सोमवार, 12 नवंबर 2012

दीप इस प्रेम का देहरी मन धरे।

दीप इस प्रेम का देहरी मन धरे।
यह सच है कि दीप पर्व हमारे नजदीक है दीपक हमारे जीवन में रोशनी का प्रतीक है। दीप से निकलने वाली रोशनी हमारी सफलताए हमारे विश्वासए हमारी खुशी और जीवन के सौहार्द्र का प्रतीक है। त्रोतायुग में राम कभी वनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौटे थे। लगातार चैदह वर्ष का संघर्ष उनके जीवन को दीप्तिमान कर दिया था। मर्यादा पुरूषोतम राम के जीवन की रोशनी के आगमन पर अयोध्यावासियों ने घी के दीपों से रोशनी की थी। आज इस कलयुग में अब अयोध्या पर राम जन्मभूमि के ऊपर बाबरी और राममंदिर पर बहस चल रही है। महंगाई का यह दौर है कि दीपक के लिए तेल ही बहुत महंगा है घी तो ईद के चांद की तरह हो चुका है। आज के इस आई टी के युग में दीपों का स्थान मोमबत्तियों और सजावटी लाइटों ने ले ली है। आज हर वर्ग को लक्ष्मी को भरने की अकबकाहट सुख चैन से जीने नहीं देती।
यह दीप पर्व अपनी उष्मा लेकर ऊर्जा और प्रकाश लेकर आगे बढ रहा है। हम सब की और आज की विसंगतियाॅ सारा मजा किराकिरा करने में कोई परहेज नहीं छोडती है। विसंगतियों के चलते देश आंतरिक आतंकवाद की आग में जल रहा है। लगातार सभी कारक अपना तम पूरे भारत में फैला रहे है। अमावस्या का अंधेरापन देश की एक टिमटिमाटी रोशनी को बुझाने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रही है। यह दीप है तो अपनी रोशनी की एक किरण लेकर दूर तक अंधेरे को चीरने का संघर्ष जारी किये हुए है। प्रयासों को कभी छोडना नहीं चाहिए है। यह प्रयास कोशिशें ही है जो हमें यह बताती है कि हारों तो थको नहींए फिर से शुरूआत करों और बढते रहो अंत तक जब तक की तुम्हे सफलता न मिल जाये। यह जीवन एक तम से लडने का कुरूक्षेत्रा है। कभी हम अपने आसपास का तम मिटाने की कोशिशे करते है। कभी दुख को खत्म कर खुशी को पुकारने की कोशिश करते है। कभी निराशा में आशा की किरण खोजने की कोशिश करते है और यही कार्य कोशिशों को सफलता में बदलकर दीवाली का उत्सव हर दिन हर पल जीवन में लाता है।
सिर्फ दीपक जलाना खुशियां मनाना दीवाली का सही ढंग से उत्सव मनाना नहीं होता है। दीवाली का सही अर्थ तो हमारे जीवन में तब ही माना जाएगा जब हम अपने साथ दूसरे को भी सोंचेए उसको साथ ले और अपनी खुशियों का कुछ पल उसके साथ बिताकर उसके जीवन में भी खुशियों का कुछ पल उसके साथ बिताकर उसके जीवन में भी खुशियों को भरें तभी जीवन की सच्ची दीवाली को उत्सव महोत्सव में बदलेगा। हम अमीरी और गरीबी की उस गहरी खाई का दंश झेल रहे है जो समाज के साथ साथ मन में भी बन गई है और समाज की यह खाई तो कभी न कभी पाटी जा सकती है परंतु मन की दरार भरने में वक्त लग जाता है तब खाई को पाटने में तो कई जन्म भी कम पड जाएंगे। दीवाली में हम खाने पीने के अलावा हजारों हजारो रूपये पटाखो में बरबाद कर देते है और पर किसी गरीब बेबस लाचार को एक जून का भोजन कराने में नाक भौं सिकोडने लगते है। यही हमारी विडंबना है दोस्तो। दीवाली यदि सौहार्द्र की किरण हर घर तक जानी चाहिए। यह सच है कि सोचने भर से भगवान राम पैदा नहीं होंगे। मनोविज्ञान ने बताया कि राम का अंग्रेजी में विस्तार करें तो राम अर्थात् आर जिसका है राइट यानि सहीए इसी तरह ए अर्थात् आज जिसका अर्थ है एक्शन यानि कायर्च और म अर्थात् एम जिसका अर्थ है मैन यानि मनुष्य। हम सब राम बन सकते है यदि हम सही कार्य करने वाले मनुष्य है। त्रोता का मिथक जो हमारी आस्था का प्रतीक है वह महामानव महाशक्ति महादेव तुल्य है पर आज के समय पर आम जन को उच्च विचार रखते हुए अपने घर से शुरूआत करनी चाहिए तभी हम दीवाली के पर्व की वास्तविक शुभकामना लोगांे तक पहुॅचा पाएंगें। दीवाली प्रकाश का पर्व है। हमें आवश्यकता है कि प्रेम सौहार्द्रए विकासए सफलताए संबंध के दीपों को जलाकर दीपों से निकलने वाले प्रकाश से अपने जीवन को रोशन करने के साथ.साथ अपने साथ अपने मित्राए अपने साथी के जीवन के असफलताए दुखए रंशए निराशाए आंसुओं के मावसी तम को चीरकर पुनः दीपों की अवलि सजाएं। उसके जीवन को हम प्रकाशवान करे ताकि हमारे साथ साथ हमारा कमजोर भाई भी सहयोग से उत्सव का मना सके तभी तो दीवाली के आगमन का सच्चा सुख भो सके वरना हमारे लबों में मुस्कान और दोस्तों का जीवन श्मशान हो तो किस बात की दीवाली किस बात की मिठाइयां किस बात का उत्सव अंत में इन पंक्तियों से इस दीपावली की ढेर सारी मंगलकामनाएॅ।
जब हर तरफ फैला है घनघोर तम
दीप इस प्रेम का देहरी मन धरे।
माना की अंधेरा है फैला बहुत
इससे तुम भी लडो और हम भी लडे।
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