शनिवार, 8 दिसंबर 2012

जब शिक्षकों ने दिखाया दम, हम नहीं किसी से कम

जब शिक्षकों ने दिखाया दम, हम नहीं किसी से कम
अध्यापक से शिक्षाकर्मी और फिर संविदा शिक्षक तक के सफर में गुरू के चेहरे का इतना परिवर्तन हो चुका है कि अब मास्टर साहब को मास्टर की संज्ञा दे दी गई। कुछ दिनों पूर्व इस बात को जानकर थोडा खुशी हुई कि शिक्षक कुछ तो जागृत हुए कुछ समय अंतराल में हडताल, मुख्यमंत्राी से मिलना जुलना और फिर कोई परिणाम आ न पाना। इसलिए स्कूटर रैली निकालकर कम से कम शासन को यह तो बताया कि शिक्षकांे की माली हालत क्या हो चुकी उसी काम को करने के लिए सरकार किसी को 20,000 से 40,000 रू0 मासिक वेतन देती है और किसी को कर्मी बनाकर कुछ समय के लिए 5000 से 10000रू0 में निपटा देती है। बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं को जब कोई अच्छा जाॅब नहीं मिलता तो वह मास्टरी कर लेता है उसकी स्थिति मरता क्या न करता जैसी स्थिति हो जाती है। राधाकृष्णन जी की संज्ञा और गोविंद के समतुल्य इन शिक्षकों का स्थान कितने नीचे इस सरकार ने गिरा दिया है यह सरकार भी नहीं समझ पायी है।
शिक्षक से शिक्षाकर्मियों तक का सफर तो दिग्विजय सरकार ने शुरू किया था जैसे की सफाई कर्मियों की स्थिति थी। फिर शुरू हुआ संविदा शिक्षकों का दौर जिसकी स्थिति और गुड गोबर हो गई। आज के सरकारी स्कूलांे की स्थिति यह है कि मास्टर रोज समय में स्कूल पहुॅचता नहीं है यदि पहुॅच गया तो समय पर बच्चों को पढाता नहीं है। वरिष्ठ शिक्षक इसलिए नहीं पढाता है क्योकि उसका विकास तो 40,000रू0 का वेतन बढा रहा है। बच्चों का विकास भाड में जाए। संविदा शिक्षक इसलिए नहीं पढाता है कि वो अपनी पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं के चलते इतना चिंतित रहता है कि पढाने का मन ही नहीं करता। कही यदि कभी पढाने का मन किया भी तो प्राचार्य के आदेश और विभागीय काम की घुडदौड जारी हो जाती है। शिवराज सरकार ने शिक्षा के स्तर को बढाने के लिए शिक्षकों का वेतनमान बढाया तो धन्यवाद की पात्रा है। पर यह भी सच है कि आज उतने वेतन से एक सप्ताह का घर नहीं चलता है। एक महीना घर चलाना सिर्फ बीरबल की खिचडी के तरह ही हाल होगा। आजकल शिक्षकों की स्थिति डेली वेजेज मजदूर से भी बदतर है और बदतर करने वाले हमारे जनप्रतिनिधि और हमारी सरकार। शिक्षक दिवस का ढकोसला मुझे बिल्कुल नहीं भाता। शिक्षक अपना सम्मान करवाने के लिए अधिकारियों की चमचागिरी कर आवेदन पत्रा दें। मैं ये पूछता हूॅ कि वो कमेटी क्या काम करती वो प्राचार्यो और अभिभावकों के मत से शिक्षकों के बारे में जानकारी एकत्रा कर चुनाव करे कि वह पात्राता रखता है कि नहीं। पर नहीं यदि ऐसा हुआ तो सरकारी रेवडी बांटने में लगाम नहीं लग पाएगी। इसलिए शिक्षक दिवस में सरकार सरकारी दामादों को स्वागत करके सम्मानित करती है और सभी शिक्षकों को इस बात का गर्व होता है कि वो डाॅ. राधाकृष्णन के वंशज है उन्हें कितना सम्मान दिया जाता है। यदि शिक्षकों ने समान वेतन समान सुविधाओं की बात की तो वो दोषी हो गया। एक नगर निगम का स्वीपर इन शिक्षकों से अधिक पेमेंट पाता है और घूस जो मिलती है उसकी कोई गिनती नहीं। पोलियों डाॅप पिलाना हो, जनगणना करना हो, सर्वे करना हो या धूप लू में बगारी करना हो सब बिन बुनियाद के अशिक्षकीय कार्यो के लिए सिर्फ शिक्षा के ही सरकार को नजर आता है। क्या और विभाग वाले विशिष्ट लोक से आये है क्या उनकी जिम्मेवारी कुछ नहीं है।
मैं पूछता हूॅ कि जब सरकारी शिक्षक से यदि साल भर पढवाया नहीं जाएगा सिर्फ उपर्युक्त कार्यो की तरह बेगारी करवाया जाएगा तो माॅ सरस्वती की कृपा क्या इतनी ज्यादा इफरात है कि सरकारी स्कूल के बेबस लाचार बच्चों पर मुफ्त में बरसेगा जी नहीं दोस्तो। यदि सरकार को शिक्षकों से उनके हुनर का उपयोग करवाना है तो उन्हें बुनियादी सुविधा उपलब्ध करानी होगी। उनसे सिर्फ पढवाने का कार्य लेना होगा। अन्य जिम्मेवारियों के लिए अन्य विभाग के कुर्सी तोडते कर्मचारी है ना। उनका उपयोग समय-समय पर करना चाहिए।
शिक्षकों का पूरा समूह एक जुट होकर जिस तरह अपनी शक्ति प्रदर्शन किया है वो भी अनुशासित होकर वह पूरे राज्य के संविदा शिक्षक को करना चाहिए। गरम रवैया ही उन्हें उनकी मंजिल तक पहुॅचा सकता है। एक तरफ जब प्रशासन यह कहता पाया गया कि इन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी तब मुझे लगा कि अपनी आवाज जब बहरों को सुनाने के लिए शक्ति प्रदर्शन करना कहाॅ गलत है वो भी सभी अनुशासन में रहते हुए। यदि इतनी ज्यादा चिंता है तो समान वेतन समान सुविधाएॅ समान कार्य और जिम्मेवारी का सूत्रा अपनाकर इस समस्या को ही खत्म कर दिया जाए। खुद राई का पहाड और तिल का ताड बना लिया और दूसरे पर अंगुलिया उठाई जाने लगी। एक काम के लिए अलग-अलग वेतन माना, अलग-अलग सेवा शर्ते, यह तो दोगलापन हुआ शिक्षक हमारे देश का भविष्य निर्मित कर रहे है और देश की सरकार को चाहिए कि शिक्षक को एक राजपत्रित अधिकारी के बराबर मापदण्ड दें, सेवा शुल्क और सुविधाएॅ प्रदान करना चाहिए तभी उनका वास्तिविक सम्मान उन्हंे प्राप्त होगा अन्यथा अन्य लोगों की तरह शिक्षकों को भी अपनी शक्ति प्रदर्शन करने की आदत पड गई तो स्कूल में बच्चो को कौन पढाएगा और परीक्षा परिणामोें का क्या हाल होगा जनाब इसका जो देश को नुकसान होगा उसके लिए कौन जिम्मेवार होगा इसलिए समस्या को बढाने की बजाय समस्या की जड को खत्म करना चाहिए। शिक्षक का सम्मान हम सब का सम्मान है। इसलिए शिक्षको का हक भी एक समान होना चाहिए। अंत में
झील में पानी बरसता है हमारे देश में
खेत पानी को तरसता है हमारे देश में
यहाॅ नेताओं और बेईमानों के सिवाय
अब खुशी से कौन हंसता है हमारे देश में
- अनिल अयान
मो. 9406781040

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