढने का एक सहारा ऐशियन, कामनवैल्थ और ओलम्पिक ही था। जहाॅ पर भारतीय खिलाडियों को अलग-अलग विधाओं में अपना जौहर दिखाने को मिलता पर उपर वाले की दया और इन राजनीतिज्ञकांे की दुआ के चलते यह भी संभव नहीं हो पायेगा। थोडा बहुत गोल्ड, ब्रांज और सिल्वर मैडल के द्वारा भारत थोडा बहुत विश्व में अपना स्थान सुनिश्चित कर पाया था। वह भी इस परिणाम के चलते खत्म हो गया। आखिरकार कब राजीतिक देश का अहित करने से बाज नहीं आएंगे। मुझे लगता है कि राजनीतिक प्रतिनिधियों का दखल ओलम्पिक कमेटियों में नहीं वरन क्रिकेट, हाॅकी की चयन कमेटियों में भी बढता चला जा रहा है। इसका तात्कालिक उदाहरण भारतीय खिलाडियों का क्रिकेट के दौरे और उनके प्रदर्शन में आई औसतन गिरावट हैं। हम अपने स्वार्थो के चलते यह भूल जाते है कि खिलाडी कोई रोबोट नहीं है जिसे हमने चार्ज किया और उसे अपने पैसा कमाने के होड में लगा दिया। न उसकी सेहत की ध्यान दी और न ही उनके परफार्मेंंस की चिंता की। इसके चलते इंग्लैण्ड दौरे में क्रिकेटरों की जो थू-थू हुई है वह मीडिया ने हम सबके सामने बहुत विस्तार से रखा हैं भारत क्रिकेट के लिए पागल है इसमें कोईं संदेह नहीं है। भारतीय खिलाडी भी हर बार आशाओं में खरे उतरे। यह उनके लिए संभव नहीं हो सका। हमारी मीडिया की सबसे बडी कमी है कि चैनल सबको सिर मे चढा लेते है और इसके चलते खिलाडियों में ओवरकाफिडेन्स पनपने लगता है और यदि खिलाडी फ्लाप हुआ तो उसकी मिट्टी पलीद करने में यह मीडिया पीछे नहीं हटती। यह पब्लिक है दोस्तो इसे सिर्फ अपने हीरो से जीत की उम्मीद रहती है और यदि उम्मीद टूटती है तो वह सिर्फ बौखलना ही जानते है। यही हाल हाॅकी और ओलम्पिक गैम के अन्य विधाओं का भी होता है पर क्या किया जाय लगातार आशंकाओं के बावजूद वहीं हुआ जिसका डर था। आखिरकार वह मौके जिसमेें भारतीय एथिलीटों, टेनिस स्टार, मुक्केबाजों, कुश्ती पहलवानों, तीरदांजो, हाॅकी खिलाडिया और अन्य विधाओं में खिलाडी अपने जौहर दिखाते वह भी उनसे बहुत ही बेशर्मीपूर्वक छीन लिया गया। अब बेचारे यह खिलाडी उस गलती का परिणाम भुगतेंगें जो उन्होंने किया ही नहीं है। अपने घरेलू खेलों में भाग लेने बस से उनका पूरा विकास कैसे हो सकता है वो विश्व स्तर के खिलाडी कैसे बनेंगे। विश्व स्तर का खिलाडी बनने के लिए विश्व स्तर की प्रतियोगिताओं में अपना स्थान सुरक्षित कर भारत का गर्व बढाने की आवश्यकता है। खेल का सीधा सा नियम रहा है जो जिस कार्य के लिए चुना गया है वह उस स्थान पर अपना पावर दिखाये। यदि डाॅक्टर अपना पावर न्यायालय में दिखायेगा तो कैसे काम चलेगा। बस इसी तरह बंटाधार होता रहेगा। इसी तरह खिलाडी अपने कांधे में अपने हुनर की अर्थी लेकर घूमते नजर आयेंगे। आज के समय पर चाहिए कि चयनकर्ताओं केा अपनी जिम्मेवारी तटस्थ होकर निर्वहन करें ताकि उम्दा खिलाडी निकलकर सामने आये और भारत का नाम रोशन करें। ओलम्पिक ही नहीं बल्कि अन्य खेल के संघों को अपने नियम, कायदों मंे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि उसमें खिलाडी, उनके कोच और भूतपूर्व खिलाडियों को चयन समिति में स्थान मिलें न कि राजनीतिज्ञों को। वरना अभी तो ओलम्पिक में ही भारत बेदखल हुआ वह दिन दूर नहीं है कि जब आई.सी.सी. के संगठन से बी.सी.सी.आई. को भी बेदखल होना पडेगा क्योकि राजनीतिज्ञ इसी तरह खेल संगठनोें के बाप बनने की कोशिश करते रहेंगे और खेल संगठनों को सर्वनाश करने में तुले रहेंगे। अंततः खेल को सर्वोपरि बनाने के लिए खिलाडियों का संगठन हो जो खिलाडियों के विकास की बात सोचे खेल को खेल रहने दें दंगल का मैदान न बनायें।
- अनिल अयान , सतना

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