शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

अतिक्रमण हटाने का धतकरम कही नरम कहीं गरम

अतिक्रमण हटाने का धतकरम कही नरम कहीं गरम
जब भी कोई नेता नपाडी या किसी सत्ताधारी की शहर में आवक होती है तो हमारा प्रशासन तथा उसके ठेकेदार इतने ज्यादा जागरूक हो जाते है कि उन्हंे सिर्फ और सिर्फ सडक के किनारे के वो सामान्य व्यवसायी दिखते है जो नाम के व्यवसायी है परंतु काम सिर्फ रोटी, कपडा और मकान के लिए रोज जगदो जहद करते है। इसी बहाने इस बात का सत्यापन हो जाता है। मुख्यमंत्राी से सामान्य मंत्राी या राष्ट्रपति से राज्यपाल इनकी आवक शहर को सुंदरता और गरीब दुकानदारों को कई महीने तक न बोलने वाला एक हरा घाव दे जाती है। लोगों के पेट में लात मारकर शहर को साफ सुथरा बनाना और साफ सुथरा सतना अपना के नारे लगाने वाले तथाकथित साफ स्वच्छ मण्डियो की व्यवस्था तो नहीं करा पाते। वोट पाने के लिए गोटियाॅ फिट करने के साथ-साथ उन बेबस लाचार दुकानवालों, ठेलेवालों, गुमटीवालों और अन्य इसी तरह के कुछ दुकानदारों से नाजायज वसूली करने का गुणधर्म इन नालायक कर्मचारियों का होता है। समय आने पर यह दुलत्ती मानकर उन सभी कमजोर व्यवसायियों का गला रेतने में भी पीछे नहीं हटते। समस्या यह नहीं है कि समाधान तक शहर पहुॅचता नहीं है बल्कि समस्या यह है कि समस्या को अपना घर बनाने वाले आला अफसर समाधान को खोजने की कोशिश ही नहीं करते उन्हें सिर्फ अपनी जंेबें भरने के साथ ऊपर अच्छे आंकडे दिखाना और कुछ समय के बाद नियम कानून भूल जाना जैसी दो कोडी की हरकतें करने से फुर्सत नहीं है।
जिसके पैर की ऐडियाॅ नहीं फटती है वह दूसरे का दर्द जान ही नहीं सकता है। यह सच है कि ए0सी0 के हवा खाने वाले घूस से दाल रोटी की व्यवस्था करने वाले और दलालों के मुफ्त दिये हुए पेट्रोल और डीजल की गाडियों के मालिक ये तथाकथित सफेदपोशी ईमानदार आला अफसर जब अतिक्रमण के नाम पर सरकार का समय और विभाग का धन उडाने के लिए निकलते है तो इन चश्मे से सिर्फ और सिर्फ रोड के पास रखी गुमटियों सब्जी और अन्य सामान के ठेले और गरीब तबके के वो दुकानदार ही दिखते है जो इन दबंगईयों स्टाइल में किये गये अतिक्रमणविरोधी दस्ते के डर से इनके मुॅह निकली धनराशि इनके जेबों में भरने की मजबूरी से बेबस है वरना इन उडनदस्तों के पर अब तक इतने मजबूत ही नहीं हुए कि सडक के किनारे बने हुए माॅल मल्टीपलेक्स, आटोमोबाइल्स, जनप्रतिनिधियों के होटल, रेस्टाॅरेंट और तथाकथित नामी गिरामी काला धन रखने वालों के बियर बारों का नाजायज अतिक्रमण हटा सकें क्योकि वहाॅ पर इनकी फाइलें इनका आदेश और इनके सारे नियम कानून मात्रा एक फोन की घंटी बजने के बाद घुटने टेक देते है तब मेरा सवाल इन लोगों से होता है कि कहाॅ चला जाता है इनका नियम, कानून, इनका साफ स्वच्छ सतना रखने का उद्देश्य और सरकार के बहुमुखी विकास के चिट्ठे और अंततः इनकांे अपने कदम पीछे ही लेने पडते है। मैं अतिक्रमण हटाने का विरोध नहीं करता पर इस कार्य में न्यायसंगत और तटस्थ होकर ईमानदारी से अपना कत्र्तव्य निर्वहन करने का समर्थन जरूर करता हूॅ ताकि इसका लाभ लोगों को प्रशासन को और पूरे देश को प्राप्त हो। अभी तक मैंने जितने बार देखा है कि जनप्रतिनिधियों, विभिन्न पार्टियों के नेताओं और पावरफुल उद्योगपतियों ने इस व्यवस्था को लचर बना दिया है। इसके सामने प्रभावी अफसर या तो आते नहीं है और यदि आते है तो उनका जल्द से जल्द तबादला करा दिया जाता है। यदि प्रशासन चाहे तो जो लोग अपने छोटे मोटे व्यवसाय और रोजी रोटी कमाने के लिए काम पर दिन रात एक करते है उनके लिए नगर निगम के द्वारा परमानेंट व्यवस्था करवा दी जानी चाहिए जिससे अतिक्रमण का झंझट खत्म हो जाय। आज के समय पर जिला प्रशासन अपनी तरफ से प्रयास तो बहुत करते है पर उसके रख रखाव करने में उसको पसीने छूट जाते है क्योकि नियमित रूप से कार्य करना तो दूर उसका रख रखाव करने में जितने व्यवधान उसे झेलने पडते है वह हमारे सामने है। प्रशासन के द्वारा बहुत सारे कार्य तो धत करम के रूप में पूरे समाज में दिखाई पडता है क्योकि प्रशासन के कुछ लोगों की रोजी रोटी के साथ बलात्कार और नियम कानूनो का दुरूपयोग करने से एक कदम भी पीछे नहीं हटते। आज के समय पर सामान्यतः उच्च पद पर वहीं बैठा है जो नेताओं की चमचागिरी करने में सबसे आगे है और प्रशासन की आंखो में धूल झोंकने में भी शर्म नहीं आती हो। आज के समय पर अधिकारी अतिक्रमण हटवाते है पर अतिक्रमणकारियों से पैसे इसलिए लिये जाते है ताकि उन्हें अतिक्रमण किया जा सके और अधिकारियों के हाथ में फंसी सोने की अंडा देने वाली ये मुर्गियाॅ हमेशा जिंदा रहीं आये अन्यथा नरम गरम व्यवहार वाले इस प्रकार के अतिक्रमणविरोधी दस्तों का हाल क्या होता है यह सब हम रोजाना समाचार पत्रों एवं टी0वी0चैनलों में देखते है। इन गतिविधियों से एक बात निकलकर सामने आती है इस प्रकार के कार्य चांदी कंे जूतों से पिटे हुए लोगांे की मजबूरी है और रूपयों के हाथो से बिके हुए लोगांे की मजबूरी है क्योकि दस्ते में शामिल हर एक व्यक्ति लक्ष्मी पुत्रों के लक्ष्मी के हाथो नीलाम हो चुके होते है और बिन पेंदी के लोटे की तरह व्यवहार करते नजर आते है। यही इनकी नियत ही है और गरीब व्यवसाइयों की रोजी रोटी के लिए उनकी नियत एक विधान है।
-----------
अनिल अयान
संपादक शब्द शिल्पी
सतना मो. 9406781040



कोई टिप्पणी नहीं: